Monday, October 7, 2019

"Impulses"--506--"श्री माँ कैसे सहज के प्रोटोकॉल स्वयं तुड़वा कर अपने तरीके से अपने कार्य करवाती हैं"


 "श्री माँ कैसे सहज के प्रोटोकॉल स्वयं तुड़वा कर अपने तरीके से अपने कार्य करवाती हैं"
(भाग -1)

बात उन दिनों की है(सन-2000) जब इस चेतना को "श्री माँ" ने एक अच्छे यंत्र के माध्यम से अपने "श्री चरणों" में लिया ही था।

उस यंत्र की "श्री माँ" के प्रति सच्ची श्रद्धा, निष्ठा, प्रेम, समर्पण, लगन "श्री माँ" के प्रेम को सारे संसार में फैलाने के जुनून, उनकी सादगी स्वच्छ हॄदय भावों को देखकर अनुभव करके ही यह चेतना आंतरिक स्तर पर प्रभावित हुई थी।

अतः इस चेतना के हृदय में भी रात-दिन एक ही धुन सवार रहती थी कि किस प्रकार से "श्री माँ" का प्रेम संदेश सारे संसार में फैलाया जाय।

और यह जुनून आज उससे भी कई गुना ज्यादा है, यदि कुछ बदलाव आया है तो केवल इतना कि अब कुछ तरीके स्तर पहले से काफी ज्यादा उन्नत हुए हैं।

जैसे हम सभी लोग अपने दैनिक बाह्य जीवन में नई से नई तकनीक शामिल कर अपनी कार्य क्षमता को निरन्त बढ़ाते जा रहे हैं। 

ठीक इसी प्रकार से *यदि कोई साधक/साधिका अपनी ही गहनता में निरंतर गहरे से गहरे उतरता जाता है। तो उसे अपनी स्वयं की आंतरिक ' आध्यात्मिक विभूतियों' का लाभ मिलना प्रारम्भ हो जाता है और उसकी चेतना निरंतर उन्नत होती जाती है।

और उसके साथ जुड़े हुए समस्त साधकों/साधिकाओं को भी उसके आंतरिक अनुभवों आत्मज्ञान से उनकी स्वयं की आध्यात्मिक यात्रा में बहुत लाभ होता है।*

इस चेतना को इस विषय पर याद रहा हैं कि अपने एक वक्तव्य में "श्री माँ" ने भी कहा था कि,

"स्वयं को जानने से बड़ी कोई भक्ति नहीं है।"

अतः 'आत्मसाक्षात्कार' की प्रक्रिया के मात्र 15 दिनों के भीतर ही "श्री माँ" ने इस चेतना से उसके कार्यस्थल से ही 'अपना' कार्य कराना प्रारम्भ कर दिया था।

यह चेतना उस 'माध्यम' से कुछ "श्री माँ" के पोस्टर, चार्ट, कुछ सहज योग की किताबें 'निर्मला योग' की प्रतियां अपने साथ ले आयी थी।

जिसको अपनी कार्य शाला के ऑफिस में लगाकर अपने आने वाले क्लाइंट्स को "श्री माँ" के प्रेम को आत्मसाक्षात्कार के रूप में अवगत कराने का माध्यम बनने लगी थी।

साथ ही उन सभी सहज की किताबों "श्री माँ" के प्रवचनों को यह चेतना रात दिन इस तरह से अपने ऑफिस, घर गाड़ी में पढ़ा करती थी मानो कोई लिखित परीक्षा पास करनी हो।

इस चेतना के उस माध्यम से उसने आत्मसाक्षात्कार देने के तरीके के बारे में पूछा। तो उन्होंने बताया कि जो भी आत्मसाक्षात्कार पाना चाहे तो उसको "श्री माँ" के पोस्टर के सामने बैठा कर उससे कहलवाना कि,

'हे "श्री गणेश जी" मेरी कुंडलिनी माँ को उठा दो,

और "श्री माता जी" से प्रार्थना करवाना कि,

'हे "श्री माता जी" मुझे मेरा आत्मसाक्षात्कार प्रदान कर दीजिए।'

