Thursday, April 3, 2014

अनुभूति ---3----'राजा'-----20-12-03

"राजा"

राजा  के मकसद हैं चार,
प्रेम, शान्ति, आनंद  और संचार। 

आन पड़े यदि आवश्यकता किसी को,
कभी न करता वो विचार। 

बढ़ जाता मदद को उसकी,
चाहे छोड़ना पड़े यह संसार। 

करता है वो प्रेम हृदय से,
रहती नहीं कोई उसको दरकार। 

कर गुजरता है वो सभी कुछ,
चाहे उससे रखे न कोई सरोकार। 

भूल सकता है वो सभी कुछ,
पर याद सदा रहता उसको करतार। 

यही इच्छा है यही चाहत है,
यही तो है फितरत उसकी। 

चाहे छूटे यह जग चाहे टूटे उसका हृदय,
आता रहेगा वो बारम्बार। 

रहेगी पीड़ा सदा हृदय में उसके,
जब तक उसको न मिले प्रतिकार। 


कैसे समझाऊ, कैसे बोलू, कैसे बताऊ मैं तुमको,
तुम्ही हो चाहत, तुम्ही हो पूजा, तुम्ही तो हो उसकी हृदय इच्छा, 
तुम्ही, तुम्ही, तुम्ही, तुम्ही तो हो उसकी सरकार।

रखता है वो चाहत हृदय में,
करता नहीं वो कभी व्यापार। 

राजा  है वो राजा  रहेगा,
कहेगा न वो बारम्बार। 

समझ सको तो समझ लो जाना,
आयेगा न अवसर न ये दुबारा।

अपनी न इत्तेफ़ाक़ी, नासमझी की खातिर,
डालो न अपने उसके बीच ये दरार । 

प्यार  किया है प्यार  ही करेगा,
करता है वो आज ये इकरार। 

टूटा दिल जो कभी भी उसका,
जोड़ सकेगा केवल परवर दिगार। 

क्षमा  में रहता क्षमा  वो करता,
क्षमा  से उत्पन्न हुआ हर बार। 

जान सको तो जान लो जाना,
करता है वो दिले इजहार। 

पलट गया तो फिर कभी न रूकेगा,
चाहे रोके उसे सारा संसार। 

प्यार में जिया है प्यार में जियेगा,
नहीं है उसका ये अहंकार। 

बन सको तो बन जाओ ज्योति उसकी,
कर देगा दूर सारा अन्धकार। 

कभी न मिटा है कभी न मिटेगा,
उसके अंदर है केवल प्यार। 

जो दीखता है, वो भ्रम है तुम्हारा,
रखो न यह भाव हृदय में बरकरार। 

परख सको तो परख लो जाना,
राजा  देता है मौका हर बार,

मान सको तो मान लो जाना,
वर्ना करना पड़ेगा युगो-युगो तक इन्तजार।।

----------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"

रा = शक्ति, जा=जागृत (सच्चा साधक)

राजा=आत्मा, जाना=मानवीय चेतना 

नोट--एक साधक/साधिका की अध्यात्मिक यात्रा के दौरान आत्मा और मानवीय चेतना की आंतरिक बातचीत की  एक सुखद अभिव्यक्ति। 









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