Saturday, December 14, 2019

"Impulses"--514-- 2."श्री माँ कैसे सहज के प्रोटोकॉल स्वयं तुड़वा कर अपने तरीके से अपने कार्य करवाती हैं" (भाग-2)


 2."श्री माँ कैसे सहज के प्रोटोकॉल स्वयं तुड़वा कर अपने तरीके से अपने कार्य करवाती हैं"
(भाग-2)

हमें याद रहा है कि "श्री माँ" ने आत्मसाक्षात्कार के मात्र 20 दिनों के भीतर ही 7 अप्रैल को नोएडा के एन.जी. के भूमि पूजन के अवसर पर प्रथम बार "अपने" साक्षात दर्शन करवाये थे।

और फिर उसके बाद अक्टूबर में सर सी. पी. की पुस्तक, जो भारत में चलने वाले भ्रष्टाचार के ऊपर थी, के विमोचन पर "अपने" साक्षात दर्शनों का पुनः सौभाग्य प्रदान किया था।

इस विमोचन समारोह में बड़ी नामी गिरामी हस्तियों बड़े बड़े अधिकारियों ने शिरकत की थी सभी ने भ्रष्टाचार की रोकथाम के 25-30 मिनट के लिए बोलते हुए कुछ कुछ उपाय सुझाये थे।

***अंत में "श्री माँ" से भी भ्रष्टाचार पर बोलने का आग्रह किया तो "श्री माँ" ने केवल एक ही वाक्य बोला था,

●"यदि आप अपने देश से सच्चा प्रेम करते हैं तो आप भ्रष्टाचारी नहीं हो सकते।●"***

इसके साथ ही लिखते लिखते सन 2000 के दिसंबर माह की एक 'अदभुत दिव्य अनुभूति' का स्मरण हो रहा है। जब कुछ सहजी हमारे स्थान पर गहन ध्यान का आनंद लेने के लिए आये हुए थे।

और ध्यान के उस प्रारम्भिक दौर में हम सभी अपने दोनों हाथ 'धरा' पर रखे हुए अपने चित्त को अपने मध्य ह्रदय में रखकर "माँ जगदम्बा" का मन ही मन निरंतर आव्हान कर रहे थे।

और इस आव्हान के साथ अपनी चेतना को अपने मध्य ह्रदय रूपी सागर में धीरे धीरे उतरते जा रहे थे। लगभग 5-7 मिनट बाद इस चेतना को ऐसा प्रतीत होने लगा कि जैसे मध्य ह्रदय में भीतर की ओर एक भंवर सा बनने लगा है।

तब हमने "माँ जगदम्बे" का आव्हान और तीव्र कर दिया और ह्रदय में "माँ जगदम्बे" से "उनकी" शक्तियां प्रदान करने की प्रार्थना भी प्रारम्भ कर दी।

जैसे जैसे हमारी प्रार्थना की आवर्ती बढ़ती गई वैसे वैसे हमारे मध्य ह्रदय में एक सुखद वैक्यूम युक्त खिंचाव बढ़ता गया।

और एक समय आया कि हमें अनुभव होने लगा कि हमारे दोनों बाजुओं में तीव्र ऊर्जा दौड़ रही है और हमारी दोनों हथेलियां धरती से बिल्कुल चिपक गई हैं।

उस वक्त हमारे मध्य ह्रदय में कोई चीज बहुत तीव्रता से घूमने लगी थी और हमें अपने मध्य ह्रदय के भीतर एक जनरेटर चलने जैसी ध्वनि (ढग, ढग, ढग, ढग) सुनाई देने लगी।

इस जनरेटर की आवाज के साथ ही हमारा मध्य ह्रदय बहुत तीव्रता के साथ और भी ज्यादा भीतर की ओर खिंचने लगा। इस आनंददाई खिंचाव इस अन्दरूनी ध्वनि को सुनकर हम समझ गए थे।

कि जो भी हमारे भीतर घटित हो रहा है वह कुछ और नहीं हमारे 'अनहद' का बाजा बजने का घटनाक्रम घटित हो रहा है जिसका जिक्र 'सन्त कबीर दास जी' ने अपने एक दोहे में बयान किया था।

