Monday, September 9, 2019

"Impulses"--505--'सहज सेंटर्स में घटती हुई सहजियों की संख्या'


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'सहज सेंटर्स में घटती हुई सहजियों की संख्या'

"अभी कुछ दिवस पूर्व सोलन में सम्पन्न हुए 'राष्ट्रीय सहज योग सेमिनार' में कुछ कोर्डिनेटर्स से मुलाकात हुई।

जिन्होंने अपने सहज सेंटर्स में सहजियों के घटने कुछ ने सहजियों के बढ़ पाने की बातों का जिक्र किया। और हमसे इसके कारणों के ऊपर अपने विचार अनुभव जानने की इच्छा भी प्रगट की।

अतः हमने उनके साथ ध्यानास्थ अवस्था में इस विषय पर अपनी चेतना के द्वारा किये गए गम्भीर चिंतन मनन को शेयर किया जो आप सभी के सामने आज रखने जा रहे हैं।

इस प्रकार की बातें काफी पहले से हमको लगभग हर स्थान पर जहां पर भी हमारा जाना होता रहा है, अक्सर सुनने को मिलती रहीं हैं।

हालांकि, हमारे अनेको सहजियों के द्वारा सभी जगह 'आत्मसाक्षात्कार' के कार्यक्रमों के माध्यम से हमारे देश में प्रतिदिन सैंकड़ों सहजी बढ़ते जा रहे हैं।

किंतु हमारे सहज परिवार में शामिल होने वाले इन नए सदस्यों के स्तर के अनुरूप हमारे पास इन लोंगों के साथ शेयर करने देने के लिए क्या अपने वास्तविक ध्यान अनुभव हैं ?

इस वर्तमान काल में आने वाले यह लोग हम सभी के जरिये "श्री माँ" के चरणों में लगातार रहे हैं जिनमें से अधिकतर का आंतरिक स्तर पहले से ही उन्नत है।

क्या ये सभी नए सहजी सहज के प्रारम्भिक तौर तरीकों तकनीकों को सहजता प्रसन्नता के साथ अपनाने को तैयार हैं ?

और जब ये लोग सेंटर्स आना प्रारम्भ करते हैं तो हर बार एक ही प्रकार के ध्यान-तकनीक को अपनाने को बाध्य होते हैं। 

जिसके कारण एक समय ऐसा जाता है की ये नए आने वाले सहजी सेंटर्स जाने से कतराने लगते है,यहां तक कि कुछ पुराने सहजी भी सेंटर्स में ऊब महसूस करने लगते हैं और धीरे धीरे उनके आने की बारंम्बरता घटती जाती है।

यह बिल्कुल सत्य है कि सामूहिक रूप से ध्यान में बैठने पर लाभ होता हैं क्योंकि एक दूसरे की कुंडलिनी सहस्त्रार पर आने पर एक दूसरे की सहायता करती है।

किन्तु यह भी सत्य है कि ध्यान के तौर तरीकों की एकरसता साधक/साधिका में नीरसता को उत्पन्न करती है जिसके कारण उनमें से अनेको की रुचि घटती ही जाती है।

यदि सेंटर्स में हर सप्ताह नए तरीके, नए अंदाज, नए आयाम, नई समझ के साथ गाइडिड मैडिटेशन का आनंद लिया जाय तो सदा सभी का उत्साह बना रहेगा।

यही नहीं यदि ऐसा होने लगे तो सभी सहजी सदा यही प्रयास करेंगे कि वे एक बार की भी कलेक्टिव मिस करें।क्योंकि हर बार नए अंदाज से ध्यान में डूबने का आनंद सदा आकर्षित करेगा।

सेंटर्स जाने वाले सहजियों में रुचि बनाये रखने के लिए "श्री माता जी" की वाणी के बाद कम से कम आधा घंटे के लिए नए नजरिये नए विषय पर गाइडिड मैडिटेशन होना चाहिए ताकि सभी को हर बार नए तरीके से आनंद आये।

हम सभी जानते हैं कि इस रचना के कण कण में "माँ आदि शक्ति" की शक्ति विद्यमान है।

यदि हम इस 'रचना' की सभी 'रचनाओं' पर हर बार एक एक करके चित्त के माध्यम से ध्यान लगा कर अपने सहस्त्रार मध्य हृदय में "श्री माँ" की अनुभूति करें तो यकीनन हर बार के ध्यान में एक अलग ही लुत्फ आएगा।

जिसको अपना कर हम एक वर्ष में कम से कम 50-55 बार नए तरीके, भाव अनुभव के साथ ध्यान का मजा उठा सकेंगे।

आप सभी को पता होना चाहिए कि "श्री माता जी" ने स्वयम ध्यान के नए नए तरीकों को खोजने की बात कही है:-

("You have to change The Methods.A person who can not change his methods, can not spread Sahaj Yoga.

