Monday, October 21, 2019

"Impulses"--508--'सहज-उलेमा'


'सहज-उलेमा'


"अभी पिछले दिनों लुधियाना में सहज के स्वतंत्र कार्यों के लिए पंजाब के ट्रस्टी द्वारा असंवैधानिक अनैतिक रोक लगाने का असफल प्रयास किया गया था।

इसी कड़ी में एक और प्रकरण गत रविवार को जम्मू सहज योग नेशनल ट्रस्ट के सेंटर में एक अच्छे सच्चे "श्री माँ" के बच्चे के द्वारा आयोजित एक सहज कार्यक्रम के लिए वहां के कार्डिनेटर के द्वारा रोक लगाने।

उस अच्छे सहजी उसकी धर्मपत्नी के लिए अभद्र शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उस कार्यक्रम से संबंधित मेसेज वहां की कलेक्टिव के व्हाट्सएप्प ग्रुप में भिजवाने के कारण काफी हंगामा हुआ।

इनका केवल इतना ही दोष था कि इन्होंने दिल्ली में रहने वाले "श्री माँ" को समर्पित एक सहजी भाई के द्वारा आयोजित सहज के कार्यक्रम को करवाने में मदद करने का आश्वासन दे दिया था।

ये वह "श्री माँ" के प्यारे सहजी पति-पत्नी हैं जिन्होंने अखनूर इसके आस पास के क्षेत्र में अपने दम पर स्वयं पीछे रहते हुए "श्री माँ" की इच्छा प्रेरणा से हजारों जीवात्माओं को "श्री माँ" की कृपा अनुकंम्पा से आत्मसाक्षातकार दिलवाया है अथवा दिलवाने का प्रबंध किया है।

यह वही "श्री माँ" को समर्पित सहजी भाई हैं जिन्होंने पिछले साल अगस्त में जम्मू में होने वाली पूजा सेमिनार के लिए 'भारतीय योग संस्थान' का बहुत ही बड़ा हाल केम्पस 'निशुल्क' उपलब्ध करवाया था।

और आपको बता दें कि दिल्ली से जो भाई 11-07-19 को कार्यक्रम करने रहे हैं उनके द्वारा "श्री माँ" ने हजारों-लाखों जीवात्माओं को आत्मसाक्षात्कार दिलवाया है।

यही वे सहजी भाई हैं जिन्होंने तिहाड़ जेल में बंद अनेको कैदियों जेल के स्टाफ को आत्मसाक्षात्कार दिया लगातार दिलवाने का प्रबंध किया है।

अब जरा सोचिए सहज योग ट्रस्ट के इस क्षेत्र के ट्रस्टी कॉर्डिनेटर सहज योग के नाम पर क्या करने में लगे हुए हैं ?

क्या ये सहज को बढ़ा रहे हैं अथवा समर्पित सहजियों की अथक मेहनत पर पानी फेरने में लगे हुए हैं ?

फिर यही लोग कहते हैं कि सहजी ग्रुप बना रहे हैं और कलेक्टिव को बांटने में लगे हैं।

ऐसा प्रतीत होता है कि पंजाब वाले 'ट्रस्टी जी' का प्रभाव यहां भी काफी अधिक है जिसके कारण लुधियाना जैसा घटनाक्रम इस स्थान पर भी घटित हुआ है।

वास्तव में ऐसा लगता है कि ये 'ट्रस्टी श्री' सहज योग नेशनल ट्रस्ट का नाम पूरी तरह मिट्टी में मिला कर ही दम लेंगे।

हमारा दिल्ली में स्थित 'नेशनल ट्रस्ट' के बड़े अधिकारियों से विनम्र निवेदन है।

कि आपके द्वारा नियुक्त किये गए इस प्रकार के नकारात्मक कार्यों में संलग्न इस क्षेत्र के ट्रस्टी, स्टेट- कर्डिनेटर कार्डिनेटर्स के कार्यों की बारीकी से समीक्षा करके तुरंत कार्यवाही करें।

