Friday, March 8, 2024

"Impulses"-661-"युद्ध"

"युद्ध"

"जब से हमने 'वसुंधरा' पर जन्म लेने के कुछ काल बाद होश संभाला तब से ही हम समय समय पर धरती के किसी किसी हिस्से में होने वाले युद्धों के बारे में सुनते देखते रहे हैं।

यहां तक कि यदि हम मानव जाति के इतिहास के बारे में पढ़ना प्रारम्भ करें तो हम जानेगें कि जब से मानव का जन्म हुआ है।

उसके कुछ काल के बाद से आज तक वह किसी किसी प्रकार के युद्ध/संघर्ष में लिप्त ही रहा है।और तो और जितनी भी पौराणिक-धार्मिक पुस्तकें हैं उनमें तो देवताओं और राक्षसों के युद्ध के अनेको किस्से दर्ज हैं।

यही नहीं मानव के अतिरिक्त लगभग हर प्रकार के जीव-जंतु भी अपने अपने झुंडों में युद्ध/संघर्ष करते नजर आते हैं।

बड़े ही आश्चर्य की बात है कि "परमपिता परमेश्वर" ने जिस रचना को अत्यंत प्रेम से निर्मित किया और अपने 'आत्मा' रूपी अंशों को लाखों किस्म के प्राणियों के रूप में जन्म दिया।

वे सभी आपस में प्रेम से रहने के स्थान पर क्यों कर लड़ते/झगड़ते/युद्ध करते हुए दिखाई देते रहते हैं ?

फिलहाल हम,समस्त प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी यानि 'मानव' की युद्ध-प्रवृति पर एक चिंतन यात्रा की ओर अग्रसर होने जा रहे हैं।

यदि हम गहनता के साथ इस दुष्प्रवृत्ति का अध्यन करेंगे तो पाएंगे कि इस धरा पर आज तक जितने भी युद्ध हुए हैं।

वे किसी किसी धन सत्ता लोलुप अत्यंत महत्वाकांक्षी,अहंकारी मानसिक रूप से विकृत तानाशाह के अनियंत्रित लोभ का ही परिणाम हैं।

यानि जब पद,धन सम्पदा सम्पन्न किसी तानाशाह रूपी मानव के मन के भीतर अन्य लोगों की वस्तु/धन/सम्पत्ति/स्त्री/राज्य को छीन कर/हड़प कर/लूट कर अपना ऐश्वर्य विलासिता में इजाफा करने की विकृति उत्पन्न होने लगती है।

तो वह अपने से कमजोर देशों/राज्यों को अनेको प्रकार से दबा कर उनकी चेतनाओं पर शासन करते हुए उसके अधिकार क्षेत्र में आने वाले समस्त संसाधनों/मानवों पर अपना अधिकार जमाना प्रारम्भ कर देता है।

और जब वे कमजोर देश/राज्य उसके दवाब का विरोध करने लगते हैं तो वह उन राष्ट्रों पर आक्रमण कर उनकी सम्पत्ति/अधिकार धन को लूटने की चेष्टा करता है।

और जब वह अपने इन प्रयासों में सफल होने लगता है तब उसके भीतर हिंसा/लोभ/धूर्तता के द्वारा अर्जित की चीजो को खोने का भय उत्पन्न होने लगता है।जिसको मिटाने के लिए वह अत्यंत आक्रमक होकर सदा युद्धातुर रहता है।

यानि ऐसे तानाशाहों के भीतर लोभ भय हर पल समाया रहता है जो उनको सदा अन्य देशों पर आक्रमण करने के की ओर निरंतर धकेलता रहता है।

और ऐसे विकृत मानव अपने पूरे जीवन में बस यही कार्य करते रहते हैं।कभी कभी यह भी देखने को मिला है कि ऐसे लोगों को बहुत बुरी हार का सामना करना पड़ता है।

और ये लोग शर्मिंदगी से बचने के लिए अत्यंत बुरी दशा में अपनी इह लीला स्वयं समाप्त करने को मजबूर हो जाते हैं।

या अपनी अपने देश की आत्मरक्षा करने के लिए मजबूर होने वाले लोगों के द्वारा किये जाने वाले संघर्ष प्रयासों के द्वारा ऐसे आतातायी आक्रांता मारे भी जाते हैं।

तो लगभग हर प्रकार के युद्ध के होने समाप्त होने के पीछे केवल यही कुछ मुख्य तथ्य मौजूद रहते हैं।

इस प्रकार के युद्ध के अधिकतर दो ही पक्ष होते हैं जिनमें युद्ध को प्रारम्भ करने वाला जो पक्ष है सदा आक्रमणकारी का ही होता है।

और जिस पर आक्रमण होता है उसे अपनी आत्मरक्षा के लिए चाहते हुए भी मजबूरी में इस युद्ध में शामिल होना पड़ता है।