Because he sticks to only one way, with which people get bored.You should find new ways."--H.H.Shree Mata Ji Nirmala Devi)

किन्तु यह तभी सम्भव होगा कि घोर अज्ञानता के चलते ध्यान के एक ही तरीके का संस्था के स्तर पर केंद्रीय करण होने दें।

बेहद आश्चर्य होता है यह देखकर कि आज लगभग हर स्थान पर सहज संस्थाओं के जड़-नियम-कायदे के द्वारा सामूहिक सहज-ध्यान चलाया जा रहा है।

जो वास्तव में 'कुंडलिनी माँ' के द्वारा साधक/साधिका के हृदय में दी जाने वाली विभिन्न प्रेरणाओं के द्वारा संचालित होना चाहिये था।

यानि 'सहज योग' को सहज संस्थाएं 'मानसिक स्तर' पर बनाये गए ध्यान के तौर-तरीकों नियमों से संचालित करने का अटूट प्रयास कर रहीं हैं।

वास्तविक ध्यान 'पूर्व-संस्कार-रहित-हृदय' में विचरण करने वाली 'स्वत्-स्फूर्त-दिव्य शक्तियों के द्वारा ही घटित होता है।  कि आगन्या के स्तर पर बनाये गए ध्यान- नियमों ध्यान-प्रक्रियाओं के द्वारा।

इन्हीं कारणों से अधिकतर सहज सेंटर्स में जाने वाले सहजी चैतन्य को सही प्रकार से अनुभव नहीं कर पाने के कारण अरुचि का शिकार होकर साप्ताहिक ध्यान में जाने से बचने लगते हैं।

आप सभी अक्सर महसूस करते होंगे कि जब भी कभी किसी सहज-माध्यम के द्वारा हवन/पूजा/ध्यान इत्यादि कराए जाते हैं।

तो कभी कभी तो बहुत आनंद आता है और कभी बिल्कुल भी मजा नहीं आता और ही चैतन्य का प्रवाह ही ज्यादा अनुभव होता है।

क्या कभी हमने इसके कारण खोजने का प्रयास किया कि ये दो विपरीत स्थितयां क्यों अक्सर प्रगट होती रहती हैं ?

मेरी तुच्छ समझ चेतना के अनुसार ऐसा हवन/पूजा/ध्यान कराने वाले 'माध्यमों' की मन स्थिति/हृदय स्थिति के कारण होता है।

यदि कुछ सहज-माध्यम, हवन/पूजा/ध्यान कराते समय अपने मन में सुनिश्चित पूर्व निर्धारित क्रम के अनुसार यह कार्य सम्पन्न कराते हैं, जिस क्रम/मंत्रों को उनकी चेतना अपने संज्ञान में नहीं ले पाती तो ऊर्जा का स्तर सदा घटेगा और आनंद नहीं आएगा।

इसके विपरीत यदि कुछ 'माध्यम' उस ध्यान के क्रम मंत्रों की ऊर्जा को अपनी चेतना,यंत्र हृदय में आभासित शोषित करते हुए ही पूजा/हवन/ध्यान आदि कराते हैं।

तो सभी को चैतन्य प्रचुर मात्रा में अनुभव होगा और ध्यान में भी अत्यंत आनंद आएगा। यानि कि ध्यान से सम्बंधित कोई भी क्रिया/प्रक्रिया/अक्रिया मन के कोष में एकत्रित ज्ञान सूचनाओं पर आधारित आश्रित नहीं होनी चाहिए।

बल्कि ध्यान से सम्बंधित सभी उपरोक्त घटनाक्रम हृदय से यकायक उत्पन्न होने वाली प्रेरणाओं पर ही निर्भर होने चाहिए तभी ध्यान में वास्तविक आनंद घटित होगा और 'दिव्य ऊर्जा' की भी अनुभूति होगी।