अन्यथा इस इस प्रकार के "श्री माता जी" सहज विरोधी संस्थाधिकारी नेशनल ट्रस्ट की साख गिराने के साथ साथ "श्री माता जी" के स्वप्न को भी निरंतर धूमिल किये जा रहे हैं।

इस प्रकार के लोगों की सामर्थ्य "श्री माँ" के बच्चों के कार्यों को रोकने की तो है ही नहीं। किन्तु यह लोग सहज के नाम पर अपने किन्ही स्वार्थों की पूर्ति में लगे प्रतीत होते हैं।

जिनकी पूर्ति में रुकावट आने पर इस प्रकार की निम्न स्तर की हरकतों पर भी उतर रहे हैं और सहज की प्रतिष्ठा को भी तार तार करने में लगे हैं।

इन बातों से सम्बंधित एक नेशनल ट्रस्ट के तथाकथित पत्र को यहां नीचे पोस्ट किया जा रहा है।

पत्र को पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है कि यह पत्र नेशनल ट्रस्ट नई दिल्ली से लिखा भी गया है कि नहीं, या यह पत्र बाद में एडिट किया गया है ?

क्योंकि इसकी भाषा शैली एक सच्चे सहजी की मौलिक स्वतंत्रता जो "श्री माँ" के द्वारा प्रदान की गई है, का हनन करती प्रतीत होती है।

साथ ही इस पत्र का उद्देश्य "श्री माता जी" की इच्छा के पूर्णतया विपरीत मालूम देता है क्योंकि इसमें विकृत तानाशाही की बू रही है।

जहाँ तक हमको मालूम है "श्री माता जी" ने कभी भी यह नहीं कहा है कि किसी भी सहजी को सहज का कार्य करने के लिए ट्रस्टी, स्टेट-कार्डिनेटर, सिटी कार्डिनेटर्, सीनियर सहजी, वालंटियर किसी संस्थाधिकारी से पूछ कर आत्मसाक्षात्कार दें अथवा ध्यान करवाएं।

जरा ध्यान से इस पत्र को पढियेगा अपनी अंतरात्मा में इस पत्र में जो कहा गया है उस पर गहन ध्यान में चिंतन अवश्य कीजियेगा।

कि क्या सहजियों को इस प्रकार के आदेश के अनुसार अपनी 'चेतना' 'आत्मा की आवाज' को मारकर संस्था के इस प्रकार के 'तुगलकी' फरमानों को मानकर सहज योग में आगे बढ़ना चाहिए ?:-

(20-May-2019

To,

All State Coordinators

Conducting Programs & Collection of Money in States

Dear All,

Jai Shri Mataji

It has been brought to our knowledge that persons from outside the States visit and start conducting Public Programs and also start collecting money in the name of Prachar/Prasar without the knowledge of respective City/ State Coordinators.

This is against the established Procedure and Norms.

Necessary prior approval need to be taken from the State Coordinator before announcing/conducting the programme and collection of money.

In case the State Coordinator doesn’t give the permission no program should be conducted.

Kindly disseminate this information to all City Centres & Rural Centres within your State.

Kindly acknowledge.

With Love and Regards,

Suresh Kapoor

Executive Secretary

H.H.Shri Mataji Nirmala Devi Sahaja Yoga Trust)


सहज योग नेशनल ट्रस्ट के इस सर्कुलर को पढ़कर यह चेतना बहुत हैरान है कि इस प्रकार का पत्र 'एग्जीक्यूटिव सेक्रेटरी' आदरणीय सुरेश कपूर जी के द्वारा भला किस प्रकार से सर्कुलेट किया गया ?