बस इस चेतना ने ये दो वाक्य रट लिए थे और इन्ही दोनों वाक्यों से "श्री माँ" इस चेतना के कार्य स्थल पर नए खोजियों को लगातार जागृति देती चलीं गईं।

मजे की बात यह है कि इस चेतना को अपने स्वयं के यंत्र में कभी कोई वायब्रेशन आने प्रारम्भ नहीं हुए थे। जब नए लोग 'जागृति' को पाकर बताते थे कि उनकी दोनों हथेलियों में कुछ गोल गोल घूम रहा है।

"श्री माँ" का यह जागृति का यह कार्य अच्छे से चल निकला था किंतु इस चेतना की स्वयं की अपनी वायब्रेशन लापता थीं। नए नए लोगों को जागृति की अनुभूति पाता देखकर यह चेतना हृदय में अत्यंत प्रसन्न होती थी।

और अपने हृदय में सोचती थी कि चल कोई बात नहीं, तुझे कुछ अभी तक अनुभव नहीं हुआ तो क्या हुआ, इन सभी लोगों को तो "श्री माँ" जागृति प्रेम देती ही जा रहीं हैं।

इस चेतना की यह अवस्था लगभग डेढ़ माह तक ऐसी ही रही और इस चेतना ने अभी तक "श्री माँ" के "श्री चरणों" में अभी तक अपना शीश भी झुकाया नहीं था।

किन्तु सुबह शाम ध्यान में प्रतिदिन एक-दो घंटे बैठने के लिए समय निकालना प्रारम्भ कर दिया था।

दिन में तो यह चेतना अपने ऑफिस में ध्यान में बैठ जाती थी किंतु घर में यह चेतना सभी घर के सदस्यों के सोने के बाद रात में कभी 3 बजे तो कभी चार बजे चुपचाप बिना किसी को पता लगाएं ध्यान में बैठती थी।

सोचती थी कि यदि घर के लोगों ने उसे हाथ फैलाये ध्यान करते हुए देख लिया तो सभी घर के लोग उसे पागल समझने लग जाएं और कहें कि किस चक्कर में पड़ गया।

किन्तु हर बार वायब्रेशन 'निल बटा निल' ही रहा करती थीं किन्तु वायब्रेशन आने के बाद भी इस चेतना के हृदय में "श्री माता जी" के प्रति अदम्भय विश्वास था।

ध्यान की पहली बैठक में ही इस चेतना ने "श्री माता जी" से अत्यंत विनम्रता के साथ कह दिया था।

*"श्री माता जी" ये चेतना आपको नहीं जानती कि आप कौन हो, लेकिन आपकी बातें इस चेतना को काफी अच्छी लगती हैंऔर यह चेतना आपका हृदय से आदर भी करती है,

कृपया बुरा मत मानियेगा यदि यह चेतना आपके "श्री चरणों" में अपना शीश झुकाए, बात यह है "श्री माता जी" कि इस चेतना ने आज तक कभी भी किसी के आगे कभी भी अपना सर नहीं झुकाया है,

क्योंकि इस चेतना को अभी तक इस धरती पर कोई भी ऐसी शख्सियत का हृदय में अनुभव ही नहीं हुआ है, कि यह चेतना किसी के चरणों को स्पर्श करें उसके चरणों में अपना मस्तक झुकाए।

"श्री माता जी" यह चेतना आपसे वादा करती है कि जिस दिन आपके बताए अनुसार इस चेतना के सर पर वायब्रेशन अनुभव हो जाएंगी, उसी दिन ही यह चेतना अपना सर आपके "श्री चरणों" में सदा के लिए रख देगी।

इस चेतना को अच्छे से याद है जब यह चेतना "श्री माता जी" से प्रथम दिन वार्तालाप कर रहीं थी, उस दिन "श्री माता जी" बड़े प्रेम से मुस्कुरा रहीं थीं।

"श्री माँ" को प्रथम बार फोटो में देखने के लगभग डेढ़ माह बाद इस चेतना की बहन ने "भगवती माँ" का जागरण अपने घर रखवाया।

