Wednesday, July 27, 2011

"अनुभूति"----23-------'उपलब्धि'--------04.04.08

"उपलब्धि"

अनेको जन्मो के 'सुकर्मो' का फल मिल गया है,
"श्री माँ" के 'श्री चरणों' में बैठने का स्थान मिल गया है,

"श्री माँ" की चहल-कदमी का 'सहस्त्रार' पर एहसास मिल गया है,
अपने ही भीतर इक सुन्दर 'स्वर्ग' का आभास मिल गया है,

बिन बोले ही "श्री माँ' के नाम का 'विलक्षण' 'सुमिरन' मिल गया है,
आती जाती हर 'श्वांस' में "श्री माँ" का 'स्मरण' मिल गया है,

थरथराते हुए समस्त 'चक्रों' में  "श्री माँ" का 'आगाज़' मिल गया है,
जन्म-जन्मान्तर से घबराये 'भयभीत' मानव को, निर्भेयता का वरदान मिल गया है,

'सु' व् 'कु' संस्कारों से निर्मित 'जड़ता' को बहने का इक 'सुअवसर' मिल गया है,
युगों-युगों से बंधित 'चेतना' को स्वतंत्रता का स्वाद मिल गया है,

इच्छाओं की प्रचंड लहरों में डूबती-उतराती 'नईया' को पतवार मिल गया है,
समस्त 'ग्रंथो', 'शास्त्रों', 'पुराणों'  व्  'उपनिषदों' का 'सार' मिल गया है,
कुण्डलिनी जागरण से 'आत्मा' को जगाने का मार्ग मिल गया है,

अपने ही भीतर में स्थित "श्री माँ" के  'दरबार' का 'अनावरण' हो गया है,
भटकते मानवीय मन में 'सार्थकता' का 'वरण' हो गया है,

अपने-अपने 'अस्तित्वों' को बनाये रखने की इच्छा का 'क्षरण' हो गया है,
अपने ही भीतर में 'देवताओं' व् राक्षसों' का 'भान' हो गया है,

भीतर में उपस्थित 'निम्न' चेतना को 'अनंत' का द्वार मिल गया है,
'मुक्ति' की चाह से छूटकर मानव वास्तव में 'मुक्त' हो गया है.

-------------Narayan

"Jai Shree Mata ji"




No comments:

Post a Comment