क्योंकि हमें याद है कुछ वर्ष पूर्व भी इसी प्रकार की खबरें सुनने को मिला करती थीं और इन्ही बातों को लेकर कार्डिनेटर सच्चे सहजियों के बीच अक्सर द्वंद छिड़ा रहता था।

उस समय आदरणीय जर्नल वी के कपूर जी शायद एग्जिक्युटिव सेक्रेटरी थे,इन्हीं संघर्षों को विराम देने के लिए उनकी ओर से एक पत्र जारी कराया गया था।

जिसमें बताया गया था कि कोई भी सहजी, बिना किसी कार्डिनेटर/ट्रस्टी की परमिशन के, कहीं भी सहज ध्यान का कार्य कर सकता है।

***आश्चर्य होता है कि जब ट्रस्ट में यह निर्णय पूर्व में ले लिया गया था तो फिर उस निर्णय के विरोध में यह पत्र क्यों प्रेषित किया गया ?***

*इसी बात को देखकर इस उपरोक्त पत्र की विश्वसनीयता सन्देह के घेरे में रही है कि यह पत्र वास्तव में ट्रस्ट से प्रेषित भी हुआ है कि नहीं ?

अथवा किन्ही लोगों ने इस प्रेषित पत्र को अपने अनुसार एडिट करके व्हाट्सएप्प के सहज ग्रुप्स में पोस्ट करवा दिया है।*

०हमारी जानकारी के मुताबिक जो भी पत्र अथवा सर्कुलर ट्रस्ट से प्रेषित किये जाते हैं उनपर डिस्पैच no अंकित होता है साथ ही उन पर ट्रस्ट की सील के साथ हस्ताक्षर भी होते हैं।०

किन्तु उपरोक्त पत्र में तो ऐसा कुछ भी नहीं है क्योंकि यह तो केवल व्हाट्सएप मेसेज है जिसकी कोई प्रमाणिकता नहीं है।

यदि व्हाट्सएप्प पर भी पोस्ट करना है तो स्कैन कॉपी ही पोस्ट करनी चाहिए जिससे किसी को कुछ भी सन्देह रहे।

इसके अतिरिक्त एक और अत्यंत हास्यपद बात हमारी एक सहजी बहन के साथ कुछ दिन पूर्व हुई।

उन सहजी बहन के एक व्हाट्स एप्प ग्रुप में बहुत से सहजी अपने अपने अनुभव के आधार पर अपना अपना ध्यान प्रतिदिन पोस्ट किया करते हैं।

एक दिन उस सहजी बहन से "श्री निर्मल धाम" में कार्यशील एक अति जिम्मेदार सहज वालंटियर द्वारा उस व्हाट्स एप्प ग्रुप में सहजियों के द्वारा पोस्ट किए जाने वाले ध्यान के बारे में कहा गया,

***क्या आपने अपने व्हाट्सएप्प ग्रुप में सहजियों के द्वारा पोस्ट किए जाने वाले ध्यान के लिए क्या 'सहज ईटर्नल ट्रस्ट' के ट्रस्टी से परमिशन ली है ?***

तब उस बहन ने कहा कि अमुक सहजी भी उस ग्रुप में शामिल है जो "श्री निर्मल धाम" में काफी सक्रिय तब उन्होंने कहा, तब ठीक है।

जब यह बात उस सहजी बहन से हमने सुनी तो हमारी अंतर्चेतना में काफी देर तक हंसी का पुट बना रहा। 

और हम भीतर ही भीतर चिंतन करने लगे कि' 'क्या इसी सहज के संस्थागत स्वरूप की कल्पना "श्री माता जी" ने की होगी,

या "श्री माँ" सहज को सहजियों को किन्हीं उन्नत ऊंचाइयों पर देखना चाहती हैं।

क्या यह वही सहज योग है जिसे 'महायोग' में परिवर्तित होना था या फिर संस्थाधिकारी सहज के नाम पर कुछ और ही करने कराने लग गए हैं।

सभी "श्री माँ" के बच्चों अनुयाइयों को इन तीन प्रकरणों का ठीक प्रकार अवलोकन करके गंभीतरता से चिंतन करना होगा।

कि इस प्रकार की घटनाएं हमारे देश में क्यों घटित हो रही हैं अथवा हो चुकी हैं, इनकी मुख्य क्या वजह है ?

