Monday, November 18, 2019

'अनुभूति'--48--"गाफिल इंसान"--15-08-19


यह प्रस्फुटन हमारे ह्रदय की पीड़ा ऐसे मानसिक रूप से विकृत लोगों के लिए है। जो इंसानियत को शर्मसार कर इतिहास के पन्नों पर कालिख पोतने वाली अनेको ह्रदयविदारक घटनाओं,

जैसे कश्मीरी पंडितों के सामूहिक नरसंहार हो,

स्वर्ण अंदर में हुए आक्रमण के दौरान मारे गए निर्दोष लोगों,

1984 का कत्ले आम,

अयोध्या सामूहिक हत्या कांड,

सत्ता के लोभ पूर्ति हेतु षड्यंत्र के तहत कराए जाने वाले गोधरा ट्रेन कांड,

राजनीतिक आकाओं के द्वारा प्रायोजित समय समय होते रहने वाले साम्प्रदायिक हत्याओं पर,

कहीं कहीं अपना हित साधते रहते हैं और अपनी साम्प्रदायिक मानसिकता के चलते भीतर ही भीतर प्रसन्न होते रहते हैं।

और साथ ही वर्तमान सरकार द्वारा काश्मीर के अनुच्छेद की कुछ धाराओं को निष्क्रिय करने पर,

काश्मीर की बेटीयों जमीन पर गन्दी नजर रखने वाले बालात्कारियों को प्रोत्साहित करने वाले लोगों की हम अपनी इस अनुभूति के माध्यम से पुरजोर भतर्सना भी करते हैं।


"गाफिल इंसान"

"अजीब फितरत है इस आज के मतलब परस्त इंसान की,

कोई किसी के जलते घर की आग में अपने हाथ ताप रहा होता है,

तो कोई उस घर की आंच पर अपनी रोटियां सेक रहा होता है,

कोई जलते घरों की आग को 'बोन फायर' समझ कर गीत गुनगुना रहा होता है,

तो कोई उन जलते घरों को देखकर दीवाली मना रहा होता है,

कोई ऐसी आग को देख, शब-- रात का एहसास कर रहा होता है,

तो कोई इस आग की रौशनी में अपनी मंजिल तलाश रहा होता है,

जलता है जब किसी बेदाग का घर कुदरत का कलेजा जलता है,

इस 'मामूली इंसान' का दिल भी तब अश्कों से नम होता है,

लानत है ऐसे जिंदा इंसानों पर जो मुर्दों से मुकाबला करते हैं,

पर मुर्दो से भी कमतर ऐसे ये दरिंदे फिरकापरस्त होते हैं,

जो हर वक्त जिंदों को मुर्दो में बदलने की साजिश में मशगूल होते हैं,

इजहार करता है ये "तेरा"बन्दा "तुझसे"अपनी तकलीफ--एहसास का,

या तो इन शैतानियत के रहनुमाओं को मिटा दे,

या फिर हम जैसी 'अपनी' औलादों की आमद को, ऐसी दुनिया के लिए वर्जित कर दे,

या फिर दे दे हमें 'अपनी' ताकत ऐसे वहशतगर्दों को हलाक करने की,

जहन की एक जुम्बिश से ही उनको जलाकर खाक करने की,

जानवरों से भी बदतर आज का ये जालिम इंसान हो गया है,

एहसासात की सारी हदें पार कर हैवानों से भी ऊपर उठ गया है,

मजलूमों की गर्दनें कटते देख बात पर बात मिलाता है,

दे दे कर नसीहतें मुल्क-परस्ती की, अपनो पर ही जुल्म ढाता है,

पलट इतिहास को अपने हिसाब से, मरहूमों की गलतियां रोज गिनाता है,

उखाड़ उखाड़ कर गड़े मुर्दों को, उनकी रूहों को जी भर कोसता है,

ढकने की खातिर अपनी नाकामियों को,लानत पे लानत उनको भेजता है,

जब एक दिन खुद की गर्दन को वक्त की कुल्हाड़ी के नीचे पायेगा,

तब कंपकपाते हुए कलेजे से अपनी जिंदगी की भीख मांगता नजर आयेगा,

भूल जाएगा तब सारी बातें अपनी कौम और अपने मजहब की,

नहीं याद रहेंगी उसे कोई भी बात बदले और दहशत की,

बुदबुदाते होठों से सारे "फरिश्तों" को उस वक्त याद कर रहा होगा,

पटक पटक के सर को पछतावे में

अपने गुनाहों से तौबा कर रहा होगा,


खौफजदा होकर अपने जीने के लिए जद्दो जहद कर रहा होगा,

तब सारे दरवेशों, नबी,औलिया, फकीरों,और पीरों से फरियाद करेगा,

फिर दुबारा ये गलतियां करने के लिए उनसे वादे पे वादे करेगा,

गर खुशकिस्मती से "अल्लाहताला" के रहमो करम से वो बच जाएगा,

फिर वो भूल कर भी फिरकापरस्ती की बातें अपनी जिंदगी में कभी नहीं दोहराएगा,

जाग, बेमुर्रवत-इंसा अपनी नावाकफियत की गहरी नींद से,

समझ ले अपने हकीकि वजूद को किस्मत से दुबारा मिले इस मौके से,

बन जा एक सच्चा रहम दिल इंसान, जिसके साथ चलता हो हमेशा ईमान,

जुड़ कर ऊपर वाले से कुछ अच्छे काम करले,

ले ले कर सच्चे लोगों की दुआओं से अपनी खाली झोली भरले,

खाली हाथ आया था पर खाली हाथ फिर नहीं जाएगा,

तेरा ये इंसानी सफर सही मायनों में तब ही मुक्कमल हो पाएगा।"



----------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"




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