Friday, January 31, 2014

"अनुभूति"--22--"परिवर्तन" (Transformation)

"अनुभूति"--22 --26.09.07

"परिवर्तन" 

"न मैं बुरा हूँ, न मैं अच्छा हूँ ,
मैं बस 'श्री माँ' आपका बच्चा हूँ। 

आपकी प्रीती से पल बढ़ रहा हूँ ,
आप ही की देखरेख में तो मैं चल रहा हूँ। 

अक्सर गिरता रहता था मैं बहुत पहले,
ऐसा लगता है कि मैं अब संभल रहा हूँ। 

थामा है आपने मेरा हाथ, 
यूं कलेजे से  लगाके,
करता हूँ मैं आज ये इकरार, 
आपको हृदय में बसा के। 

न खोने  की फ़िक्र करता हूँ, 
न पाने की दरकार रखता हूँ। 

मैं तो बस हर पल हर घडी,
 नमन: आपको बारम्बार करता हूँ। 

सोचता रहता हूँ अक्सर,
मैं और क्या पाऊँ 'माँ। 

कितना दिया है आपने मुझ नाचीज को ,
कैसे उसका दिले इजहार कर पाऊ 'माँ। 

अब क्या है मेरा यहाँ,
जो मुझको खींच रहा है,
अब ताओ बस 'परम चैतन्य' ही, 
मेरे अंत:करण को सींच रहा है। 

क्या चाहता था मैं पहले, 
अब सब कुछ भूल गया हूँ।

ऐसा लगता है 'माँ',
मैं आपके 'श्री चरणो' की धूल बन गया हूँ। 

"इति श्री " 


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