हमको तो संस्था के स्तर पर अब ऐसा प्रतीत होने लगा है कि सहज संस्था के कुछ ट्रस्टी अब विभिन्न मतों के उलेमाओं जैसा व्यवहार करते हुए "श्री माता जी" की बातों को दरकिनार करते हुए।

सहजियों "श्री माता जी" के बीच में आकर विभिन्न प्रकार के 'सहज-फतवे' जारी करने में लगे हैं।

और कुछ कार्डिनेटर 'कठमुल्ले' बन कर सहजियों को भ्रमित करने का असफल प्रयास करते हुए सच्चे सहजियों के कार्यों को जी जान से रोकने में लगे हैं।

ये लोग अपनी तथाकथित सहज-सत्ता के नशे में पूर्णतया चूर हो कर यह भी भूल चुके हैं कि "श्री माता जी" "कौन" हैं।

ऐसे अज्ञानियों को देखकर अत्यंत तरस भी आता है और ह्रदय में पीड़ा भी होती है कि यह लोग अपना बेशकीमती समय इन्ही मूर्खताओं में व्यर्थ करने में लगे हैं।

काल का चक्र निरंतर निर्बाध गति से चलता ही जा रहा है और यह लोग अपनी चेतना को विकसित करने के स्थान पर उसको निरंतर गर्त में धकेलते जा रहे हैं।

ऐसा करते करते एक दिन कब 'मृत्यु' कर्मो का कटीला हंटर लेकर दरवाजे पर पहुंच जाएगी, इन 'बेहोश' लोगों को पता भी नहीं चल पायेगा। और केवल तब ही समझ आएगा कि हमने तो अपना सारा जीवन निर्थक कर यूं ही गंवा दिया।

गायत्री परिवार, शांतिकुंज हरिद्वार, के संस्थापक 'पंडित श्री राम आचार्य जी' ने अपनी पुस्तक 'मरने के बाद क्या होता' है में लिखा है।

कि जो लोग ठीक प्रकार से ध्यान में नहीं उतर पाते हैं उनकी मृत्यु के समय उनको 10000 बिछुओं के दंश लगने के बराबर पीड़ा होती है।

और "श्री माता जी" ने भी अपने कई प्रवचनों में कहा है 'कि जो भी सहजी 'निर्विकल्प' को प्राप्त नहीं होंगे उन्हें अनेको प्रकार के नरक भोगने होंगे,उन्हें "मैं" भी नहीं बचा पाऊंगी।

और ऐसे लोगों के कार्यों को देखिये कि ये लोग निर्विकल्प तो छोड़िए ठीक प्रकार से निर्विचार भी नहीं हो पाते हैं और ही इनका ध्यान ही लग पाता है।

क्योंकि ये लोग रात दिन सहजियों पर शासन करने के विभिन्न विचारों में मशगूल रहते हैं।

और अनेको प्रकार के लोभ से ग्रसित होकर गन्दी राजनीति करते हुए शासन करने के लिए भारतीय गन्दे नेताओं की तरह कई प्रकार के षड्यंत्र रचते रहते हैं।

ऐसे लोगों के लिए हमारे हृदय से "श्री माँ" से सदा प्रार्थना ही निकलती है, 'कि "श्री माता जी" इन लोगों का कल्याण कीजिये अन्यथा यह लोग निकट भविष्य में अत्यंत कष्ट देखने जा रहे हैं।

और अज्ञानतावश ऐसे भ्रमित भटके हुए लोगों का साथ देने वालों पर भी अनेको विपदाओं के बादल मंडरा रहे हैं।

साथ देने वाले यदि समय रहते सचेत नहीं हुए तो वह भी अत्यंत दुरूह समय से अवश्य गुजरेंगे और अनेको प्रकार की अत्प्रायश्चित परेशानियों का सामना भी करना पड़ेगा।

तब "श्री माँ" से की गई किसी भी प्रकार की प्रार्थना याचना कार्य नहीं करेगी और ही सहज की कोई भी टेक्निक ही काम करेगी। अपने समस्त सहज साथियों से हम कुछ बातें और शेयर करना चाहते हैं कि:-