हमारे देश में अच्छे स्तर तक उन्नत कई सहजी हैं जो सभी सहजियों सहज सेंटर्स में सामूहिक रूप से अत्यंत आनंद दाई रुचिपूर्ण ध्यान कराने का माध्यम बन सकते हैं।

किन्तु यह देखा गया है कि अधिकतर सहज संस्थाधिकारी सहजियों की चेतना पर शासन करने की इच्छा रखने के कारण ऐसे अच्छे सहजियों को सहज सेंटर्स में ध्यान कराने का अवसर ही नहीं देने देते।

क्योंकि उनको लगता है कि यदि आम सहजी सामूहिक रूप से उन्नत हो गए तो कोई भी उनकी बातें नहीं मानेंगे और उनके लिए ऐसी स्थित का सामना करना अत्यंत मुश्किल हो जाएगा।

यंहा तक कि सहज सेंटर्स में "श्री माता जी" के वही लेक्चर्स चलाये जाते हैं जिनके माध्यम से आम सहजियों को कंट्रोल किया जा सके।

जबकि "श्री माता जी" के अनेको ऐसे लेक्चर्स हैं जिनमें "श्री माता जी" ने गूढ़ विषयों तथ्यों को ध्यान में खोजने उनको पाने पर बल दिया है। "उनके" हजारों लेक्चर्स में से कुछ के अंश नीचे दिए जा रहे हैं।

"उन्होंने" अपने एक लेक्चर में बताया है कि:-

1.("You should make a Tree of Kundalinis then "Par Brahmma" will pull you up."--H H Shree Mata Ji Nirmala Devi)

अब यह जो उपरोक्त बात "उन्होंने" कही इस बात के अनुसार हम किस प्रकार से कुण्डलीनियों का वृक्ष तैयार करेंगे ताकि "श्री पार ब्रहम्मा" हमको अपनी ओर खींच लें।

यदि ये बात सहज संस्था अधिकारी से पूछी जाए तो क्या वह अपने अनुभव से इन बातों को समझा पाएंगे अथवा हम सभी को इस बात को समझने आत्मसात करने के स्तर तक उन्नत कर पाने में मदद करेंगे।

एक और बात "श्री माँ" ने कही है:-

2.("चित्त के एक कटाक्ष से कुंडलिनी उठ सकती है।"-- पू श्री माता जी निर्मला देवी)

क्या इस प्रकार का चित्त का कटाक्ष हमें हमारे सेंटर्स के कॉर्डिनेटर/स्टेट कॉर्डिनेटर/ट्रस्टी सीखा पाएंगे ?

एक अन्य लेक्चर में उन्होंने कहा है कि:-

3.("When your Agnya will be clear then you can order to Sun, Moon and all the Elements."--H H Shree Mata Ji Nirmala Devi)

क्या हमारे सहज पदाधिकारी हमको इस स्थिति में आने का अभ्यास करा पाएंगे कि हम अपने 'आगन्या' को उतना स्वच्छ कर सकें कि हम प्रकृति को अपने अनुसार चलाने की आज्ञा दे सकें।

एक बार "श्री माता जी" ने कहा:-

4.("After coming to Sahaja Yoga and after your Sahasrara has opened, you have to pass through these four Chakras, Ardha-bindu, Bindu, Valay, and Pradakshina. 

After passing through these four chakras only you can say that you have become a Sahaja yogi."--H H Shree Mata Ji Nirmal Devi)

ये जो चार चक्रों के बारे में "श्री माता जी" ने सहस्त्रार के ऊपर के इन चार चक्रों के बारे में बताया है इनको स्पर्श करने के लिए हम सहज सेंटर्स में कब अभ्यास करेंगे ?

क्या संस्थाधिकारी इनको प्राप्त करने का अभ्यास करवाएंगे। ?

एक और "उनका" कथन है:-

5.("आपकी आत्मा आपको शक्तिशाली बनाती है। आपको मात्र अपनी इच्छा शक्ति इस प्रकार से अपनी आत्मा में डालनी होगी "हां, मेरी इच्छा है कि मेरी आत्मा कार्यान्वित हो।"

और तब आप अपनी आत्मा के अनुसार काम करना शुरू कर दें। एक बार आप अपनी आत्मा के अनुरूप काम करने लगते हैं, तो आप पाएंगे कि आपको किसी भी चीज़ की गुलामी नहीं रह जाती।" --- पू श्री माता जी निर्मला देवी)

क्या हम सभी को संस्थाधिकारी उपरोक्त प्रकार से हमारी आत्मा को कार्यान्वित करने का कोई रास्ता बता पाएंगे जिसका जिक्र "श्री माँ" ने अपने इस कथन में किया है ?