जब जब ऐसे धूर्त लोग किसी देश की सत्ता में आना चाहते हैं तो यह लोग अपने आप को उक्त देश का सबसे बड़ा हितैषी और राष्ट्रभक्त साबित करने का झूठा प्रचार करते हैं।

और प्रचार के साथ साथ हुए देश के आम नागरिकों को अनेको लुभावने सपने दिखाते हुए पूर्व सरकारों की कमियां गिनाते हुए जम कर बुराइयां करते हैं।

जिसके परिणाम स्वरूप देश के आम नागरिकों को ये लोग अनेको तौर तरीकों से भ्रमित करने में सफल हो जाते हैं।

और फिर जनता के द्वारा भारी बहुमत से चुन कर सत्ता पर काबिज हो जाने के बाद धीरे धीरे विभिन्न प्रकार के षड्यंत्र अपना कर अपने विपक्ष को शक्तिहीन करते हैं।

और फिर अपनी पसंद के विभिन्न कानून बनाते हैं और पुराने कानूनों को या निष्क्रिय कर देते हैं या फिर उन्हें निरस्त कर देते हैं।

और इसके बाद शुरू होता है तानाशाही का तांडव जिसके चलते अपने की देश की आम जनता का धन अनेको तरीकों से विभिन्न करों कानूनों के रूप में लूट लूट कर आम जनता को आर्थिक रूप से इतना कमजोर कर देते हैं।

कि आम नागरिक के लिए अपनी रोजी रोटी को बनाये रखना ही अत्यंत मुश्किल हो जाता है।

और यदि जनता इनके अत्याधिक करों कानूनों के प्रति विरोध करना प्रारम्भ करे तो वे इस विरोध को अतिनिर्ममता के साथ कुचलते हैं ताकि कोई भी आम नागरिक इनकी क्रूरता के प्रति कभी भी आवाज उठा पाए।

ये लोग अपने आप को राजा अपने देश के नागरिकों को अपना गुलाम समझने लगते हैं जो इनके भोग विलास को बनाये रखने के लिए जी तोड़ मेहनत कर बंधुआ गुलामों की तरह इनकी जय जय कार करते रहें।

धीरे धीरे ये इतने निरंकुश हो जाते हैं कि अपनी मनमानी करते हुए अपने देश के कमजोर पड़ोसी देशों पर अपनी अनियंत्रित महत्वाकांशाओं को लादना प्रारम्भ कर देते हैं।

और मानने पर उन देशों पर बड़ी क्रूरता के साथ आक्रमण तक कर देते हैं और विध्वंसक अस्त्र शस्त्रों के द्वारा उस देश के शहरों को नष्ट करते हुए देश के हजारों आम नागरिकों की हत्या करने से भी नहीं चूकते।

आप सभी पिछले 14 दिनों से यह भयानक मंजर देख ही रहे हैं जो अत्यंत हृदय विदारक है।मानवता, 'प्रकृति' "परमात्मा" की सर्वोत्तम कृति के खिलाफ यह शैतानी नृत्य हममें से अधिकतर की आत्मा को बुरी तरह झखझोर रहा है।

यह आक्रमण किसी एक देश के नागरिकों के लिए ही नहीं अपितु पूरे विश्व की मानव जाति के लिए भी अत्यंत विनाशक हो सकता है यदि ऐसे तानाशाह को युद्ध में हार का मुख देखना पड़े तो।

क्योंकि इस प्रकार के शैतानी अस्तिव मानसिक रूप से कहीं कहीं अत्यंत कुंठित होते हैं।जिसकी पूर्ति के चलते ये लोग अत्यंत ऐसे विध्वंसकारी अस्त्रों का प्रयोग करने से भी नहीं चूकते जो इस समूची धरती को पूर्णतया नष्ट कर सकते हैं।

बड़े बड़े वैज्ञानिकों के द्वारा पहले से ही बता दिया गया है कि यदि 100 परमाणु बमों का विस्फोट इस धरती पर कर लगातार कर दिया जाय तो हमारा यह ग्रह धूल में परिवर्तित हो जाएगा।

और शायद,आपमें से अनेको लोग जानते ही हैं कि पूरे विश्व के कुछ राष्ट्रों के पास हजारों की संख्या में परमाणु बम हैं।

यानि ऐसे मानवों ने अपनी घोर अज्ञानता के चलते हमारी वसुंधरा को बारूद के ढेर पर टिका दिया है और महाविनाश के लिए केवल एक चिंगारी भर की देर है।

क्या हममें से कुछ मानवों ने कभी यह चिंतन किया है कि इस प्रकार के निरंकुश,अहंकारी,बेदर्द तानाशाह आखिर किस प्रकार से तैयार हो जाते हैं ?

