Sunday, February 21, 2016

"Impulses"----273

"Impulses"


1) "जिस प्रकार से हमारे शरीर में किसी भी स्थान पर किसी भी कारणवश चोट लग जाती है तो हमारे शरीर की समस्त शक्तियां उस चोट की और दौड़ पड़ती हैं और उस चोट को ठीक करने में लग जाती हैं।

ठीक इसी प्रकार से हमारे द्वारा किये गए स्वार्थ रहित सदकार्यों से प्राप्त हुई शुभकामनाएं, आशीर्वाद व् दुआएं "परमात्मा" की शक्ति बनकर हमारे नकारात्मक प्रारब्ध के कारण घटित होने वाली दुर्घटनाओं के समय दौड़ कर हमारे पास आती हैं और हमें हानि पहुँचने से बचाती हैं व् हमारी रक्षा करती हैं।

और इसके विपरीत अहंकार, ईर्ष्या, व् लालच से प्रेरित होकर किये गए समस्त कार्यों के कारण किसी के दुखते -दिल से निकली हुई बद-दुआएं हमारे पूर्व जन्मों व् वर्तमान जन्म के किये गए पुण्य कार्यों के फलों को जलाकर राख कर देती हैं जिसके फलस्वरूप हमें विभिन्न प्रकार के नरक इसी जन्म में भोगने पड़ते हैं।

इसीलिए हमें सदा वर्तमान जीवन में निस्वार्थ सद-कार्य करते रहना चाहिए ताकि हमारे साथ दूसरों का जीवन सुन्दर हो जाये। और इसके लिए दूसरों को 'आत्म साक्षात्कार' देने व् सच्चे-खोजियों को गहनता प्राप्त कराने में मदद करने से बड़ा कोई सद्कर्म इस धरा पर नहीं है।


2) "As soon as the Bad Weather of our Mythical Notions clears out our Spirit start manifesting its Compassionate Beauty into the Valley of our Consciousness."



3)"चिन्ता और निश्चिन्तता हम मानवों की दो विपरीत स्थितियां हैं। जब मानव-चेतना मन के आधीन होती है तो मानव चिंतित होता है कयोंकि मन के भीतर वर्तमान जीवन के लिए कोई समाधान नहीं होता।


और जब हमारी चेतना, निश,यानि, नि=सहस्त्रार की शक्ति, =शरण में जाती है तभी तो 'निश्चिंतता' घटित होती है। अतः चिंता के समय सहस्त्रार में अपनी चेतना को रखें निश्चिंतता का भरपूर आनंद उठायें।"




4)"Why Himalayas is called "Devisthan"...? Because, Lots of 'Divine Powers' exist here which keep on Empowering the 'True Devotees and Sadhakas'/Sadhikas since ancient time.

Such a pure places are away from all kinds of Mental Pollution of Anti Nature and Anti God Human Beings, because of difficulties and hardships in reaching there and staying to such Sacred Places.

Those who have Purity and Will Power in their Hearts, might be eligible to relish the love of "Divine" by sitting into the Lap of 'Mighty Himalayas'."

--------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


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