1.यदि कोई भी सहजी ध्यान/जागृति के कार्यक्रम के नाम पर उसमें होने वाले वास्तविक खर्चे से अधिक मांग करे तो तुरंत समझ जाएं कि दाल में कुछ काला है।

इसको रोकने के लिए आप उनसे कार्यक्रम पर होने वाले कुल खर्चे का ब्यौरा लें और शामिल होने वाले लोगों की संख्या से भाग करके प्रति सहजी कंट्रीब्यूशन की रकम निकाल लें और उतने ही पैसे दें।

साथ ही कभी भी फ्री में किसी सहज के कार्यक्रम में शामिल होने के लालच में पड़ें।

*क्योंकि यदि आप ऐसा करेंगे तो आपका 'श्री लक्ष्मी तत्व' सदा के लिए बाधित हो जाएगा और आप सदा आर्थिक अभावों से जूझते संघर्ष करते नजर आएंगे।*

2.यदि कोई सहजी यह कहे कि हमें "श्री माता जी" का सिंहासन बनवाना है, ध्यान के स्थान के लिए जमीन खरीदनी है, ध्यान का स्थान बनवाना है आदि आदि तो बिल्कुल भी अपना पैसा दें और समझ जाएं कि कुछ गड़बड़ झाला है।

क्योंकि ध्यान के लिए "श्री माता जी" का एक चित्र ही काफी होता है यदि किसी की श्रद्धा है और वह सिंहासन, स्थान बनवाना चाहता है तो वह अपने पैसे से बनाये, अन्य सभी से पैसे की मांग क्यों कर रहा है।

ऐसा देखा गया है कि सहज के 'पोंगे- पंडितों' ने अपनी सांसारिक परेशानियों में घिरे अज्ञानी सहजियों को मूर्ख बना कर लाखों रुपए लूटे हैं और वे उनके पैसों पर मौज कर रहे हैं।

3.यदि कोई सहजी आपकी तथाकथित सांसारिक समस्या को ठीक करने के लिए आपके घर में रहकर स्पेशल हवन आदि करने को कहे तो तुरंत मना कर दें।

क्योंकि आपकी सांसारिक समस्याएं आपके प्रारब्ध की देन हैं जिन्हें केवल और केवल "श्री माँ" ही दूर कर सकती हैं और "वे" आपके घर में पहले से ही विराजमान हैं।

तो जरा सोचिए कि किस मानव में इतनी सामर्थ्य है जो प्रारब्ध को परिवर्तित कर सके।

हमारा व्यक्तिगत अनुभव है कि ऐसे 'ढोंगी' आपके घर में अनेको बाधाओं को बता कर आपको डरा देते हैं।

और आपके घर में कई दिनों तक के लिए जम जाते हैं और वापस जाते जाते आपसे हजारों रुपये मांग कर ले जाते हैं। ऐसे लोगो का यह धंधा होता है

4.यदि कोई तथाकथित सहजी आपके अत्यंत नजदीक आकर आपको किसी व्यापार व्यवसाय के बारे में बताकर आपको उक्त व्यापार/व्यवसाय में पार्टनर बनाने की बात लाभ कमाने का लालच द्व तो तुरंत सम्हल जाएं।

क्योंकि "श्री माता जी" ने सहजियों को आपस में किसी भी प्रकार के व्यापार को करने किसी भी प्रकार के व्यवसाय में शामिल होने के लिए स्पष्ट मना किया है।

हमारी समझ के अनुसार सभी सहजी एक दूसरे के प्रारब्ध जनित ऋणों से पूर्णतया मुक्त हैं, अतः पुनःआपस में व्यापार/व्यवसाय करके क्यों दुबारा ऋणी होना चाहते है।

हमारी चेतना के अनुसार ऐसा करने से हमारा मोक्ष नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा और हमारी मुक्ति असंभव हो जाएगी।

