Saturday, August 6, 2022

"Impulses"--623-- "कर्तव्य परायणता"

 "कर्तव्य परायणता" 

"वर्तमान काल भी कितना विचित्र है,यदि आप हृदयगत संवेदनाओं से परिपूर्ण होकर किसी अपने प्रिय के हित के प्रति चिंतित होते हुए उसे किसी विपदा में फंसने से बचाने के लिए कोई सूचना/शोध/अनुभव साझा करते हैं।

तो वह अपने मन में संचित सूचनाओं को ही सत्य मानते हुए बहुत ही बुरा मान जाता है।

अपने उक्त सूचनाओं के ज्ञान के अहंकार से आच्छादित होकर अक्सर अत्यंत नकारात्मक रूप में प्रतिक्रिया करते हुए या तो आपको मूर्ख समझता है या फिर आपको अपना शत्रु मान बैठता है।

ऐसी अवस्था में आपके सामने धर्म संकट खड़ा हो जाता है कि आप अपने उस प्रिय को चुपचाप रहकर ऐसे ही पीड़ाओं/विपत्तियों में फंस कर नष्ट होता देखते रहें।

या फिर उसे उसके आने वाले कष्टों के प्रति आगाह करते हुए उसके बुरे बनने को तैयार रहें।

हमारी चेतना के अनुसार यदि आप उस व्यक्ति को वास्तव में हृदय से प्रेम करते हैं तो आपको उसकी नजरों में बुरा बनने में कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए।

क्योंकि जिस पल भी उसे आपकी बातों के सत्य का एहसास होगा तो उसकी चेतना आपके प्रति कृतज्ञता अनुभव करते हुए आपके प्रति हृदय से सम्मान का अनुभव करेगी।

यानि एक सत्यनिष्ट मानव को बिना किसी बात की चिंता करते हुए मानवता की रक्षा के लिए अन्य लोगों को सचेत करने का कर्तव्य पालन अवश्य करना चाहिए क्योंकि ऐसे अच्छे हृदय के मानवों को केवल "ईश्वर" के प्रति ही जवाब देह होना चाहिए।"

---------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


07-06-2021

 

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