Tuesday, April 26, 2016

"Impulses"---281--"सोचना केवल एक जटिल समस्या"

"सोचना केवल एक जटिल समस्या" 

"हम सभी का आम बाह्य जीवन वर्तमान में घटित होने वाली किन्ही घटनाओं के आधार पर चलता रहता है जिसके कारण बीती हुई बातों के आधार पर हम कुछ कुछ 'तथाकथित भविष्य' के लिए निरंतर सोचते रहते हैं।और अपने द्वारा सोचे गए को सही मानकर भीतर ही भीतर कभी खुश हो जाते हैं तो कभी दुखी जिसके कारण हमारे स्नायू तंत्र पर बुरा असर पड़ता है और हम धीरे धीरे विभिन्न किस्म के रोगों के शिकार होने लगते हैं।

यदि गहनता से चिंतन करके देखा जाये तो हम पाएंगे कि हम वास्तव में मात्र 'भविष्य' के विषय में सोचने के कारण ही बीमार होते जा रहे हैं और दुखी भी हो रहे हैं। ये नहीं समझ पा रहे कि जिस भविष्य की चिंता में हम चिंतित है वो तो केवल और केवल भूतकाल की घटनाओं पर ही आधारित है जो कभी भी पुनः ठीक वैसे ही घटित नहीं होने वाला।

जो वास्तव में घटित होगा उसे हम ग्रहण नहीं कर सकते क्योंकि हम "ईश्वर" नहीं हैं जिन्होंने हमारा जीवन रचा है।यानि घोर अज्ञानता के कारण हम "ईश्वर" बनने का प्रयास कर रहे हैं और अपने भीतर "अहंकार" को ही बढ़ाते जा रहे हैं, क्योंकि भविष्य की घटनाओं को हम स्वम् ही रचने का प्रयास कर रहे हैं।

"माँ आदि" ने पांच तत्वों की सहायता से हमारे शरीर का निर्माण किया है और हमारे भीतर करोङो देवी देवताओं को स्थापित किया है जो हमारे द्वारा केवल वर्तमान को 'सत्य' के रूप में स्वीकार कर आनद के साथ जीने के लिए अपनी विभिन्न शक्तियों से हमारी मदद करते हैं जिससे हमारे अंग प्रत्यंग संचालित होते हैं।

और साथ ही नव-ग्रहों को हमारे ही भीतर स्थित नौ मुख्य केंद्रों पर स्थापित किया है जो हमारे पूर्व जीवनों के कार्मिक व्यवस्था के परिणाम स्वरूप प्राप्त हुए इस वर्तमान जीवन को कभी पुरूस्कार व् कभी सजा देकर संतुलित करते हैं।

इसके विपरीत हम जब अपनी सोचो पर आधारित भविष्य को सत्य मान कर व्यवहार करना प्रारम्भ कर देते हैं जिससे एक ओर तो ये समस्त गण-देवता 'निस्तेज' होने लगते हैं जिसके कारण शरीर के उन स्थानों को ऊर्जा मिलनी बंद होने लगती है और वो अंग रोगी होने लगते हैं।

दूसरी ओर ये नव-ग्रह हमारे द्वारा भविष्य-निर्धारण-कर्ता बनने के कारण हमसे क्रोधित हो जाते है और ये हमारे जीवन में अनेको विपरीत परिस्थितियों को जन्म देकर हमारे जीवन के लिए अनेको बाधाएं उत्पन्न कर हमे कष्ट पहुंचाते हैं ताकि हम सोचना छोड़ दें।

क्योंकि ये तो ईश्वरीय विधान से चलते है, ये हमारे द्वारा सोचों पर आधारित इस 'नए विधान' से नहीं चल सकते।क्योंकि यदि ऐसा होने लगे तो पूरी पृथ्वी पर हर मानव अपनी सोचो के मुताबिक एक नए विधान का निर्माण करके पूर्व-कर्म-परिणामों की व्यवस्था पूरी तरह बिगड़ देगा और विधि का विधान गड़बड़ा जाएगा।

अतःजब भी मानव 'भगवान्' बनने का प्रयास करता है तब' माँ प्रकृति', पंच-तत्व, समस्त गण-देवता व् समस्त ग्रह-नक्षत्र मिलकर उसको विभिन्न प्रकार के रोगों व् अन्य विधियों के द्वारा उसके जीवन को अंतत: पूर्णतया नष्ट कर ही देते हैं।

इस प्रकार से मानव को उसके "आध्यात्मिक उथान" के लिए मिले मानवीय जीवन रूपी "सुनहरे-अवसर" का भी अंत हो जाता है और उसकी "जीवात्मा" अनंत काल तक अनेकनेक कष्टो की भागी बनती है।"
-------------------Narayan

"Jai Shree Mata ji"

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