Tuesday, April 2, 2019

"Impulses"--485-- "देशभक्ति"

                                                            

                                                     "देशभक्ति"


जब भी हम कभी 15 अगस्त व 26 जनवरी के अवसरों पर देशभक्ति के बारे में सोचते हैं अथवा स्मरण करते हैं।

तो हमारे जेहन में अपने देश को स्वतंत्र कराने वाले महानायकों में मंगल पांडे, शहीद भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर, अशफाकउल्ला खान, अमानुल्लाखांन,कैप्टन हमीद, आजाद हिंद फौज के सेनानायक, सुभाष चंद्र बोस व गांधी जी आ जाते हैं।

और इनके साथ ही आ जाता है हमारे देश की शान हमारे देश का ध्वज 'तिरंगा' और उसके इर्द गिर्द 'जन गण मन' गाते हुए हमारे भारत के नागरिक।

और इसके बाद 'वन्दे मातरम' एवम 'भारत माता की जय' का उदघोष होता और उसके तुरंत बाद रोंगटे खड़े कर देने वाले देश भक्ति के तराने।

जिनको सुनकर कभी तो हमारी आंखे नम हो जाती हैं तो कभी हमारा हृदय आक्रोश व आवेश से उबल पड़ता है। क्योंकि यह सब हम अपने बाल्यकाल से ही लगातार देखते व महसूस करते आ रहे हैं।

मुझे स्मरण हो आता है अपने ननिहाल आगरा शहर का बचपन जब सांझ ढलते ही रात्रि के आगमन पर सायरन बजता था और उस काल की सरकार के निर्देशानुसार सभी लाइटें बंद करा दी जाती थीं।

शायद यह धूमिल सी स्मृतियां 1967-68 की लड़ाई व उसके बाद की हैं। जैसे ही लाइट बंद होती थीं, वैसे ही लड़ाकू व माल वाहक हवाई जहाजों की आवाजें आनी प्रारम्भ हो जाती थीं और बड़े लोगों के हृदय हवाई हमले की आशंका से धड़कने प्रारम्भ हो जाते थे।

उस वक्त सभी लोग अपने घरों में रेते की के भरे हुए कट्टे रखते थे ताकि चीनी हवाई जहाज के बम्बार्डमैन्ट के कारण कहीं आग लग जाये तो तुरंत बुझाई जा सके।

इतना अवश्य याद है कि इन हालातों में भी अगले दिन हमारे देश के सभी धर्मों व जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के प्रतिदिन चौक में होने वाली जन सभाओं में एक जुट होकर आपस में मिलते थे।

और चीन के खिलाफ जोरदार नारे लगाते थे व देश भक्ति के गीत बजाए जाते थे। वास्तव में उस वक्त जो जज्बा देश भक्ति का उस वक्त के लोगों में था वो देखते ही बनता था।

हमारा पूरा देश एक अटूट रिश्ते में बंधा नजर आता था न कोई धार्मिक झगड़ा था और न ही कोई धार्मिक उन्माद था।

उसके बाद सन 1971 की पाकिस्तान के साथ होने वाली जंग के बाद हमारे देश का माहौल कुछ बिगड़ने लगा था। जगह जगह हिन्दू-मुस्लिम झगड़े होने लग गए थे आपसी विश्वास दरकने लगा था।

मुझे ये भी याद आ रहा है कि जब उस काल की प्रधान मंत्री श्री मति इंदिरा गांधी अपनी जन सभाएं करती थीं, तो ऐसा लगता था कि जैसे सारा शहर ही उस स्थल पर उमड़ पड़ा हो।

और जब उनके जोशीले भाषण प्रारम्भ होते थे लोग रोमांचित हो जाते थे और भारत माता की जयकारों से पूरा वातावरण गुंजित होने लगता था।

जो लोग भाषण स्थल पर किन्ही कारणों से आ नहीं पाते थे वे अपने अपने स्थानों पर रेडियो से चिपके मिलते थे।

क्या जज्बा था उस वक्त के हर वर्ग के लोगों में वास्तविक देशभक्ति का, आज वो एहसास व जज्बा लापता हो गया है।