और ये जो तीव्रता से हमारे ह्रदय में कुछ घूम रहा है वह हमारे मध्य ह्रदय चक्र चलने का घटनाक्रम है। ऐसा महसूस करके हम "माँ जगदम्बा" से और भी ज्यादा शक्ति की मांग करने लग रहे थे क्योंकि हमें बहुत ही मजा रहा था।

इसके कुछ देर बाद हमको ऐसा लगने लगा था कि हमारे भीतर एक बहुत तीव्र भूकम्प रहा है जो हमारी हर मांग के साथ बढ़ता ही जा रहा है।

इस तीव्र आंतरिक कम्पन्न का मतलब भी अब हमें समझ रहा था कि हमारे मध्य ह्रदय में स्थित "माँ जगदम्बा" जागृत हो गईं हैं और "वे" हमें अपनी शक्तियां प्रदान कर रही हैं।

इस अदभुत अलौकिक स्थिति का आनंद लेते हुए हम लगभग पौन घंटे तक गहन ध्यान में बने रहे। जब हमारी आंख खुली तो हमने पाया कि सभी सहजी हमारी ओर ही देख रहे थे।

उन्होंने हमें बताया कि हमने तो 5-7 मिनट बाद ही आंख खोल लीं थीं और हम आपको देख रहे थे। क्योंकि आपकी आंखें बंद थी और आप गहन ध्यान में डूबे थे किंतु आपकी दोनों बाजू गालों में कम्म्पन दिखाई दे रहा था।

यदि यह कम्म्पन की स्थिति हमारे संस्थाधारी देख लेते तो निश्चित रूप से उन्होंने इसे हमारे मूलाधार की बाधा के रूप में परिभाषित कर दिया होता।

क्योंकि उनके पढ़े सुने हुए ज्ञान के कारण उनको यही समझ आता।"श्री माता जी" ने अपने एक लेक्चर में बताया है कि यदि हमारा शरीर हिलने लगे तो समझ लेना चाहिए कि मूलाधार पर चोट हो रही है, यानि मूलाधार गड़बड़ है।

क्योंकि अधिकतर सहजी एक दूसरे को सुनी सुनाई सूचनाओं के आधार पर ही जज करते हैं। वास्तव में अधिकतर सहज अनुयायियों को तो अन्य के यंत्र को अपने यंत्र में ठीक प्रकार से अनुभव करना भी नहीं आता।

यदि कुछ अनुभव हो भी जाए तो उस अनुभव का मतलब समझ नहीं पाता जिसके कारण केवल और केवल आधी अधूरी सुनी/पढ़ी बातों पर ही निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

और फिर उन गलत सलत निष्कर्षों को आगे से आगे एक दूसरों तक भेज दिया जाता है। वास्तव में "श्री माँ" ने अनुकंम्पा करके उन क्षणों में हमारे मध्य ह्रदय को खोल कर अपनी शक्तियों से हमें पोषित किया था।

यह चेतना "श्री चरणों" में अनुग्रहित है कि "श्री माँ" ने अपने "चरण कमलों" में स्थान देकर हमारे इस मानवीय जीवन को कृतार्थ किया।

इस आंतरिक 'दिव्य' घटनाक्रम के बाद हमने अनुभव किया कि हम 'भावनात्मक स्तर' पर और भी ज्यादा सशक्त हो गए थे और भावनात्मक रिश्तों के प्रति हमारे भीतर निडरता में भी काफी इजाफा हो गया था।

यह बात सत्य है कि जब तक हमारा ह्रदय चक्र जागृत नहीं हो पाता तब तक हमारे इन भावनात्मक रिश्तों का सत्य उजागर नहीं हो पाता।

और हम भावनात्मक कमजोरी के चलते इन रिश्तों के आगे पंगु ही बने रहते हैं और इन्हें मजबूरी में सदा ढोते ही रहते हैं।

फिर चाहे वह रिश्ते हमारे साथ कितनी भी धोखा-धड़ि करते रहें, हमें लूटते रहें, हमारी पीठ में छुरा भोंकते रहें, चोरी करते रहें, हमारा उत्पीड़न करते रहें किन्तु हम सदा कमजोर ही बने रहते हैं।

इसके अतिरिक्त मध्य ह्रदय चक्र खुलने से हमारे भीतर आत्मा का संवाद काफी तीव्र सुनाई पड़ने लगता है।