तब इस चेतना के माध्यम से इस देवी के जागरण के बीच वाले अंतराल में "श्री माता जी" ने इस चेतना की जिंदगी का प्रथम पब्लिक प्रोग्राम दो-ढाई सौ लोगों की भीड़ के सामने करवाया।

प्रथम बार "श्री माँ" ने इतने लोगों की भीड़ के सामने आत्मसाक्षातकर दिलवाने सहज योग के विषय मे बुलवाने का कार्य लिया था।

इस सामूहिक जागृति की प्रथमानुभूति में इस चेतना का हॄदय "श्री माँ" के प्रेम करुणा से भर गया, आये हुए लगभग सभी लोगों ने चैतन्य को अपने सर, हॄदय, उंगलियों हथेलियों में गोल गोल घूमते हुए अनुभव किया।

सबका अनुभव सुनकर इस चेतना का हृदय गद गद हो गया किन्तु इतना सब होने पर भी इस चेतना को फिर स्वयं कुछ भी चैतन्य का कहीं भी अनुभव नहीं हुआ।

जागरण के समाप्त होने पर इस चेतना ने स्नान किया और फिर ध्यान में "श्री माँ" के समक्ष बैठ गई।

कुछ देर तक सदा की भांति माथे में अक्सर होने वाला भारीपन होने लगा और फिर हमेशा की तरह कुछ विचार आने प्रारम्भ हो गए। और हमेशा की तरह जब इस चेतना ने ध्यान से उठने का उपक्रम करने की सोची।

तो अचानक सहस्त्रार पर कुछ ऊर्जा की सरसराहट होने लगी और दोनों हाथों की उंगलियों में सनसनाहट हथेलियों के बीचों बीच ऊर्जा गोल गोल घूमने लगी।

यह अनुभव करके इस चेतना का हृदय बल्लियों उछलने लगा, और इस अनुभव पर "श्री माँ" की सारी की सारी सुनी पढ़ी बातें इस चेतना को स्मरण होने लगी।

चेतना को हृदय के भीतर यह समझ गया कि जो भी "श्री माता जी" ने कुंडलिनी जागरण के अनुभव बताए थे वे सभी इस चेतना के यंत्र में घटित हो रहे थे।

कुछ देर तक इसी अवस्था का आनंद लेने के उपरांत इस चेतना ने प्रथम बार अपना शीश "श्री माँ" के "श्री चरणों" में बड़ी, श्रद्धा, भक्ति, समर्पण पूर्ण हृदय से रख दिया।

जो आज तक दुबारा कभी भी उठ नहीं पाया और ही कभी पुनः उठ पायेगा।

आखिर "श्री माँ" ने इस निकृष्ट चेतना को अपने "श्री चरणों" में स्थापित कर 'उत्कृष्ट मार्ग' पर चलने का इशारा कर ही दिया था।

इस दिव्य अनुभूति के उपरांत इस चेतना के माध्यम से "श्री माँ" ने इसके हृदय में प्रेरणा देकर अपने सहस्त्रार मध्य हृदय में बने रहने गहनता में उन्नत होने लिए बहुत से तरीकों पर कई प्रकार के प्रयोग कराए जो आज भी जारी हैं और कामयाब हैं।

नोट करने वाली बात यह है कि अभी तक इस चेतना को सहज के किसी भी कर्मकांड, सहज टेक्निक सहज सेंटर का अता पता नहीं था।

इस चेतना ने केवल और केवल ध्यान और ध्यान पर ही सदा फोकस किया था।

*और इस चेतना के माध्यम से "श्री माँ" ने इस चेतना को बिना चैतन्य का अनुभव कराए डेढ़ माह में सैंकड़ों लोगो को आत्मसाक्षातकार दे दिया था।*

उन सभी लोगों में से अधिकतर लोग अच्छे मजबूत यंत्र बन कर आज तक जागृति के कार्यों में निरंतर संलग्न हैं।

इस डेढ़ माह के दौरान सबसे पहले पहले तीन परिवारों में से "श्री माँ" ने श्री कालिया जी, मेरठ को जागृति दिलवाई थी।