देशभक्ति के नाम पर अब तो बस कुछ देर के लिए उत्सव होता है और बस उसके बाद सभी लोग सब कुछ भूल जाते हैं।

काफी दिनों से आज की तथाकथित 'देशभक्ति' को लेकर चिंतन चल रहा था क्योंकि पिछले चार-साढ़े चार सालों से देशभक्ति का एक नया ही रूप देखने को मिल रहा है।

मुझे धीरे धीरे याद आ रहा हैं, 12-13 साल की आयु में मेरठ शहर की गलियों में अन्य बच्चों के झुंड के साथ जलूस में शामिल होना।

कमीज पर 'जनसंघ' चुनावी पार्टी के प्रतीक चिन्ह दीपक का बैज व हाथों में उनके झंडे लेकर लगाए जाने वाले नारे, 'जीतेगा भई जीतेगा, दीपक वाला जीतेगा'।

ऐसे में अचानक सामने आ जाता था दूसरी पार्टी का जुलूस जिनमें अपने ही मोहल्ले के कुछ बच्चे व बड़े लोग शामिल होते थे।

एक दूसरे के जुलूस को देख कर कुछ नारे तेज हो जाते थे, और एक दूसरे को मुस्कुरा कर देखते हुए दूर से दुआ सलाम होती थी और दोनों जुलूस आगे बढ़ जाते थे।

किसी व्यक्ति के प्रति व किसी राजनीतिक पार्टी के प्रति किसी प्रकार का वैमनस्य नहीं होता था।

केवल एक स्वस्थ प्रतियोगिता जैसा महसूस होता था। आयु व समझ कम होने के कारण राजनीति की कोई समझ होने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता था।

हमारे शहर में 1982 में दंगे हुए व कर्फ्यू लगा, खबरों व सूचनाओं के अनुसार कई निर्दोष लोगों के मारे जाने की खबरें आईं व उन स्थानों चित्र देखे।

मानवता की हत्या होते देख हृदय चीत्कार कर उठा, आंखे नम हो गईं, यह मेरे जैसे इंसान के लिए अत्यंत पीड़ा दाई अनुभव था

दूसरा हृदय विदारक अनुभव रहा 1984 का, जब श्रीमति इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दूषित राजनीति प्रतिशोध व बैरभाव के चलते हमारे ही अपने हजारों सिख भाइयों की हत्या कर दी गई।

उनके घर जला दिए गए, उनका सारा सामान लूट लिया गया, उनकी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया।

मेरा हृदय उस पैशाचिकता के तांडव को देख रो पड़ा, तथाकथित 'व्यक्तिवादी देश भक्ति' के नाम पर की गई जघन्य सामूहिक हत्याओं को देख कर दिल टुकड़े टुकड़े हो गया।

यह सब देख कर हमारे दिल में इस बदनुमा व घृणित राजनीति व इस राजनीति को चलाने वाले लोगों से दिल में नफरत हो गई।

कुछ अहसान फरामोश व दुष्ट नेताओं ने भाड़े के गुंडों व दिग्भ्रमित लोगों के द्वारा हमारे देश के भाईचारे पर एक बदनुमा कलंक लगा दिया था।

शायद लोग यह भी भूल चुके हैं कि हमारे देश को मुगलों व अंग्रेजो से बचाने में हमारी सिख सेना का कितना बड़ा हाथ रहा है।

यदि "पूजनीय गुरु गोबिंद सिंह जी" की ये सेना न होती तो हम लोगों का कोई अस्तित्व ही शेष न रह जाता। शायद सबसे ज्यादा शहादतें हमारे सिख भाइयों व सिख परिवारों के नाम दर्ज हैं।

1984 के चुनाव में हम प्रथम बार आयु के मुताबिक योग्य हो चुके थे किंतु वोट डालने में कोई रुचि नहीं थी। घरके लोगों व मित्रों ने बहुत कहा कि वोट जरूर डालना चाहिए चाहे किसी भी पार्टी को डालो।

लोक तंत्र की रक्षा के लिए वोट डालना अति आवश्यक है, अतः उनका कहा मान कर पोलिंग बूथ पर गए।