हमारी चेतना के अनुसार इस प्रकार के 'मनोरोगियों' को सत्ता पर आसीन करवाने में उन देशों के ऐसे आम नागरिकों का ही हाथ होता है जो विशेष प्रकार की जाति/धर्म/व्यवस्था या व्यक्तिवाद में विश्वास करते हैं।

ऐसी जनता यह भी देखने का प्रयास नहीं करती कि ऐसे 'सत्ताधारी' देश आम नागरिकों के हित कल्याण के लिए कुछ कर भी रहे हैं अथवा नहीं।

सही मायनों में ऐसे नागरिक पूर्णतया चक्षुविहीन मानसिक गुलाम ही होते हैं जो अपने चहेते नेता को हर हाल में सत्ता के सर्वोच्च पद पर ही देखना चाहते हैं।

फिर चाहे ऐसे क्रूर 'तानाशाह' इन गुलामों के हितों पर कुठाराघात करते हुए इन गुलामों के वर्तमान भविष्य को अंधकार विनाश के गर्त में ही क्यों धकेल दें।

इस बात का ताजा ताजा उदारहण रूस की कुछ जनता का है जो केवल सरकारी बंधुआ मीडिया के समाचारों को ही देखती है।

अभी भी यह मानने को तैयार नहीं कि उनका राष्ट्राध्यक्ष पड़ोसी देश पर बर्बरता पूर्वक आक्रमण कर रहा है।उनको लगता है कि उनका राष्ट्रपति जो भी कर रहा है वह उनके देश के लिए अत्यंत महान कार्य है।

इसी प्रकार की मानसिकता से बाधित अनेको लोग हमारे देश में भी उपस्थित हैं जो अंधभक्ति में आकंठ डूबे हुए हैं और रात दिन 'राजा जी' का गुणगान करते रहते हैं।

ऐसे महामूर्खों को यह समझ ही नहीं आता कि हमारे देश में भी एक 'मानसिक रूप' से विक्षप्त एक तानाशाह का प्रादुर्भाव हो रहा है जिसे आम नागरिकों की पीड़ाओं दुख दर्द से कोई मतलब नहीं है।

जो लगातार अपनी कुनीतियों षडयंत्रो के चलते हमारे देश को हर स्तर पर लगातार बर्बाद ही किये जा रहा है।

बड़ा दुख होता है यह देखकर कि इस प्रकार के अहंकारी सत्ता के लोभी सनकी तानाशाहों के कारण उन देशों के आम नागरिकों को भारी विपत्तियों का सामना करने के साथ साथ कभी कभी जान तक से हाथ धोना पड़ता है।

यदि पूर्व में हुए समस्त युद्धों का अवलोकन किया जाय तो यह सिद्ध होता रहा है कि ये युद्ध मानवजाति के लिए सदा से अत्यंत हानिकारक रहे हैं।

किन्तु इसका क्या किया जाय जब कोई किसी भी देश की सत्ता/तानाशाह आपके देश पर आक्रमण कर आपको गुलाम बनाने का प्रयास करे तो अपने देश के आत्मसम्मान की रक्षा करने के लिए अंतिम सांस तक युद्ध में शामिल होना ही पड़ता है।

ठीक ऐसे ही यदि,कोई सत्तालोलुप तानाशाह अपने नागरिकों के समस्त धन/सम्पत्ति/अधिकारों को छीन कर उनकी स्वतंत्रता को नष्ट करना चाहे।

तब भी अपने स्वाभिमान की रक्षा करने की खातिर उक्त तानाशाह के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए उससे संघर्ष करना पड़ता ही है फिर चाहे कितने ही कष्ट क्यों झेलने पड़ें या अपनी जान ही क्यों गंवानी पड़े।

क्योंकि "परमपिता परमात्मा" ने हम सभी को स्वतंत्रता से अपना जीवन यापन करने के लिए एक समान अधिकार देकर इस धरा पर मानव देह में जन्म दिया है।

हमारी इस नैसर्गिक स्वतंत्रता को छीनने का अधिकार किसी भी मानव को नहीं है फिर चाहे वह कितने भी बड़े पद पर आसीन क्यों हो।

अंत में हम सभी जागृति के मार्ग पर अग्रसर होने वाली समस्त चेतनाएं अपने सहस्त्रार मध्य हृदय से जुड़ कर गहन ध्यानास्थिति में "श्री माँ" की उपस्थिति को कम से कम 5 मिनट तक ऊर्जा के रूप में अनुभव करेंगे।

इसके बाद अपने चित्त में सम्पूर्ण विश्व के मानव देह धारी समस्त शैतानो,राक्षसों,नरपिशाचों,नराधमो को लाएंगे जो सदा मानवता को क्षति पहुंचाते रहते हैं।

और फिर "श्री महाकाली" से पूर्ण श्रद्धा,भक्ति,लगन,इच्छा समर्पित भाव में इन सभी के समूल संहार की प्रार्थना करते हुए इस भाव में पुनः ध्यानस्थ होंगे।"

------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"



09-03-2022

 

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