Tuesday, November 23, 2010

"Impulses"---"चिंतन"-----Contemplation--------7-------23.11.10

"Impulses"----"चिंतन"

1) "आवश्यकताओं का यदि चिंतन किया जाये ये सोचा जाए कि ढीक है परमात्मा यदि चाहेंगे तो हमारी कोई भी जरूरत पूरी हो जाएगी और यदि वो पूरी नहीं करतें हैं तो जरूर उसमे कोई हमारी ही भलाई छुपी है तो ऐसा सोचने से कोई भी हमारी जरूरत इच्छा में परिवर्तित नहीं होगी हमारी मृत्यु के समय कोई भी इच्छा शेष नहीं रहेगी हमें मोक्ष प्राप्त होगामनुष्य का वास्तविक भौतिक जीवन आवश्यकता प्रधान है इच्छा प्रधान नहीं है सिवाय परमात्मा से मिलने की इच्छा केआवश्यकताओं के बारे में रात-दिन सोचते रहने से ही वो इच्छाओं में परिवर्तित हो जातीं हैं मृत्यु के बाद हमारे ही साथ अगले जनम में भी पहुँच जातीं हैं हमें अपनी ओर खींचती रहती हैं।"

2) "यदि ध्यान से सम्बंधित कोई भी क्रिया या प्रक्रिया शरीर के किसी भी अंग-प्रत्यंग , जुबान या मस्तिष्क के प्रयोग के बिना यानि चित्त से की जाये तो सर्वश्रेष्ठ होता है क्योंकि मृत्यु के बाद केवल चित्त ही हमारे साथ जाता हैऔर यदि जीवित अवस्था में अपने चित्त के माध्यम से परमात्मा को महसूस करने का अभ्यास अच्छा बना लिया है "आदि शक्ति" को अपने यंत्र में दौड़ाने की आदत डाल ली है तभी परमेश्वरी हमारे अंतिम समय में हमारा साथ दे पाएंगीक्योंकि उस वक्त जुबान ऑंखें सबसे पहले अपना कार्य बंद कर देतीं है।"

3) "ध्यान की यात्रा "मन" से प्रारंभ होती है "-मन " पर समाप्त हो जाती है।"

4) "परमात्मा कोई मंजिल नहीं हैं बल्कि एक यात्रा हैं, जैसे यदि हम किसी भी ट्रेन पर सवार हो जाते है ट्रेन हमें अपने आप जगह-जगह ले जाती रहती है यानि हम कुछ करते हुए भी गतिशील रहते हैं, ऐसे ही "उनसे" जुड़कर हम उनकी ही इच्छा से ही संचालित होते हैंयानि सक्रियता में निष्क्रियता निष्क्रियता में सक्रियता। "

5) "बहुत से लोग गृह-चाल सितारों में बहुत विश्वास करते है पंचांग देख-देख कर अपने कार्य करते हैं अनेको ज्योतिष शास्त्रियों से सलाह करके विभिन्न प्रकार के रत्न-मोती, हीरा-पन्ना गृहों को शांत करने के लिए अपनी उँगलियों में पहनते हैयदि किसी के कोई भी नकारात्मक गृह की महा दशा चल रही हो तो केवल एक छोटा सा कार्य करना है कि जिस कार्य को भी आप सफल बनाना चाहते हो उसकी चिंता करे बिना कार्य करते रहें क्योंकि नकारात्मक गृह हमारे चित्त के विरोध में ही कार्य करतें हैंऔर यदि चित्त में "श्री माँ" को बसा लिया जाये तो बेचारे ये गृह बेकार हो जाते हैं यानि कोई अवरोध नहीं आता।"

6) "जो भी हमारे जीवन में विपरीत परिस्तिथियाँ या कठिनाइयाँ आती है उसका एक मात्र कारण हमारा प्रारब्ध होता है उससे बचने के लिए कोई भी नग-हीरा-पन्ना इत्यादि धारण करना अपनी परेशानियों के समय को और लम्बा करना ही हैक्योंकि हमसे जो भी जाने अनजाने में हुआ है उसको स्वीकार करे बगैर प्रारब्ध हमारा पीछा नहीं छोड़ेगानकारात्मक हालत को जीने का सर्वोत्तम उपाय सदैव ध्यानस्थ रहना ही हैयदि इन पत्थरों से मानव को लाभ होना होता तो कुदरत इनको हमारे जन्म से ही हमारी उँगलियों में चिपका कर ही भेजती।"

7) "अक्सर लोग-बाग़ अपने लाभ शांति के लिए तरह-तरह के अनुष्ठान, पूजा, हवन,मंत्रो-चारण, दान, ध्यान-धारणा इत्यादि करते है सहज योगी "श्री माँ" के द्वारा बताई गई सहज क्रियाएं करके अपने को लाभान्वित करना चाहता है सदा "श्री माँ" से उम्मीद करता है कि "माँ" उसका कल्याण करेंफिर भी अक्सर उसकी उम्मीद पूरी नहीं होती, क्या कारण है ? मेरे अनुभव से, यदि किसी भी व्यक्ति ने चाहे वो सहज योगी हो या हो किसी भी इंसान को सच्चे हृदय से बिना किसी लाभ या स्वार्थ या मान-अपमान की चिंता किये बिना उसे अन्दर से उठाया हो तो उसके हृदय से निकलने वाली दुआओं से उसका कल्याण होता हैमेरे विचार से इश्वर अपने ऊपर कभी भी पक्षपात का आरोप नहीं लगवातेकिसी के कल्याण को भी उन्होंने मनुष्य के द्वारा कमाई गई दुआओं पर ही छोड़ दिया हैतो जितना हो सके निस्वार्थ दुआओं की कमाई की जाएऔर दुआओं को कमाने का सर्वोत्तम तरीका है सबको बिना किसी भेद-भाव के निरंतर आत्मसाक्षात्कार देते जानाअनेकों जन्मों से मानव देह में कैद हुयी कुण्डलनी असंख्य देव-गण मुक्त होकर हमें सदा हजारों दुआ ही देते है।"

-----------नारायण

6 comments:

  1. बहुत अच्छी पोस्ट है...

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  2. ब्‍लागजगत पर आपका स्‍वागत है ।
    bahut sunder .

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  3. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  4. लेखन के मार्फ़त नव सृजन के लिये बढ़ाई और शुभकामनाएँ!
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    आलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
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    पूरा पढ़ने के लिए :-
    http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html

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