वहां पर बैठे क्लर्क ने लिस्ट खोल कर हमारा नाम ढूंढ कर निकाला तो पता लगा कि 'जनता पार्टी' के नाम हमारा वोट तो पहले ही पड़ चुका था।

भगवान जी ने हमारी सुन ली थी, हम वोट डालने नहीं जाना चाहते थे तो हमसे वोट भी नहीं डलवाई और हमारी वोट व्यर्थ भी नहीं गई।

याद आता है हमें वो वक्त जब किन्ही वर्ग के लोगों की बहुलता के आधार पर पोलिंग बूथ बिना किसी झगड़े के आपसी सहमति से अपने आप बांट लिए जाते।

बांटे गए बूथ पर एक नियत समय के उपरांत पूरी की पूरी एक वर्ग की ही वोट पड़ती थी।बड़ा सही तालमेल होता था।

केवल उन्हीं बूथ पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था जहां दो तीन वर्गों के बराबर लोग होते थे।वहां कभी कभी छिट पुट झगड़े अक्सर हो जाते थे।

यह देख कर हम काफी समय तक वोट डालने ही नहीं गए क्योंकि हमारी वोट अपने आप ही पड़ जाया करती थीं।

घटिया राजनीति प्रेरित काश्मीर में होने वाला नरसंहार की स्मृति तीव्र पीड़ा की लहर उत्पन्न कर देती थी।

मंडल आयोग को लागू करने के विरोध में सैकड़ों युवाओं के द्वारा पेट्रोल डाल कर माँ-बाप के द्वारा बरसों तक सींचे गए बच्चों के शरीरों को भस्म होते देख होने वाली पीड़ाओं को अपने अन्तर्मन में महसूस करना।

1987 के दंगे में केसर गंज में आँखों देखे नरसंहार के माध्यम से चीत्कार करती हुई मानवता की पीड़ा को अनुभव करना।

निगार कांड में अपनी आंखों से टायरों में जलती हुई निर्दोष लोगों की लाशों के रूप में हैवानियत का नंगा नाच होते देखना।

और इसके बाद बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय डायरेक्ट फायरिंग में मरने वाले हजारों लोगों की लाशों को टीवी पर व अखबारों में नदी में बहता देखा, उनके धरवालों के मार्मिक क्रंदन से हृदय को आहत होता अनुभव किया।

इसके अतिरिक्त 1986 के बाद से इन लोभी राजनिज्ञों की गलत नीतियों के चलते निरंतर शहीद होने वाले हमारे देश के 'रक्षा प्रहरियों' के घरों में होने वाले रुन्दन को अपने हृदय में होते हुए महसूस करना।

इसके अतिरिक्त जात-पात, ऊंच-नीच, भेदभाव व धर्म के नाम पर राजनीति प्रेरित अनेको लोंगो की हत्याओं की टीस।
इन सभी घटनाओं में,

'न हिन्दू मरे, न सिख मरे, न ईसाई मरे, न मरे मुसलमान,

मरे तो केवल और केवल भगवान के बनाये गए निर्दोष इंसान,

शर्मसार हुई मानवता, उजड़े हजारों परिवार,

बदनाम हुई, नष्ट हुई हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था हुई तार तार।'

इस तथाकथित 'व्यक्तिवादी/पार्टी वादी देशभक्ति' के नाम पर। इन सभी घटनाओं ने हमारा दिल को पूरी तरह से झकझोर कर द्रवित कर दिया था।

जिस कारण हमारे हृदय में देश की सरकारों की गंदी राजनीति के प्रति वितृष्णा काफी बढ़ चुकी थी।

2014 में भारतीय जनता पार्टी के मैनिफेस्टो को देखा जिसके बारे में बहुत कुछ देश हित में अच्छा प्रचारित किया गया था।

तो सोचा चलो इस बार परिवर्तन को वोट दे दी जाय, अच्छा है, सत्ता परिवर्तन से कुछ हमारे देश में सकारात्मक बदलाव आएंगे।

विदेशी बैंकों में जमा कई लाख करोड़ काला धन देश में आएगा तो हमारे देश के लोगों की आर्थिक स्थितियां सकारात्मक रूप में परिवर्तित होंगी।