5.सभी सहजियों को एक बात अच्छे से समझनी चाहिए कि

i) हमारी छोटी समझ के अनुसार जो भी 'पूजा-मनी' लिया जाता था वह "श्री माता जी" के 'साक्षात' कार्यक्रमों को करने के लिए ही लिया जाता था।

क्योंकि "श्री माता जी" अनेको स्थानों पर पब्लिक कार्यक्रम पूजा आदि कराया करती थीं साथ ही उन्हें विदेश की यात्राएं भी करनी होती थीं।

और अब "श्री माता जी" साक्षात रूप में उपस्थित नहीं है तो सहज संस्थाओं द्वारा 'पूजा-मनी' लेने की अब कोई औचित्य ही नहीं है।

ii) अब 'पूजा-मनी' के स्थान पर संस्थाओं के सहज सेंटर्स को चलाने के लिए 'मेंटेनेंस-मनी' होना चाहिए जो वास्तविक खर्चों की गड़ना करके ही प्रति सहजी रखा जाना चाहिए।

iii) जो भी "श्री माता जी" के स्थानों, यानि 'छिंदवाड़ा',"श्री माता जी" का घर, 'एन.जी.','वाशी नोएडा हॉस्पिटल', नारगोल', 'निर्मल नगरी', "श्री निर्मल धाम" आदि को विकसित करने के लिए प्रोजेक्ट चल रहे हैं

उनके लिए पहले से ही अलग अकाउंट बने हुए हैं जिनमें श्रद्धालु अपनी सामर्थ्य मर्जी से डोनेशन देते ही हैं।

iv) जो भी सेमिनार सामूहिक पूजा अब होती हैं उनके वास्तविक अनुमानित खर्चों को पहले ही घोषित कर दिया जाना चाहिए।

और उन खर्चो को शामिल होने वाले अनुमानित सहजियों की संख्या से घटा कर ही प्रति सहजी कंट्रीब्यूशन रखना चाहिए।

यदि सहजी अधिक जाएं तो एकत्रित किये हुए ज्यादा धन को सामूहिक रूप से सहजियों को बता कर उसे किसी भी प्रोजेक्ट में ट्रांसफर करा देना चाहिए।

यदि कम आएं तो सहजियों को बता देना चाहिए और उनसे निवेदन करना चाहिए कि यदि वे चाहें तो कम पड़ने वाली राशि की क्षति पूर्ति कर दें। हम जानते हैं कि कोई भी सहजी इस बात के लिए मना नहीं करेगा।

ताकि सहजियों को यह आश्वासन रहे कि उनका अतिरिक्त धन सही स्थानों पर जा रहा है।धन के मामलों में पूर्ण पारदर्शिता होनी चाहिए।

v) किसी भी सहज के आयोजन में अनावश्यक शो-बाजी में सहजियों की मेहनत ईमानदारी से कमाया हुआ धन बर्बाद नहीं करना चाहिए, इस प्रकार से की गई पैसे की बर्बादी "श्री कुबेर" के विपरीत बैठती है।

इन फिजूल खर्चियों के लिए भी "श्री माता जी" ने अपने प्रवचनों में स्पष्ट मना किया है। "वे" अक्सर 'निर्मल धाम' में होने वाली "साक्षात" 'जन्म दिवस पूजा' में नाराज होकर निर्थक सजावट के लिए डांटा करती थीं।

●"She" used to say, 'You are my Decoration' if you rise high in Meditation only then "I" will feel happy.'●

सहज से सम्बंधित सभी कार्य अत्यंत सादगी स्वाभिक रूप से सम्पन्न कराने चाहियें।

vi) एक बात में और अधिकतर सहजी अज्ञानतावश सामूहिक रूप से "श्री माता जी" की बातों की अवहेलना करने में लगे हैं। "श्री माता जी" ने सदा धर्म मत के नाम पर बारातें निकालने का खंडन किया है, "उन्होंने" 'अपने' एक लेक्चर में कहा था।

