Friday, May 4, 2012

'अनुभूति '-----30----- "निरानंद "(05.05.10)

"निरानंद "

"जब से खोला 'श्री माँ' ने सहस्त्रार,
बन गया पूरा जीवन  इक   त्यौहार ,

बढ़ता ही जा रहा है आत्मिक  प्यार ,
घटता ही जा रहा है रिश्तों में व्यापार,

अब नहीं रह गई है कोई  चिंता  की दरकार,
सभी दुःख, तकलीफ, परेशानियाँ हैं हृदय से स्वीकार,
आत्म-विश्वास, करुना व् दया, रहती बरकरार,

रहता है मन 'माँ' के बच्चों से मिलने को बेकरार,
नित्य जागृति दिए बगैर, आता नहीं दिल  को  करार,

मिला  है हम सब को  "श्री माँ" का दरबार,
करती है हम  सबकी  चेतना, 'श्री चरनन' में नमन  बारम्बार ,
मिल गया है हम सभी को हमारा करतार,

पहुँच गए हैं समस्त श ट-रिपु , शैतान,भूत  पिचाश , राक्षस  अब हार के कगार,
बह रही है प्रेम,शान्ति, आनंद की बयार,

करता है साड़ी कायनात  का  जर्रा-जर्रा, आज  ये  इकरार,
अरे भाई अब तो है हमारी 'आदि माँ' की सरकार।"

-------------------Narayan



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