हमारा देश भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगा, 2 करोड़ हर वर्ष नियुक्तियां होंगी तो बेरोजगारी समाप्त होगी, लोगों का उत्पीड़न समाप्त हो जाएगा।

पुरानी सरकारों के कार्यकाल के समस्त 'भ्रष्टाचारी' जेलों में नई सरकार के आते ही जेलों में डाल दिये जायेंगे।

अयोध्या मंदिर का उचित निर्णय होगा तो मन्दिर-मस्जिद के नाम पर होने वाले साम्प्रदायिक दंगे बंद हो जाएंगे। काश्मीर के आर्टिकिल 370 को समाप्त कर अखंड भारत की स्थापना के जरिये।

काश्मीर में रहने वाले बेरोजगार दिशाहींन युवाओं को वहां पर लगने वाले नए उद्योग धंधों के जरिये रोजगार मिलेगा।
और पाकिस्तान द्वारा संचालित आतंकवाद पर लगाम कसेगी।

सरकारी व्यवस्था पारदर्शी होगी, हमारे देश के किसानों की स्थिति सुधरेगी आदि आदि।

पर ये क्या, सोचों के प्रतिकूल 2016 में 'प्रधान सेवक' के द्वारा अचानक बिना सोचे समझे नोटबन्दी कर दी गई, सभी व्यापारियों को चोर घोषित कर दिया गया।

उन 50 दुर्दिनों में लगभग 140 नियम बदले गए, प्रतिदिन कई कई बार लोगों को नियमों के नाम पर धमकाया जाता रहा।

और उसके बाद से आज तक हमारे देश के नागरिकों को चैन से सांस लेने का अवसर ही नहीं मिला।

हो सकता है नोटबन्दी से कुछ गिने चुने लोगों की पौ बारह हो गई हो किन्तु देश के 99 प्रतिशत लोगों को केवल हर प्रकार की असुविधा व तक्लीफ ही हुई।

राष्ट्रवाद व तथाकथित देशभक्ति के नाम पर एक के बाद एक आफतें हमारे देश पर नए नए अघोषित विभिन्न मुद्दों के नाम पर थोपी जाती रहीं।

धार्मिक व जातिगत उन्माद के चलते सड़कों पर तोड़फोड़, आगजनी, मारकाट, लूटपाट, बलात्कार आम होते गए।

चारों ओर आपसी घृणा व अशांति का वातावरण फैलता ही गया और हमारे देश के लोग खून के आंसू रोने के मजबूर कर दिए गए।

चारो ओर अराजकता, वैमनस्यता, बेरोजगारी, अविश्वास व घृणा का तांडव होने लगा।

कुछ ठोस विकास कार्य करने के स्थान पर स्वतंत्रता के बाद से मई 2014 तक की पुरानी सरकारों के कार्यों का रोना अभी तक रोया जाता जा रहा है।

लोकतंत्र को बनाये रखने में मदद करने वाली समस्त स्वतंत्र स्वयम संचालित स्वायत्त संस्थानों, जैसे इलेक्शन कमीशन, सी.बी.आई, आर.बी.आई, सेना व सुप्रीम कोर्ट तक में अनाधिकृत दखल अंदाजी की गई।

क्या यही अच्छे दिन आये हैं, NSO की 2017-2018 की रिपोर्ट के मुताबिक आज देश में साढ़े चार करोड़ लोग बेरोजगार हैं और लगभग 4 लाख छोटे उद्योग बंद हो चुके हैं।

और इस वर्ष लोकसभा चुनाव में लगभग 8 करोड़ युवा पहली बार वोट डालने जा रहे हैं। क्या इन युवाओं के लिए हमारी वर्तमान सरकार के पास इनके लिए किन्ही रोजगारों की कोई ठोस योजना है।

यह देखकर तो अत्यंत आश्चर्य व दुख हुआ कि हमारे माननीय प्रधान मंत्री जो अपने आप को अत्यंत ईमानदार व सबसे बड़ा देशभक्त अपने भाषणों में प्रमाणित करते हैं।

