Monday, June 19, 2023

"Impulses"--645-"भविष्य-चिंता-ताप"

"भविष्य-चिंता-ताप"

"आज के मध्य वर्गीय मानव की सबसे बड़ी चिंता अपने रहन सहन के स्तर के अनुसार अपनी आर्थिक स्थिति के आधार पर अपने भविष्य को सुरक्षित करने की है।

और इसके बाद जो दूसरी परेशानी उसको रात दिन दीमक की तरह खाये जा रही है।वो है अपने नजदीकी रिश्तों से जुड़े मानवों के साथ भावनात्मक वैचारिक मनमुटाव का निरंतर बने रहना।

जिसके परिणाम स्वरूप मानसिक भावनात्मक सामंजस्यता का नितांत अभाव रहने लगता है।

जिसकी वजह से एक दूसरे की भावनाओं/व्यक्तित्व/रुचियों का हृदय से सम्मान करने,

एक दूसरे की नैसर्गिक आवश्यकताओं को पूर्ण जिम्मेदारी आदर के साथ तुष्ट करने,दैनिक कार्यों को आपसी सहयोग के जरिये सम्पन्न करने,

अपने अहम के टकराव को समझदारी के साथ दूर रख, एक दूसरे के आत्मसमान को क्षति पहुंचाने के प्रयासों को सफल बनाने में बाधा उत्पन्न होने लगती है।

इन दोनों ही प्रकार की चिंताओं के चलते आम मानव के मन में अनेको प्रकार के मनोदैहिक रोग पनपने लगते हैं जो धीरे धीरे उसे मानसिक विकृति की ओर ले जाते हैं।

जिसके परिणाम स्वरूप उसका व्यवहार, आचरण विचार अत्यंत नकारात्मक हो जाते हैं।

और वह रात दिन या तो अनेको प्रकार के भयों से ग्रसित रहता है या फिर वह अत्यंत आक्रमक विस्फोटक हो जाता है।

इस स्थिति के कारण वह अपने नजदीकी लोगों के लिए ही समस्या नहीं बनता बल्कि स्वयं के लिए भी बहुत बड़ी मुसीबत बन जाता है।

यदि हम अपनी मनोदैहिक समस्याओं/विकारों/महत्वाकांशाओं से दूर रह कर शांतिपूर्ण सन्तोष युक्त जीवन जीना चाहते हैं तो हमको एक सरल चिंतन करना चाहिए।

आज के समय में हम मानव की औसत आयु सीमा का आंकलन करें तो हम पाएंगे कि यह लगभग 70 वर्ष के करीब होती है।

यदि हम 70 वर्ष को 365 दिनों से गुना करें तो यह मात्र 25,550 दिन ही होते हैं और प्रतिदिन 1 दिन हमारी औसत आयु में से कम होता चला जाता है।

हमारे देश में स्वतंत्र रूप से अपना अपने स्वयं के परिवार का उत्तरदायित्व निर्वहन करने का प्रारम्भ लगभग 25 वर्ष की आयु से होता है।

यानि हमें अपने जीवन के 25x365=9,125 दिन बिताने के उपरांत ही 25550-9125=16425 दिनों के लिए ही अपने भोजन अपने भावनात्मक रिश्तों के प्रति जिम्मेदारी निभाने के लिए जागरूक होने की जरूरत है।

यदि 70 वर्षो की आयु के बाद भी हमारा जीवन शेष रहता है तो वह एक प्रकार से बोनस के रूप में ही मिला होता है जिसके प्रति हमको बहुत ज्यादा चिंता करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है।

क्योंकि इन 16525 दिनों के लिए कार्य करने के उपरांत इतना कुछ तो हो ही जाता है जिससे 70 वर्ष के आगे का जीवन बिना किसी विशेष परेशानी के चल जाए।

कुल मिला कर हमको इतना समझना है कि अपने औसत जीवन से बहुत ज्यादा हमें एकत्रित करने की हमें कोई आवश्यकता ही नहीं है।

और इतने कम दिनों के लिए खुशी खुशी अपने नजदीकी रिश्तों को साक्षी भाव में स्थित रहकर समाधानी अवस्था को धारण करते हुए बिना किसी कठिनाई के आसानी से निभाया जा सकता है।

और यदि इन नजदीकी रिश्तों में से किसी ने भी हमारे साथ किसी भी प्रकार की बेईमानी/धोखा/छल/ईर्ष्या/घृणा/धूर्तता/चालाकी/झूठ/फरेब/नाजायज दवाब अहंकार दिखाते हुए हमारी अंतरात्मा को पीड़ा पहुंचाई।

तो उसी क्षण से उनके प्रति हमारी नैतिक जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है,यानि हमारे जीवन में कुछ रिश्ते निश्चित रूप से कम हो जाते हैं।

