Wednesday, May 4, 2011

चिंतन---32---माँ आदि की मौन अभिव्यक्ति----4

"दांया आगन्या चक्र"


अब चलते हैं दाहिने आगन्या चक्र(left hemisphere)की अनुभूतियों की ओर, वास्तव में दायाँ आग्न्या चक्र लेफ्ट आग्न्या चक्र पर आधारित प्रतिक्रियाओं का प्रतिनिधित्व करता है. जो भी कुछ पूर्व जीवन में घटित होता है  उसकी स्मृति हमारे लेफ्ट आग्न्या में संचित होती है और घटित होने वाली घटना के आधार पर भविष्य में क्या किया जाए ये विकल्प(option) हमारा दाहिना आग्न्या हमें देता है . और जब हम उस विकल्प को चुन लेते हैं तो वह  चुना हुआ विकल्प पुन: दाहिने आग्न्या में सुरक्षित हो जाता है यानी  भूत काल का ही हिस्सा बन जाता है. ताकि यदि कोई भी नुक्सान भूत काल में हुआ है तो आगे उसकी पुनरावृति न हो. यदि भूत काल में अच्छा हुआ हो तो भविष्य में उसी के आधार पर निर्णय लिया जाय. यानि की हर हाल में हम सबसे ज्यादा उपयोग लेफ्ट आग्न्या का ही करतें है. इसी कारण से हर साधारण मानव वास्तव में अपना-अपना  जीवन भूत काल के आधार पर ही जीता है. जो भी हम करते जाते हैं वह सभी भूत काल में परिवर्तित होता जाता है. एक प्रकार से दाहिना आग्न्या तो केवल भूत काल(लेफ्ट आग्न्या) में किये गए कार्यों की विवेचना करने वाला एक यंत्र मात्र है, जो विवेचना से निकाले गए किसी भी निष्कर्ष के आधार पर हमें विकल्प प्रदान करता है. 

शास्त्रों के मुताबिक तीन प्रकार के कर्म माने गए हैं जिन्हें:-
   अ) करमेण् -  वर्तमान जीवन  में किये जाने वाले कर्म
   ब) संचित- वर्तमान काल में किये गए कार्य के परिणाम का शेष बचा  रहा हिस्सा, व् 
   स) प्रालब्ध-- संचित कर्म का भाग जो अगले जीवन में ट्रांसफर हो जाता है. यानि की वर्तमान में घटी हर घटना बाद में भूत-काल का ही हिस्सा बन जाती है और प्रालब्ध बन कर हमारे साथ पुन: जन्म लेती है. हमारी कुण्डलिनी वास्तव में हर घटना क्रम का एक स्मृति-कोष है, जो भी हम हैं, जहाँ से भी आये हैं, हम कौन हैं, हमारी क्या-क्या बिमारी थी, हमारी क्या-क्या अच्छाइयां थीं , हम क्या पसंद व् ना-पसंद करते थे, हम पिछले जीवन में क्या करना चाहते थे, क्या हम पूर्व जीवन में पाना चाहते थे, हमारे क्या-क्या गुण-दोष थे, हम पूर्व जीवन में जिसके साथ रहते थे क्या वो हमें बहुत प्रिय था, या बहुत बुरा था, यदि प्रिय था तो हम दुबारा उसी के साथ रहना चाहते रहेंगे, यदि वो बहुत बुरा था तो अगले जीवन में किसी और को चुनेंगे, इस प्रकार की सारी बाते हमारे नए जीवन में  दुबारा  कुण्डलिनी  के साथ जन्मी है और जन्म के बाद वो समस्त इच्छाएं हमारे 'भव-सागर'(भावनाओं का सागर) में स्वत: ही ट्रांसफर हो जातीं हैं और उनकी यादें हमारे लेफ्ट-आग्न्या में चली जातीं है. इसीलिए अक्सर हमारा हर कार्य भूत काल पर ही आधारित होता है और हमारे भीतर अक्सर जो भी भाव जन्म ले रहे होते है उनका आधार भी भूत काल ही है. आम हालात में हम वो ही करके खुश होते हैं जो हमारे भीतर पहले से ही होता है. 

एक तरीके से ये हमारा अच्छा सहायक भी सिद्ध हो सकता है यदि यह प्रकाशित हो जाय. यदि प्रकाशित न हो पाए तो ये हमारी ठीक प्रकार से मदद नहीं कर पाता और न ही वास्तविकता को पहचान ही पाता है क्योंकि यह केवल बीती हुई बातों पर ही अपनी प्रतिक्रिया कर अपना विकल्प हमें देता है. किन्तु ये बिलकुल भी जरूरी नहीं है की जैसा पहले हुआ ठीक वैसा ही दुबारा ही हो या जिन पुरानी बातों के आधार पर हम निर्णय लेना चाहते हैं वैसा भविष्य में घटित हो जाय. और जब हम बिना जाग्रति के इसका इस्तेमाल करते ही जाते हैं तो ये बेचारा गड़बड़ा जाता है और उलटे-सीधे रास्ते हमें दिखा कर हमें भटका देता है और परिणाम स्वरुप हमें तकलीफ उठानी पड़ती है. इसके अत्याधिक उपयोग से हमारे दिमाग के बाएं हिस्से की नसे व् नाड़ियाँ अत्यधिक गर्म हो जाती हैं और अनेकों किस्म की शारीरिक, मानसिक व् भावनात्मक दिक्कतें उत्पन्न हो जाती हैं. क्योंकि इसका सम्बन्ध 'सूर्य नाडी' से है और सूर्य नाडी का दूसरा सिरा दाहिने स्वाधिष्ठान पर समाप्त होता है जिसके कारण लीवर से सम्बंधित तकलीफ भी हो जाती है. आत्मसाक्षात्कार के बाद जब 'माँ आदि' शक्ति' हमारे दाहिने आग्न्या  को छूती हैं तब ही ये अपनी व्यथा 'माँ' के आगे रखता है और अपनी परेशानियाँ 'उनके' सामने जाहिर करता है यानि विभिन्न प्रकार की संवेदनाये प्रगट करता है जिससे हम जान सकें की  इस चक्र की क्या-क्या समस्याएं हैं. इन संवेदनाओं को देकर 'श्री माँ' हमें बहुत कुछ सिखाना व् बताना चाहती हैं :----