साथ ही स्वयं को देश की सेवा करने के लिए 'प्रधान सेवक' व देश की रक्षा करने के लिए 'सर्वोत्तम चौकीदार' कहलवाना पसंद करते हैं।

पुलवामा हमले की जानकारी होने के बाद भी अपने अपने तीन अन्य साथियों के साथ अलग अलग स्थानों पर चुनाव सभाएं करते पाए गए।

और बाद में हमारे रक्षा प्रहरियों की शहादत व उनके शौर्य पर अपनी राजनीति चमकाने में ही व्यस्त रहे, यह कार्य अभी तक जारी है।

सत्य बात यह है कि यह 'साहब' हमको कभी भी 'प्रधान मंत्री' के पद की शोभा व गरिमा बढ़ाने वाली शख्सियत नहीं लगे।

इनकी अमर्यादित भाषा शैली व अहंकारी व गरिमा रहित आचरण के चलते हमको तो सदा ये चुनाव प्रचार मंत्री से कभी अधिक नहीं लगे।

जिन्होंने अपनी पार्टी के अनेको वरिष्ठ नेताओं व अपने गुरु आडवाणी जी को एक किनारे कर दिया हो, जिनके बूते पर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आने योग्य हुई, वह इस देश का भला क्या हित करेंगे ?

वास्तव में इन 'महान हस्ती' ने तो बी.जे.पी की छवि ही तहस नहस कर दी है जिस आधार को लेकर यह पार्टी खड़ी हुई थी उस आधार को ही नष्ट कर दिया गया।

हम मानते हैं सुधार तत्क्षण नहीं होते किन्तु अच्छा होने के कुछ लक्षण तो दिखाई अवश्य देते हैं।

यदि किसी पुराने से पुराने रोग का उचित इलाज मिल जाये तो वह भी ठीक होने लगता है और उसके लक्षण स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने लगते हैं।

यदि किसी इलाज से रोग ठीक होने के स्थान पर बढ़ता ही जाता है तो यह बात निश्चित है कि इलाज गलत हो रहा है।

इसी कारण लोग डॉक्टर बदल लेते हैं और किसी अन्य डॉक्टर से इलाज कराते हैं। आम लोगों के बीच आज के राष्ट्रवाद/व्यक्तिवाद व देशभक्ति का तो आलम ये है कि,

यदि 'प्रधान सेवक' बनाम 'प्रधान चौकीदार' के कुछ कार्यों के प्रति कुछ पूछ भी लिया जाय, अथवा उनके कार्यों के प्रति कुछ अपने विचार प्रगट भी कर दिए जाय या किसी अन्य के विचार पेश कर दिए जाएं।

तो तुरंत पूछने वाले पर कांग्रेसी/समाजवादी/बसपा/ देशद्रोही व गद्दार का तमगा चिपका दिया जाता है।

तानाशाही का आलम यह है कि देश की प्रचलित बिकाऊ मीडिया, अखबारों व शोशल मीडिया पर कब्जा जमाए हजारों जर खरीद आई.टी.सेल की बनाई गई झूठी खबरों के कारण सच बात किसी को भी पता चल ही नहीं सकती।

जब तक कि आप विदेशों के विश्वसनीय सूचना एजेंसियों के द्वारा दी जाने वाली खबरों को न सुन लें अथवा देख लें।

इन्ही खबरों को सुन सुन कर हमारे देश के अधिकतर नागरिक मानसिक तौर पर पंगु होते जा रहे हैं।

क्योंकि इन्ही चैनल्स पर लगातार चलने वाली गलत सलत बातों को ही सच मानकर लगातार सुनते सुनते।

अपनी विवेकशीलता खोते जा रहे हैं यहां तक कि अच्छे पढ़े लिखे लोग भी इन्ही चैनल्स के चंगुल में फंसे पड़े हैं।

इन मीडिया चैनल्स के भ्रमजाल में फंसकर अधिकतर लोग अपने देश की वास्तविक स्थिति को ही परख नहीं पा रहे हैं।

और तो और यह देखकर तो और आश्चर्य होता है कि इस प्रकार के सस्ते राजनीतिक व्यक्तिवाद व विचारधारा वाद के जाल में उलझ कर लोग आपसी सौहार्द पूर्ण सम्बन्धो को भी खराब करने लगे हैं।

