Thursday, April 18, 2019

"Impulses"--486--"नवरात्रे=नव चेतना"


"नवरात्रे=नव चेतना"


"समस्त सहज साथयों को इस चेतना की ओर से ध्यान उन्नति के लिए शुभतम दिवसों यानि पावन 'नवरात्रों' के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

यह चेतना आप सभी के लिए शुद्ध इच्छा पूर्ण हृदय से आप सभी के 'आत्मिक उत्थान' के लिए "श्री माँ" से प्रार्थना करती है। यूं तो ध्यानस्थ रहने के लिए वर्ष के सारे के सारे दिवस शुभ ही होते हैं।

जब भी ध्यान में रहने का भाव हृदय में आता है वह शुभतम पल ही होते हैं। क्योंकि उन विलक्षण पलों में हम अपने भीतर "प्रभु" को आभासित करते हैं और "उनके" सानिग्ध्य का आनंद उठाते हैं।

किंतु "परम-माता" ने इन पावन नौ दिनों में शक्ति की उपासना करने वाले साधक/साधिकाओं के लिए अपनी विशिष्ट शक्तियां प्रदान करने व्यवस्था की है।

ये बिल्कुल ऐसा ही है जैसे शिक्षार्थियों की साल में दो बार परीक्षा ली जाती है और फिर उसके बाद उसका परिणाम आता है।

यानि जब हम पूरे साल हृदय से ध्यान-अभ्यास में जुड़े रहते हैं तो उसका पारितोषक "श्री माँ" साल में दो बार अपनी विशेष शक्तियां प्रवाहित करके नवरात्रों में प्रदान करती हैं।

"श्री माँ" की अनेको विशिष्ट शक्तियां इन नौ दिनों में समस्त ब्रह्मांड में इस धरा के वातावरण में तीव्रता के साथ विचरण कर रही होती हैं।

विशेष तौर से पूरे विश्व में "देवी" के जितने भी 'स्वयम्भू' स्थान हैं, उन सभी स्थानों से नवरात्रों में वो समस्त शक्तियां प्रवाहित होती हैं जिनका लाभ समस्त 'देवियो' के 'उपासक' 'ध्यानी' उठाते हैं।

जिस 'आयाम' में भी सहज-अभ्यासी विद्यमान होता है उसी स्तर पर उन ध्यान-अभ्यासियों को लाभ अवश्य होता है। मेरी चेतना के मुताबिक विभिन्न अवस्था वाले सहजियो को नीचे वर्णित निन्न स्थितियों में ध्यानस्थ रहना चाहिए:-

1.सर्वोत्तम अवस्था उन सहज-अभ्यासियों की है जो अपने मध्य हृदय सहस्त्रार पर "श्री ऊर्जा" को महसूस कर पाते हैं उन्हें अपनी चेतना को इन नौ दिनों में अंतरिक्ष में बनाये रखना चाहिए।

ताकि "श्री माँ" की उच्च घनत्व की निराकार शक्तियां उनके यंत्र में प्रविष्ट होकर उनके यंत्र को और भी ज्यादा सशक्त उन्नत कर सकें।

2.जिन सहजियों को अपने मध्य हृदय में ऊर्जा महसूस नहीं हो पाती किंतु सहस्त्रार पर महसूस होती हैं उन्हें अपनी चेतना को आकाश मध्य हृदय में रखना होगा और अपना चित्त सहस्त्रार पर बनाये रखना होगा।

3.और जिनको अपने सहस्त्रार पर कुछ भी महसूस नहीं होता है वह सहजी अपने चित्त को अपनी विशुद्धि में अपनी चेतना को सहस्त्रार मध्य हृदय में लगा कर रखें।

4.और जिन सहजियों को किसी भी चक्र में ऊर्जा महसूस होती है वे लोग अपने चित्त को उसी चक्र पर रखें अपनी चेतना को मध्य हृदय में बनाये रखें।

5.और यदि किन्ही सहजियों को किसी भी चक्र में कुछ भी महसूस नहीं होता उनको चाहिए कि वे अपनी चेतना चित्त को अपने मध्य हृदय में रखें।

"श्री माँ" के अक्स को कुछ सैकिंड देखने के बाद "उनको" अपने हृदय में महसूस करने का अभ्यास करते रहें। उपरोक्त स्तर वर्ग के सहजीयों को इन नवरात्रों के खास दिनों में उपरोक्त प्रकार से ध्यानस्थ रहने में कोई कोई विशेष लाभ अवश्य होगा।"

-------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


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