Friday, July 12, 2019

"Impulses"--496--· "ध्यान"


· "ध्यान"

"अक्सर हम सभी महसूस करते हैं कि जब भी हम अपने भीतर में उतर कर "श्री माँ" के नजदीक स्वयं को पाते हैं। तो समस्त प्रकार के सांसारिक विचार,भाव, इच्छाएं सोचे जाने कहाँ गुम हो जाते हैं।

और रह जाते हैं केवल और केवल हम और हमारा आंतरिक अस्तित्व जो निरंतर "श्री प्रेम" से पोषित होने लग जाता है। यही स्थित हमारे अन्तःकरण के विकास का पर्याय बन हमें आध्यात्मिक रूप से उन्नत करने में सहायक सिद्ध होती है।

इसी स्थिति को हमने अपने दैनिक जीवन के निर्वहन के दौरान भी बनाये रखना होगा जिससे दोनों कार्य साथ साथ चल सकें। वास्तव में ध्यान कुछ और नहीं बस हमारे स्वयम के आंतरिक अस्तित्व का हमारी चेतना में मुखर होना ही है।

आम हालात में हम किन्ही सांसारिक कारणों के चलते मन की वीथिकाओं में बारम्बार फंसते रहते हैं जिसके कारण अपने मन में कभी खुशी तो कभी दुख की अनुभूति करते रहते हैं।

हमारा मन हमारे भौतिक संसार का प्रतिनिधित्व करता है और हमारा हृदय 'परमात्म जगत' को प्रगट करता है।

इसीलिए जब भी कभी हम अपने "परम माता-पिता" की ओर उन्नमुख होते हैं तो हमारा हृदय तुरंत सक्रिय होकर "उनकी" ओर जाने का मार्ग हमारे अन्तःकरण में सुझाने लगता है।

और जैसे जैसे ही हम अपने भीतर की ओर अग्रसर होने लगते हैं वैसे वैसे हमारा हृदय बिन बात के आनंद की अनुभूति को प्रगट करने लगता है।

और आनंद का अनुभव होने पर हमारा रोम रोम पुलकित हो जाता है जिसका अनुभव हमारे चित्त में रहने वाले या जिनके चित्त में हम रहते हैं, वे भी यकायक आनंद से भर जाते हैं।

यह बिल्कुल ऐसे ही होने लगता है जैसे 'रात की रानी' की झाड़ी अंधेरे की आगमन पर उसके स्वागत में प्रसन्न होकर महकने लगती है।

इसकी भीनी भीनी खुशबू सारे वातावरण को खुशगवार बना देती है जिसके कारण उस रास्ते से गुजरने वाले पथिकों को बहुत अच्छा महसूस होता है।

अतः हम सभी को हर स्थिति हर परिस्थिति में हर प्रकार के सांसारिक उपक्रमों को करते हुए भी लगातार ध्यानास्थ रहना चाहिए।

जिसके लिए हमें मात्र अपने सहस्त्रार मध्य हृदय पर 'दिव्य ऊर्जा' की अनुभूति को अपनी चेतना के संज्ञान में निरंतर लेते रहना ही होता है। और इसके लिए बाह्य रूप से हमें कुछ भी करने की कोई आवश्यकता ही नहीं होती है।

सब कुछ स्वतः ही होता रहता है और हमारा ध्यान अनवरत चलता ही रहता है जिसके द्वारा हमारा सूक्ष्म यंत्र निर्बाध पोषित होता रहता है।"

------------------------------------------------Narayan
".Jai Shree Mata Ji"



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