या तो वे आपको आपके राजनीतिक नजरिये व विचारों को अपने उथले आंकलन से गलत ठहरा देंगे।

अथवा आपको एक सुंदर सी 'उपमा' प्रदान कर किसी भी राजनीतिक पार्टी के पिट्ठू का अपने आप एक सर्टिफिकेट प्रदान कर देंगे।

यानी कि यदि आप देश हित में अपने कोई मौलिक विचार प्रगट करते हैं अथवा किसी अन्य की पसंद के विचार अथवा धारणा सबके सामने रखते हैं तो लोग बुरा मानने लगते हैं।

साथ ही आपको किसी न किसी तरीके से गलत साबित करने का भी प्रयास करते हैं।

जबकि बहुत से लोग अंदर खाने सत्य जानते हैं किंतु उसको किसी अन्य के मुख से सुनने, समझने व स्वीकार करने से भी डरने लगे है।

क्या यह वास्तव में लोक तंत्र है या अघोषित तानाशाही, देशभक्ति है या अंधवाद है ? हमारे जैसे कम अक्ल व अनपढ़ के लिए तो लोकतंत्र का मायने देश के हित के लिए नागरिकों के बीच मौलिक विचारों, भावनाओं व धरणाओं का आदान प्रदान करना।

व एक दूसरे के व्यक्तिगत व सामूहिक अनुभवों व चिंतन का खुले हृदय से स्वागत करना ही है। और हमारे जैसे साधारण इंसानों के लिए देशभक्ति का केवल एक ही मायने है और वो है,

इस देश के समस्त नागरिकों के प्रति धर्म,अर्थ,जाति,बिरादरी, ऊँचनीच, छुआ छूत व अमीरी-गरीबी आदि के निकृष्ट विचारों से ऊपर उठ कर सभी के प्रति समान भाव से सम्मान रखना व आपसी प्रेम व सौहार्द को बनाये रखना।

साथ ही अपने देश के अच्छे व सच्चे नागरिकों को आगे बढ़ने में हर सम्भव सहायता करते हुए अपने देश के कानून व संविधान के विरोध में कोई कार्य न करना।

हमारे चिंतन के मुताबिक तो 'वास्तविक देशभक्त' तो हमारे रक्षा प्रहरी ही होते हैं जो स्वेच्छा से अपने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए सहर्ष तैयार रहते हैं।

और उनसे भी बड़े देशभक्त उनके घर के सदस्य होते हैं जो अपने पुत्रों/पतियों/भाइयों/पिताओं को खुशी खुशी अपने देश पर उत्सर्ग करने की प्रेरणा बनते हैं।

वास्तव में आज की तिथि में शायद ही कोई सच्चे देशभक्त नेता हों जैसे स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हुआ करते थे।

साधारण आम मानवों को तो छोड़ो जब सत्य के मार्ग पर चलने वाले सहजी दिग्भ्रमित होकर हिंदु-मुस्लिम, जात-बिरादरी व पार्टी-पार्टी करते हैं तो अत्यंत आश्चर्य व अफसोस होता है।

यही नहीं ऐसे सहजी अन्य सहजियों से राजनीतिक पार्टियों व इनके नेताओं पर निम्न स्तर तक वाद-विवाद करते हुए सारी नैतिक सीमाएं तक पार कर जाते हैं।

कई बार तो बुरी तरह अपशब्दों का उपयोग करते हुए बुरी तरह झगड़ा तक करने लगते हैं अपने राजनीतिक विचार व धारणाएं एक दूसरे पर थोपते रहते हैं।

और हैरानी तो तब और बढ़ जाती है जब काफी पुराने सहजी 'प्रधान सेवक' को भगवान का अवतार बताने लगते हैं। लगता है ऐसे घोर भ्रम में जकड़े हुए सहजियों को "श्री माता जी" की बाते याद नहीं हैं।

ठीक है यदि आप किसी राजनीतिक नेता व उसकी नीतियों को पसंद करते है अथवा पसंद नहीं करते तो कोई बात नहीं।

