Wednesday, May 11, 2016

"Impulses"---284--"ध्यान में गहनता सांसारिक सम्पन्नता का आधार नहीं है"

"ध्यान में गहनता सांसारिक सम्पन्नता का आधार नहीं है"

"अक्सर देखने व् सुनने में आता है कि बहुत से सहज-साधक/साधिका ध्यान की गहनता को सांसारिक सम्पन्नता से जोड़ देते हैं और साथ ही वो ये भी मान बैठते हैं कि अब हम ध्यान के माध्यम से "श्री माता जी" से जुड़ गए हैं तो कोई भी परेशानी हमारे जीवन में नहीं आएगी और हम मजे से ध्यान के साथ साथ सांसारिक जीवन का भी भरपूर आनंद उठाएंगे। ऐसे मानसिक धारणा को रखते हुए जब भी कभी किसी सांसारिक परेशानी, शारीरिक कष्ट से घिर जाते हैं तो अज्ञानता वश् आम लोगों से भी ज्यादा पीड़ित महसूस करते हैं।


इन समस्याओं के निवारण के लिए सर्वप्रथम वे हर प्रकार की सहज-तकनीक एक के बाद एक आजमाते जाते हैं और साथ ही उन बाधाओं के निवारण के लिए कभी तो हवन तो कभी पूजा के आयोजन कर डालते हैं।अक्सर दूर दूर से प्रसिद्ध गहन सहजियों व् भजन गायकों को अपने घर बुलाते रहते हैं कि उनके कदम पड़ने से उनकी कुछ सांसारिक दिक्कते कुछ कम हो जाएँ या समाप्त हो जाएँ।और जब कोई मनोवांछित फल नहीं मिलता तो दुखी होकर अपने ध्यान व् ध्यान के अभ्यास पर, स्वम् पर, अन्य सहज साथियों पर और यहाँ तक कि, कभी कभी तो "श्री माँ" की शक्तियों पर भी शक करने लगते हैं

अनजाने में ऐसे सहज-अनुयायी ध्यान के जरिये आध्यात्मिक उत्थान का सीधा सम्बन्ध अपनी सांसारिक सफलता से जोड़ देते हैं और शंकित रहने लगते हैं। अपनी परेशानियों से निजात पाने के लिए कभी तो ज्योतिषियों या पंडितों के पास अपने ग्रह-नक्षत्रो की स्थिति जान कर उनके मुताबिक कुछ उपाय करने लग जाते हैं। यहाँ तक कि,कभी कभी तो किसी तांत्रिक के पास भी चले जाते हैं और अपने मन में स्वम् को समझा लेते हैं कि अपनी बाधाओं को दूर करने के लिए ये रास्ते भी "श्री माता जी" ही दिखला रही हैं।

ऐसे प्रकृति व् "परमात्मा" विरोधी उपाय अपनाने के कारण वे अब वास्तव में कुछ गंभीर समस्याओं को निमंत्रण दे बैठते हैं जिनको सुधार पाना उनके लिए असंभव हो जाता है।

उनको एक सरल सी बात समझ नहीं आती कि ये सांसारिक स्तर की परेशानियां हमारे उत्थान के लिए वरदान का कार्य करती हैं।
क्योंकि इनकी तीव्रता व् आवृति(intensity & frequency) ज्यादा होने के कारण इनमे काफी शक्तियां छुपी होती हैं जिनको यदि हम सहर्ष स्वीकार करलें तो हमारी सहन करने की शक्ति बढ़ जाती है और बढ़ी हुई सहन शक्ति हमारी धारण-शक्ति को भी बढ़ा देती है

और जब "श्री माँ" देखती हैं कि अब मेरे बच्चे धारण शक्ति से संपन्न हो गए हैं तब जाकर "माँ" अपनी अनेको शक्तियां हमारी धारण-शक्ति के स्तर के अनुसार प्रदान कर हमें आध्यात्मिक जगत में और भी ज्यादा उत्थित होने का अवसर प्रदान करती हैं और हमको "सर्वोच्च चेतन" के स्रोत से जोड़कर हमसे चेतना के विकास के अनेको कार्य कराती रहती हैं।इस प्रकार से हम "उनके" अच्छे यंत्र बन कर कार्य करते जाते हैं और अंततः मुक्त-अवस्था को प्राप्त हो अपने जीवन को सार्थक बना पाते हैं।

अतः हमें किसी भी प्रकार की नकारात्मक दशा, स्थिति व् परिस्थिति में किसी प्रकार के उपायों यानि 'विकल्पों' से परहेज करना चाहिए। ये समस्त प्रकार के उपाय हमारे 'आंतरिक विकास' में बाधा ही बनते हौं क्योंकि हम "श्री माँ" पर विश्वास करने की स्थान पर इन पर विश्वास करने लगते हैं और अपनी विकास-प्रक्रिया को अवरुद्ध कर देते हैं। क्योंकि किसी भी प्रकार का 'उपाय' "श्री महामाया" की देंन है और 'सहर्ष-समर्पण' "श्री माँ आदि" का 'पुरूस्कार' है। वास्तव में "श्री महामाया" हमें उपाय सुझाकर और भी उलझा देती हैं और पूरी तरह हमें फसा कर अंत में हमें निशर्त-समर्पण के लिए मजबूर कर देती हैं।


वास्तव में हम अपनी अपनी चेतना के स्तर के मुताबिक ही मार्ग चुनते हैं और उसी के मुताबिक ही हमारी आत्म विकास व् साधना' में प्रगति होती है।जब हम किसी भी विकल्प को नहीं चुनेंगे तभी ही तो "निर्विकल्प" को प्राप्त होंगे।"

-----------------------------Narayan

                              "Jai Shree Mata ji"

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