जिनके माध्यम से कड़क धूप/अत्यंत ठंड बारिश में निरंतर खुले में उन्हें खड़े करवाकर उनकी देखरेख में "श्री माँ" ने मेरठ शहर के मेन 'डाबका' सेंटर के भवन के ढांचे का निर्माण करवाया था।

फिर उसके बाद कालिया जी के कहने पर विनोद अंकल के परिवार ने आत्मसाक्षात कार पाया। और फिर विनोद अंकल के बताने पर "श्री दीपक त्यागी जी" के परिवार ने "श्री माँ" का प्रेम पाया।

और इस डेढ़ माह के बाद जो "श्री माँ" ने मेरठ में धुआं-धार 'सहज-जागृति' का कार्य लगभग साल भर तक इस चेतना के माध्यम से लगातार करवाया।

साथ ही साप्ताहिक सामूहिक ध्यान इस चेतना के स्थान पर भी होना प्रारम्भ हो गया। लगभग हर सप्ताह किसी किसी स्थान पर आत्मसाक्षात्कार का कार्यक्रम होता था।

उसी कार्यक्रम में जो लोग आते थे उन्हीं में से कोई कोई अगले सप्ताह के लिए निमंत्रण दे देता था।

'मजे की बात यह थी कि सहज सेंटर के स्थान को हम अभी तक जान ही नहीं पाए थे क्योंकि इस स्थान के किसी भी पुराने सहजी को हम जानते तक थे।

और ही हमारे पास सेंटर्स को जानने के लिए ही इतना समय ही था, रात और दिन, सुबह और शाम जागृति ध्यान का ही काम।

100 से भी ज्यादा रेगुलर ध्यान करने वाले सहजी तैयार हो चुके थे और हर सप्ताह निरंतर बढ़ते ही जा रहे थे।

हम सभी आपस में एक दूसरे को अपने अपने घरों में बदल बदल कर ध्यान के लिए निमंत्रण देते जाते थे और कम से कम 15-20 सहजी हर सप्ताह एक दूसरे के घरों में सामूहिक ध्यान का आनंद लिया करते थे।

फिर इन्हीं में से एक दिन एक सहजी ने मेरठ के एक जैन धर्म के धार्मिक ट्रस्ट में ध्यान कक्ष की व्यवस्था कर दी।

फिर हमारा सामूहिक ध्यान अब बृहस्पति वार के दिन सांय काल को इस स्थान पर रविवार के दिन किसी किसी सहजी के घर पर चलने लगा।
याद आता है, वो भी क्या मजेदार दिन हुआ करते थे,

जब हमारे रात और दिन केवल और केवल सहज के कार्यों में बीता करते थे और पता ही नहीं चल पाता था कि कब रात होती है और कब दिन निकल आता है।

वैसे अभी भी इस चेतना का यही हाल है, बस कार्यों का स्तर तरीका ही परिवर्तित हुआ है। एक साल के बाद एक सहजी ने हमें एक और ध्यान का स्थान सुझाया वह था मेरठ की न्यू मोहन पूरी में नया नया बना हुआ 'शिव मंदिर'

अब हमारा साप्ताहिक ध्यान इस मंदिर में चलना प्रारम्भ हो गया जहां लगभग 70-80 लोग हो जाया करते थे।

जो भी लोग इस मंदिर में प्रसाद चढ़ाने दर्शन करने आया करते थे उनमें से कुछ लोग हर सप्ताह आत्मसाक्षात्कार पाकर ध्यान में शामिल होने लगे।

इस स्थान पर ध्यान का सिल सिला लगभग 4 साल तक यानि 2001 से लेकर 2004 तक चलता रहा और इसी के साथ साथ इस चेतना के घर पर भी सामूहिक ध्यान निरंतर चलता रहा है।जो आज भी सन 2000 से लगातार जारी है।

हमें अच्छी तरह याद है जब "श्री माता जी" का पब्लिक प्रोग्राम नेहरू स्टेडियम, दिल्ली में हुआ था।

तो हम सभी ने उस माध्यम के द्वारा "श्री माता जी" के पोस्टर मंगा कर मेरठ शहर के मुख्य स्थानों दो तीन रात में रात भर जाग कर चिपका दिए थे।