तो फिर इस छोटे से जीवन काल के लिए आवश्यकता से अधिक धन एकत्रित करने छोटी छोटी बातों के लिए रिश्तों में वैमनस्यता को बनाये की भला क्या आवश्यकता है।

और रहा सवाल अगली पीढ़ी का,उनके लिए तो मात्र केवल इतना ही करना है कि वे ठीक प्रकार से पढ़ लिख कर अपने पावों पर खड़े होने की योग्यता हांसिल कर लें।

हमें अधिक से अधिक उनके लिए उनकी 25 वर्ष की आयु पूर्ण करने तक ही करना चाहिए, क्योंकि इस काल से उनकी अपने स्वयं के प्रति जिम्मेदारी शुरू हो जाती है।

आखिर वे भी तो अपना प्रारब्ध अपने साथ लेकर आएं हैं, उन्हें भी तो अपना स्वयं का जीवन हमारी तरह स्वयं ही संवारना है।

अब जरा चिंतन करते हैं उन लोगों के लिए जिनकी आयु 60 वर्ष हो चुकी है तो उन्हें बिल्कुल ही निश्चिंत हो जाना चाहिए क्योंकि 70 वर्ष की औसत आयु के हिसाब से उनके पास तो मात्र 10 वर्ष यानि 3650 दिन ही बचे है।

अब उनको अपने द्वारा संचित किए गए धन रहने वाले घर के अलावा अतिरिक्त सम्पत्ति की कीमत की गड़ना करनी चाहिए कि उनके पास कुल मिला कितने धन की व्यवस्था है।

उसके बाद अपने अपने पर आर्थिक रूप से आश्रित पारिवारिक सदस्यों के वास्तविक प्रतिदिन सम्भावित खर्च को प्रतिवर्ष बढ़ने वाली महंगाई के अनुपात के साथ जोड़ कर गड़ना कर लेनी चाहिए।

इसके बाद 3650 दिनों से गुना करके अपने आगामी 10 वर्ष का कुल खर्च निकाल लीजिए और इसमें 5 वर्ष का अतिरिक्त खर्च जोड़ दीजिए।

यह 5 वर्ष का अतिरिक्त खर्च ऐसे आपातकालीन खर्चों के लिए है जिनका हमें पता ही नहीं होता जो विभिन्न प्रकार की दुर्घटनाओं के रूप में हमारे सर पर पड़ते हैं।

इन 15 वर्षों के कुल खर्च को अपने कुल धन से घटा कर देखिए कि क्या आपका धन आपके कुल खर्चों से काफी ज्यादा है या कम है।

यदि आपका धन आपके सम्भावित खर्चों से अधिक है तो बिल्कुल निश्चिंत हो जाइए और चिंता रहित अवस्था में मजे से अपने दिन बिताने प्रारम्भ कर दीजिए।

इसके विपरीत यदि आपके कुल खर्च आपके कुल धन से ज्यादा बैठ रहे हों तो उस खर्च को पूरा करने तक धनार्जन अवश्य कीजिये ताकि आने वाले समय में आपको किसी का भी मोहताज होना पड़े।

उदाहरण के लिए हम मान कर चलते हैं कि हमारा प्रतिदिन खर्च 1500/- है तो हमारी 15 वर्ष के खर्च की रकम 1500x5475=82,12,500=00 बैठती है।

और हमारे पास कुल धन की व्यवस्था 1,00,00,000 है तो फिर भी हमारे पास 15 वर्ष के संभावित खर्च को घटा कर 10000000=00-8212500=00=1787500=00 बचता है जो हमारे 1191 दिन और निकाल लेगा।

अपने भविष्य के प्रति इससे ज्यादा गड़ना करने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है।

यदि अपने इस सम्भावित खर्च के अतिरिक्त हम इससे बहुत अधिक धन एकत्रित करने की सोचते हैं तो यह प्रवृत्ति प्रकृति के विपरीत हो जाती है जिसका खामियाजा हमें अनेको रूपों में चुकाना पड़ेगा।

समझदारी इसी में है कि अपनी वास्तविक व्यवहारिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए ही अपने बेशकीमती समय ऊर्जा को व्यय करें।

और बाकी बचे हुए समय ऊर्जा का सदुपयोग केवल और केवल 'इशभक्ति' 'आत्मिक जागृति' के लिए करें, इसी में हम सब की 'जीवात्मा' का सही मायनों में कल्याण निहित है।

और यदि आप "श्री माँ" के "श्री चरणों" में स्थित हो गए हैं तो आप सभी को बिल्कुल ही चिंता रहित हो जाना चाहिए क्योंकि कि "श्री माँ" के अनुसार मानवीय देह में यह हमारा अंतिम जीवन है।"


-----------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"



09-08-2021

 

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