कि हमारा सहज अत्यंत शांतिपूर्ण है इसके आयोजन से किसी को भी तकलीफ नहीं होती, सभी लोग एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और कार्यक्रम के बाद बिना हो हल्ला किये शांति से निकल जाते हैं।

यह अन्य मतावलम्बियों की तरह नहीं हैं जो सड़को पर बारातें निकालते हैं और ट्रैफिक जाम करके अन्य लोगों को तकलीफ देते हैं। 

हैरानी होती है यह देखकर की अब अधिकतर सहजी सड़कों पर प्रोसेशन निकालते हैं और सरे आम "श्री माँ" की खिलाफत कर रहे होते हैं।

वास्तव में ऐसा करके वह घोर अज्ञानतावश "श्री माँ" के सम्मान,सहज की गरिमा प्रतिष्ठा को निरंतर गिराने में लगे हैं।

क्योंकि इस प्रकार के कृत्यों से आम लोग "श्री माता जी" को प्रचलित, पैसा कमाने वाले गुरुओं की श्रेणी में रखने लग गए हैं।

vii)जो भी कार्यक्रम किसी भी संस्था के स्तर पर किये जाते हैं उन सभी कार्यकर्मो के लिए सहजियों से लिये जाने वाली कुल रकम की लिस्ट समस्त खर्चों का ब्यौरा सेंटर्स में सभी सहजियों के समक्ष रखना चाहिए।

ताकि सभी सहजी अपने द्वारा दिये गए पैसों के सदुपयोग के प्रति आश्वस्त हो सकें क्यों सभी सहजियों को अपने पैसों के हिसाब को जानने के हक है।

यदि कोई कॉर्डिनेटर/संस्थाधिकारी हिसाब देने में आना कानी करे तो उसकी शिकायत संस्था के हेड आफिस में अवश्य करें। ताकि पारदर्शिता बरकरार रहे।

एक सरल सी बात सभी को समझनी चाहिए कि यदि पैसे के मामले में कोई भी यानि, कोई भी संस्था/संस्थाधिकारी/सहजी/वालंटियर पैसे के हिसाब, जमीन की खरीद/जमीन को बनाने के लिए प्राप्त होने वाली रकम खर्चों को छुपाता है अथवा बताना नहीं चाहता है।

तो यह सुनिश्चित है कि अमुक व्यक्ति पैसे की गड़बड़ कर रहा है अथवा वह उस सामूहिक पैसे का अपनी इच्छा स्वार्थवश दुरपयोग कर रहा है।

"श्री माता जी" ने अपने प्रवचनों में कहा हुआ है कि यह पैसा "आदिशक्ति" का है किसी को भी इसका दुरुपयोग करने खाने का अधिकार नहीं है, जो भी ऐसा करेगा उसकी बुरी गत हो जाएगी।

आश्चर्य तो तब बहुत ही होता है कि जब ऐसे नकारात्मक लोग "श्री आदि शक्ति" का जोर से जयकारा लगाते हैं।

और हर प्रकार के उल्टे-सीधे काम करते हुए "श्री माँ" के बच्चों के लिए अनर्गल फैलाते हैं और उनके जागृति चेतन-कार्यों में बारम्बार बाधा पहुंचाने के लिए अनेको अड़चने उत्पन्न करते रहते हैं।

उनके इन्ही कार्यो से प्रतीत होता है कि उन्होंने सहज का मात्र चोला ही पहना हुआ है, "श्री माता जी" कौन है इसका तनिक भी आभास नहीं है।

एक जागृत मानव तो कभी भी, किसी के लिए भी जागृति चेतन कार्यों में बाधा नहीं बनता वरन सभी की सहायता ही करता है।

ध्यान का कार्य तो सभी की अपनी अपनी गहनता चेतना के स्तर पर निर्भर करता है। कोई भी बाह्य रूप से किसी सहजी की गहनता का आंकलन नहीं कर सकता।

किसी की गहनता का आभास तो उसके सानिग्धय के परिणाम स्वरूप सहस्त्रार पर तुरंत हलचल देकर अलर्ट होती हुई कुंडलिनी से, 