इस प्लेटफार्म पर हर एक को स्वतंत्रता के साथ अपनी बात रखने का अधिकार है किंतु एक दूसरे की बातों को गलत ठहराने व साबित करने के लिए अपनी बातें व विचार थोपने का अधिकार नहीं है।

अतः आप सभी से विनम्र अनुरोध है कि एक दूसरे के विचारों व भाववनाओं का सम्मान करते हुए आपसी प्रेम व सौहार्द खंडित न होने दें।"

यदि हमारी बातें आप सभी को नागवार गुजरती हैं तो हम हृदय क्षमा चाहेंगे। किन्तु 'हम जो हैं सो हैं हमें अपनी मौलिकता पर न तो कोई संदेह है और न ही कोई शिकवा है।'

हमें राजनीति में न तो कभी कोई दिलचस्पी ही रही और न ही बचपन के अतिरिक्त हमने किसी राजनीतिक पार्टी के झंडे ही उठाये हैं और न ही कभी उठाना चाहते।

किन्तु हमारी रुचि व इच्छा 'देश हित' व मानव हित में पूरी है। और अपनी मातृभूमि व विश्व के अन्य लोगों के कल्याण के लिए हम अपनी आत्मिक प्रेरणा व आत्मिक जागृति के आधार पर।

जो भी बन पड़ता है वह बिना किसी के अन्य के निर्देश, कहे,सीखे व समझाए सदा करते रहते हैं। हम अपने देशप्रेम व देशभक्ति का कोई भी प्रमाण देने की इच्छा व आवश्यकता नहीं समझते।

न तो हम सत्य बात को कहने अथवा रखने से भयभीत होते हैं और न ही किसी को अपने कब्जे में रखने की ही सोचते हैं।

न ही मृत्यु का भय है और न ही जीवन जीने की लालसा ही है।जो भी "प्रभु" चाहें वह बिना किसी हिचक स्वीकार है।

हम किसी अन्य व्यक्ति के नजरिये व सोचों के मुताबिक देशभक्ति दिखाने में विश्वास नहीं रखते।

आप सभी से विनम्र निवेदन भी करेंगे कि यदि आप चाहें तो हमारा सार्वजनिक बहिष्कार कर हमसे दुआ सलाम भी समाप्त कर सकते हैं, हमें कुछ भी खराब नहीं लगेगा।

हमारी बातों व विचारों के प्रति आप सभी का विरोध सदा स्वागत योग्य रहेगा और हमारे लिए सदा प्रेरणा का ही काम करता रहेगा।

कृपया हमारे इन विचारों के प्रति अपनी आलोचना करना जारी रखियेगा। आपको यदि हमारे मौलिक विचार पसंद न आये तो आप हमें बिना किसी झिझक व हिचक के Unfriend भी कर सकते हैं।

भले ही इन तथ्यों पर आप हमारे प्रति अपने भाव व विचार बदल लें किन्तु हम आपके प्रति वही सौहार्द पूर्ण व प्रेममयी भाव बनाये रखेंगे।

निश्चिंत रहें जब तक आप हमसे स्वयम आपसी व्यवहार समाप्त नहीं करते तब तक हम अपनी तरफ से अपने आप सभी से व अपने नजदीकियों से स्वयम दूर नहीं होंगे और न ही होना चाहेंगे।

हम तो सच्चे हृदय से "माँ आदि शक्ति श्री माता जी निर्मला देवी जी" की देखरेख में "उनके" दिखाए रास्ते व आंतरिक-साधना-मार्ग पर चलने का प्रयास कर रहे हैं।

जिन्होंने हमारे अस्तित्व की मौकिकता व मौलिक अनुभूतियों व विचारों को अपने मार्गदर्शन व 'दिव्य शक्तियों' के माध्यम से और पुख्ता ही किया है।

"श्री माता जी" भी सदा यही कहती हैं कि हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि तो सिर्फ नाम हैं वास्तव में हम सभी एक ही "परमपिता" की संतानें हैं।" 

'जय हिंद' 'वन्दे मातरम'

--------------------------------Narayan
........Jai Shree Mata Ji

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