"उन्होंने" हम सभी को सीख दी है:-

6.("मै आपको चेतावनी देना चाहती हू - यदि आप अपने अन्तस मे गहन नही उतरते और ये नही देखते कि आप क्या है और आप अपने परिवतॅन को नही अपनाते तो कुछ भी घटित हो सकता है।"-- पू श्री माता जी निर्मला देवी)

क्या सेंटर्स में अपने अंतस में उतरने का सामूहिक अभ्यास किया जाता है अथवा कराया जाता है ?

एक लेक्चर में "श्री माँ" हमें सलाह दे रही हैं:-

7.("परंतु मेरी बात को सिर्फ सुनकर ही आप इस बात को मान लें बल्कि आपको इसे ह्दय से जानना है और अपने चैतन्य से जानना है आप इसे अपनी कुंडलिनी के माध्यम से भी जान सकते हैं।"-- पू श्री माता जी निर्मला देवी)

"उनकी" इस सलाह पर चल कर क्या संस्थाधिकारी/कॉर्डिनेटर आदि हमको यह अनुभव सेंटर की सामूहिकता में करा पाएंगे ?

"श्री माँ" हमें समझाती हैं कि:-

8.("People are lost because they have no knowledge. Knowledge from the books is no knowledge. Their knowledge must come from within, from within themselves."--H H Shree Mata Ji Nirmala Devi)

"श्री माता जी" के इस कथन के विपरीत कुछ सहजी/सहज संस्थाधिकारी अन्य सहजियों को ज्ञान देने/फटकारने/कंट्रोल करने के लिए "श्री माता जी" के कुछ लेक्चर्स का प्रयोग करते हैं।

यहां तक कि अपने आंतरिक ज्ञान को प्राप्त करने इस अन्तर्ज्ञान को अन्य सहजियों के बीच बाटने का प्रयास करना तो दूर ऐसा करने की सोचते तक नहीं हैं।

और यदि कुछ सहजी स्वाभिक रूप से गहन ध्यान में प्राप्त हुए अपने आंतरिक ज्ञान को सहजियों के बीच बाटते हैं।

तो यही जड़ संस्थाधिकारी/सहजी ऐसे उच्च कोटि के सहजियों को सहज विरोधी/"श्री माता जी" विरोधी बता कर उनके बारे में उल्टा सीधा नकारात्मक रूप से बाकी सहजियों के बीच प्रचारित करते हैं।

यहां तक कि ऐसे अच्छे स्तर के सहजियों के सहज कार्यक्रमों में अपने अहंकार राजनीति के चलते हर प्रकार से अड़ंगा लगाने का असफल प्रयास करते भी नजर आते हैं।

और अपने अहंकार, पद अज्ञानता के भ्रम में यह भूल जाते हैं कि ऐसा करके वे समस्त देवी-देवताओं रुद्रों के कोप का शिकार होने जा रहे हैं।

ये शक्तियां चेतना के कार्य में रोड़ा डालने वालों का क्या हाल करेंगी, इस प्रकार के सहज-विरोधी लोगों को अभी इसका कोई एहसास तक नहीं है।

साथ ही यह भी कहते हैं कि किसी भी सहज के कार्यक्रम को करने से पूर्व हमसे आज्ञा लो, मानो सहज संस्थाधिकारी स्वयं "श्री माता जी" बन गए हैं।
हमारा सभी सहजियों से प्रश्न है कि' क्या:-

*"श्री माता जी" ने अपने किसी भी लेक्चर में सहजियों के द्वारा किये जाने वाले सहज के कार्यक्रमों को करने के लिए सहज सेंटर्स के अधिकारियों से आज्ञा लेने के लिए कहा है ?*

यदि नहीं कहा तो फिर यह नियम किस लिए बनाया जा रहा है, कि सहजियों को सहज के कार्य करने के लिए सहज संस्थाधिकारी से परमिशन लेनी पड़ेगी।