i) राईट आगन्या में होने वाली तीव्र चुभन:- जब भी कभी राईट-आग्न्या में तीखी चुभन लम्बे समय के लिए स्थापित हो जाए तो समझ लेना चाहिए की दिमाग के इस भाग में कोई गंभीर रोग हो गया है, और तुरंत उसका समाधान करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए यानि किसी चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए व् चित्त या हाथ की सहायता से इस भाग पर ऊर्जा प्रवाहित करनी चाहिए. और जो भी बीमारियाँ लेफ्ट आग्न्या के लिए बताई गईं थी लगभग वही रोग इस तरफ भी हो सकते हैं जैसे ब्रेन-स्ट्रोक के कारण लेफ्ट-साइड का 'पक्षाघात, ब्रेन ट्यूमर, मति-भ्रम इत्यादि.
  
जब ये चुभन रुक-रुक कर होती रहे तो समझ लेना चाहिए की ऐसा मानव किसी अति महत्वकांशी चेतना के चंगुल में फंस गया है जो इस वक्त अ-शरीरी रूप में उस पर प्रभाव जमाना चाहती है. ये चेतनाएं सूक्ष्म अणुओं के रूप में रहतीं हैं .ऐसी सूक्ष्म चेतनाएं ऐसे ही लोगों को चुनतीं हैं जो रात-दिन पागलों की तरह अपनी आकांशाओं व् एम्बिशंस को पूरा करना चाहते हैं और केवल उन्ही इच्छाओं को पूरा करने के  बारे में सोचते रहतें है. ये ऐसे मानवों की चेतनाए होती हैं जो अपनी अनियंत्रित इच्छाओं को पूरा करते-करते उनका  जीवन अ-सामयिक रूप से किसी हादसे, आत्म-हत्या, या  हत्या के कारण समाप्त हो जाता ही, और उन्हें मानव देह नहीं मिल पाती है, और फिर उनकी अतृप्त चेतना उनके ही जैसे मनुष्य को खोजती रहती है और खोज कर उनके दाहिने आग्न्या चक्र(लेफ्ट दिमाग) पर आसीन हो जाती है. 


इसी का एक ज्वलंत उदहारण 'ओसामा-बिन-लादेन है. अभी कुछ ही रोज पहले १ मई २०११ को अमेरिकी कमांडो दस्ते ने उसे मार गिराया. आश्चर्य की बात ये है कि ठीक इसी तारिख यानि १ मई को "एडोल्फ हिटलर" ने अपनी युद्ध में पराजय के कारण आत्म-हत्या की थी, कैसा अजीब संयोग है, किन्तु ये संयोग इसी तथ्य की ओर इशारा कर रहा है. "कही ऐसा तो नहीं की 'हिटलर' की चेतना ने 'ओसामा-बिन लादेन' के राईट आग्न्या पर कब्ज़ा कर लिया हो. ओसामा-बिन लादेन भी तो वही कार्य करता रहा है जो 'हिटलर' ने किये. या फिर हो सकता है कि हिटलर के भीतर  सिकंदरे-आजम की चेतना कार्य करती हो, कुछ भी हो सकता है. लेकिन एक बात जो उजागर हो रही है की ये सभी लोग अत्यधिक महत्वकांशी थे. ऐसी स्थिति में पीड़ित व्यक्ति के दाहिने आग्न्या पर सामूहिक या व्यक्ति-गत रूप से 'माँ आदि' का प्रेम चित्त की सहायता से प्रवाहित करना  चाहिए क्योंकि इस हालात से केवल और केवल मध्य-हृदय व् सहस्त्रार की एक हुई उर्जा(माँ जगदम्बा व् आदि शक्ति की शक्ति) ही कारगर सिद्ध होती है. 


हाथों के द्वारा विशुधि चक्र की उर्जा से काम नहीं बन पाता है. इसलिए अक्सर आपने देखा होगा की सहजी 'मटका' रख-रख कर थक जाते हैं लेकिन कोई फायदा नहीं होता. हमारे सामने ऐसे बहुत उदहारण हैं की दस-दस, बीस-बीस  साल तक लोगों ने सभी क्रियाएं कर डालीं, हवन इत्यादि कराये पर कोई लाभ नहीं हुआ. चारों प्रकार के आग्न्या यानि लेफ्ट-आग्न्या,राईट-आग्न्या,बैक-आग्न्या व् मध्य आग्न्या में चित्त के द्वारा पहुंचाई गई मध्य-हृदय व् सहस्त्रार की ऊर्जा अक्सर कार्य कर जाती है इसके हमारे पास कई प्रमाण हैं.


क्रमश:.............................................to be continued

......................................................Narayan

"Jai Shree Mata JI" 

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