उस समय इस चेतना के पास हरे रंग की जिप्सी हुआ करती थी जिसमें पोस्टर, लही, सुतली, छोटी सीढ़ी रखी जाती थी और बाकी सहजी अपने अपने स्कूटरों से सुनिश्चित स्थान पर जाते थे और पोस्टर चिपकाने का कार्य चला करता था।

इसके बाद "श्री माता जी" के पब्लिक प्रोग्राम में हम सभी शरीक हुए, हमारी इस कलेक्टिव से तीन बड़ी बसें खचाखच भरी हुईं "श्री माँ" के इस कार्यक्रम में गईं।

और मेरठ के सेंटरस से केवल एक ही बस गई थी जो वहां पर ही हमें पहली बार मिली थी और हमने सेंटर के कुछ सहजियों को देखा था।

ऐसे बहुत से सहजियों के इस चेतना के पास फोन आते रहते हैं जो कहते हैं, 'हम क्या करें हम यहां पर बिल्कुल अकेले हैं और ही हमारे स्थान आस पास कोई सहज सेंटर ही है।"

ये वो सहजी हैं जो या तो विदेश में रहते हैं या भारत के लगभग निर्जन अथवा किसी एक साम्प्रदाय बहुल क्षेत्रों में रहते हैं।

इस चेतना का ऐसे समस्त सहजियों से कहना है कि आप सभी "श्री माँ" के चलते फिरते सेंटर(Mobaile Center) हो। सहस्त्रार पर तुमको इस विश्व की ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण ब्रहम्माण्ड की सामूहिकता उपलब्ध है,

और आपके मध्य हृदय में "माँ जगदम्बा" से मिलने के लिए समस्त देवी-देवताओं, रुद्रों, गणो के साथ साथ समस्त जागृत मानवों, सद गुरुओं

सन्तों उच्च कोटि के महामानवों की 'सूक्ष्म चेतनाएं' मिलने के लिए आपकी ध्यानास्थ अवस्था में ऊर्जा के सूक्ष्म कणों के रूप में निरंतर आती रहती हैं।

अपने ही मध्य ह्रदय के सेंटर में इन सभी की उपस्थिति को आभासित करते हुए ध्यान का आनंद उठाओ।

अच्छे गहन ध्यान में स्वयं विकसित होकर अपने ही स्थान पर बैठे बैठे चित्त की सहायता से ही जितने भी लोगों को जानते हो, जो आपके आस पास रहते हैं, उन सभी लोगों की कुण्डलीनियाँ उठाओ।

साथ ही जब यह जानकार परिचित वाला स्टॉक समाप्त हो जाये तो हर प्रकार के मीडिया में दिखाई देने वाले लोगों पर यह कार्य करते रहें।

इससे उनकी कुंडलियां उठ उठ कर आपकी कुंडलिनी को अपनी अपनी शक्तियां देकर शसक्त बनाती चली जायेगी। और उनकी सामूहिक शक्ति आपको अपने ही भीतर में उतरने का सामर्थ्य प्रदान करेगी और आपकी चेतना चित्त शक्तिशाली होते जाएंगे।

जैसे एक निरंतर बहने वाली जल की धारा में इसके मार्ग में आने वाली अनेको छोटी छोटी जल धाराओं का विलय हो जाता है। आपको ताज्जुब होगा कि जब उन लोगों के पूर्व संस्कारों का खजाना चूक जाएगा।

तो वे लोग एक एक दिन आपसे कभी कभी, किसी किसी कारण से सम्पर्क में आएंगे और ऐसी स्थितियां स्वतः ही उत्पन्न होंगी जब वे लोग आपसे आत्मसाक्षात्कार भी ले लेंगे।

अतः पूर्ण धैर्य के साथ अपनी पूर्ण जागरूकता में निरंतर अपने मध्य हृदय सहस्त्रार में हरदम बने रहें। जैसे रात्रि में एक दीपक के जलने पर उसके प्रकाश को दूर से ही देखकर अनेको कीट पतंगे उसकी ओर स्वतः ही आकर्षित होते हैं।"

----------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"

To be continue.....

June 29 · 2019

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