क्या हम सभी यह नहीं जानते कि सहज का कोई भी कार्य "श्री माँ" स्वयम संचालित करती हैं, उन्ही की प्रेरणों से सहज के समस्त कार्यक्रम चलते हैं तो फिर किससे और क्यों परमिशन ली जाय।

बल्कि होना तो यह चाहिए कि सहज संस्था ऐसे सहजियों को सदा प्रोत्साहित करें जो अपने स्तर पर, अपने व्यक्तिगत खर्चे पर संस्था की मदद के बिना सहज कार्य कर रहे हैं और "श्री माँ" का प्रेम सभी जगह प्रसारित करने के यंत्र बन रहे हैं।

*सहज का कार्य करना सभी सहजियों के लिए श्वास लेने के समान है तो अब क्या स्वास लेने के लिए भी किसी से आज्ञा लेनी पड़ेगी।'*

यही कारण हैं कि सहज सेंटर्स के स्तर पर सहजी आंतरिक रूप से उन्नत नहीं हो पाते और ही आने वाले नए सहजियों के लिए आगे बढ़ने की प्रेरणा ही बन पाते जिसके कारण सामूहिक रूप से सहज का वास्तविक स्वरूप सिमट रहा है।

इसीलिए अब सामूहिकता में किये जाने वाले 'गम्भीर-ध्यान-अभ्यास' का स्थान, भव्यता से ओत-प्रोत पूजा/हवन,ध्यान-उत्सव, सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन-नृत्य आदि लेते जा रहे हैं।

और ध्यान में जिस स्थान पर "श्री माता जी" हम सभी को सामूहिक रूप से देखना चाहती थीं उपरोक्त कारणों से उस स्थान पर स्थापित होने की "उनकी" आशाएं धूमिल होती जा रही हैं।

अपने समस्त सहज साथियों से यह चेतना विनम्र निवेदन करना चाहती है कि अभी भी चेत जाएं, "श्री माता जी" की गहन इच्छा का सम्मान करते हुए अपने अंतस में उतरने का अभ्यास बनाएं।

सहज संस्थाओं के कुछ अव्यवहारिक नियमो प्रोटोकॉल के चलते आज की स्थिति में सहज सेंटर्स में इस प्रकार की सच्ची सामूहिक साधना के लिए जगह नहीं है।

अतः अपने अपने स्थान के निकट रहने वाले सहजियों की सामूहिकता की व्यवस्था कर माह में कम से कम दो बार 1-2 घण्टे के लिए विभिन्न तथ्यों उद्देश्यों पर आधारित ध्यान को अपनी चेतना में घटित होने देने की व्यवस्था करें 

तभी "श्री माँ" की इच्छा के अनुरूप हम सभी उन्नत हो पाएंगे। ऐसे ही हम सभी का समय व्यर्थ व्यतीत होता जाएगा और हमारी मृत्यु का समय हमारे सर पर खड़ा होगा।

तब तो सहज सेंटर्स काम आएंगे, संस्था के नियम प्रोटोकॉल से हमें कोई आराम मिलेगा और सहज अधिकारी/कॉर्डिनेटर हमारी मदद ही कर पाएंगे।

उस कठिन समय का सामना हमें अकेले ही करना होगा, ऐसे में इस अत्यंत दुरूह समय को साधने के।लिए केवल और केवल हमारी स्वयम की साधना ही काम पाएगी।

My Awareness humbly wants to express the Truth that:-

*All the Sahaj Organizations must play their Role as Sahaj Supporting Body, they must not behave like a Sahaj Ruling Body.
If they do so then it will be Fatal for the Collective Growth of Sahaj Yoga.*

*One more thing to be understood by all such kind of Office Bearers/Trusties/Coordinators of all the Sahaj Organizations.
That no One has the Capacity to Obstruct as well as Block the Path of An Enlightened Soul. It would be more or less Suicidal Spiritually.*

*Because all the Powers of "Shree Maa", are working behind such kind of Sahajis.*"

-------------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


★★★"यदि मुझे कुछ पकड़ना है, तो मैं हाथ का प्रयोग करूंगी और चलने के लिए पैर का। इसी प्रकार आपको ज्ञात होना चाहिए कि आपको पोषण के लिए कौन सा सहजयोगी सहायक हो सकता हैतत्काल आपका मस्तिष्क शुद्ध हो जाएगा।"--.पू. श्री माता जी निर्मलादेवी
विराट पूजा, 10/04/1991★★★


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