उसकी वाणी की कशिश से तरंगित होते हुए चक्रों मन से,

उसके चित्त में आने पर मध्य हृदय में होने वाले आनंददायी खिंचाव से,

निर्वाजय प्रेम से ओत-प्रोत उसकी दृष्टि मात्र से बुझे हुए दिलों में दौड़ने वाली प्रसन्नता से,

उसके साधारण व्यक्तित्व से प्रस्फुटित होते आकर्षण की ओर खींचते हुए हृदय से,

उसके मुस्कुराते चेहरे को देख निराशा गम में डूबे हुए दिलों में उठने वाली आशा की अनजान सी लहरों से,

उसके वास्तविक सत्यता से आच्छादित अनुभवों से लाभान्वित होने वाले लोगों के आनंद से,

उसके एहसास मात्र से नकारात्मक लोगों के मन से यकायक प्रगट होने वाली आलोचनाओं बुराइयों से,

उसके सद-कार्यों के परिणाम स्वरूप ऐसे लोगों के वाणी से प्रगट होने वाली ईर्ष्या से,

उनके सत्यनिष्ठ अस्तित्व का सामना करने का साहस कर पाने की स्थिति से,

समस्त प्रकार की आसुरी शक्तियों, नकारात्मकताओं से संघर्ष करने के प्रति उसके अदम्भय निडर उत्साह से,

उसके आत्मज्ञान को किसी भी तर्क, वितर्क कुतर्क से काट पाने की विवशता से,

उसके "श्री माता जी" के प्रति निशर्त समर्पण चेतन कार्यों के सम्पादन के प्रति दृढ़ता कटिबद्धता से,

आसानी से हो जाता है क्योंकि ऐसे 'जागृत' "श्री बालकों" के साथ "श्री कार्यों" को आगे बढाने कार्यान्वित करने के लिए स्वयं "श्री माँ" सदा साथ होती हैं।

आप सभी से हमारा एक और प्रश्न है कि जितने भी हमारे सहजी भजन गायक हैं वे "श्री माँ" का कार्य करने के लिए देश/विदेश में कहीं भी जाते हैं तो क्या वह किसी ट्रस्टी/कार्डिनेटर/संस्थाधिकारी से आज्ञा लेते हैं अथवा "श्री माँ" की इच्छा से चलते हैं ?

जो भी सहजी रात दिन किसी किसी रूप में, किसी भी विधि किसी भी पहलू के द्वारा "श्री माता जी" के द्वारा दिखाए रास्ते पर चलने के लिए अन्यों को प्रेरित कर उन्हें "श्री चरणों" में आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं वही "श्री माँ" के सच्चे बच्चे हैं।

हम सभी को ऐसे बच्चों का हृदय से सम्मान करना चाहिए कि संस्था के तथाकथित नियमो प्रोटोकाल के नाम पर उनके खिलाफ अनर्गल असत्य प्रचार करने वालों का साथ देकर ऐसे तुच्छ लोगों को बढ़ावा देना चाहिए।

बल्कि इन सभी नकारात्मक लोगों की सामूहिक भतर्सना होनी चाहिए ताकि यह लोग सहजियों के ह्रदय में उनके अच्छे बच्चों के प्रति नफरत झूठ फैलाने वाली अपनी निम्न हरकतों से बाज जाएं।

■"श्री माता जी" ने कहा है, ' सहज योग मेरे अनेको पहलुओं में से एक छोटा सा पहलू है, आप सभी को "मुझको" समर्पित होना होगा।"■

★★★अब गम्भीरता से सोचने चिंतन करने का प्रश्न यह है कि सहजियों को इन 'ट्रस्टों/ट्रस्टियों/कार्डिनेटर्स/सीनियर सहजियों/सहज वालंटियर्स आदि को समर्पित होना है कि "श्री माता जी" को, स्वयं ही निर्णय लें।"★★★


---------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


July 11 2019

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