और हम अपनी आत्मा के साथ सामंजस्य बनाते हुए अपनी आत्मा के मार्गदर्शन में अपने जीवन के हर मुकाम पर निर्बाध चलते चले जाते हैं।

***यह 'विशिष्ट' अंतःकरण की अनुभूति भी हमारे सहज सेंटर में जाये बगैर ही "श्री माँ" ने एक छोटी सी सामूहिकता में करा दी थी।***

"श्री माता जी" के पब्लिक प्रोग्राम के बाद ही इस चेतना को सहज सेंटर का पता चला था। इसके 15-20 दिनों के बाद हमारी नासिका के ऊपरी भाग में, जो दोनों भवों के एकदम नीचे होता है।

इसके भीतर की ओर एक सुखद सा तीव्र खिंचाव जिसका रुख ऊपर की ओर था, प्रारम्भ हो गया। इस खिंचाव के बारे में अपने 'सहज-माध्यम' से हमने कई प्रश्न किये कि यह खिंचाव क्यों हो रहा है।

तो इस प्रकार का कोई उनका स्वयं का अनुभव हो पाने के कारण वे कोई उपयुक्त जवाब नहीं दे पाए।

एक दिन हमने सेंटर में ध्यान करवाने वाले काफी सीनियर सहजी से हमने अपनी नासिका में होने वाले खिंचाव के बारे में पूछा तो उन्होंने इसे बाधा बता दिया और एक दो ट्रीटमेंट भी बता डाले।

जबकि हमने उनसे कहा था कि इस खिंचाव से हमें कोई तकलीफ नहीं होती है किंतु फिर भी उन्हें कुछ शायद समझ नहीं आया था। हम जान गए थे कि इनको भी अभी तक इस खिंचाव का अनुभव नहीं हुआ है।

जिसके कारण ये अपना पढ़ा सुना हुए आधे-अधूरे ज्ञान का उपयोग करते हुए इस अनुभव को एक बाधा के रूप में ही देख रहे हैं।

सहजयोग संस्था में ध्यान से जुड़े 99 % सहजी अनुभव विहीनता के कारण इस प्रकार के ध्यान अनुभवों को केवल बाधा के नजरिये से ही देखते हैं क्योंकि इन अनुभवों से ठीक प्रकार से गुजरे ही नहीं होते।

और यदि गुजरे भी होते हैं तो अज्ञानता के कारण इन सुंदर ऊर्जा- अनुभवों को डीकोड कर पाने के कारण ठीक प्रकार से समझ नहीं पाते।

और मन की स्मृति में इन अनुभवों के बारे में कोई सूचना होने के कारण ऐसे समस्त सूक्ष्म अनुभवों को बाधा का दर्जा ही दे डालते हैं।

और सदा डरे सहमे से रहते हैं और दोषभाव से ग्रसित होकर बिन बात के अपनी क्लियरिंग करते रहते हैं।

अतः हमने इस प्रकार के अनुभवों का कारण मतलब स्वयं से खोजने का ही निर्णय ले लिया और अपनी ध्यान अवस्था अपने चित्त पर अपना चित्त रखने का अभ्यास बनाने लगे।

ताकि जब भी हमें इस प्रकार के अनुभव हों तो हम जान सकें कि हमारा चित्त उस घड़ी कहाँ पर विद्यमान है।

और हम उस खिंचाव के विशेष अवसर पर क्या सोच रहे थे जिसकी प्रतिक्रिया में हमें वो खिंचाव हो रहे थे/रुक रहे थे/बढ़ रहे थे।

उस चित्त के अभ्यास चेतना की सजगता के कारण हमने जाना कि जब हमारी कुंडलिनी, मन चित्त सहस्त्रार पर होते हैं तो हमारी चेतना "माँ आदि शक्ति" के साथ एकाकार हो जाती है।

तो हमारा सहस्त्रार "माँ आदि शक्ति" की ऊर्जा को शोषित करके सर्वप्रथम हमारे मध्य हॄदय में प्रेषित करता है जिसके कारण हमारा मध्य ह्रदय चक्र चलना प्रारम्भ हो जाता है।

हमारा ह्रदय चक्र भी कुछ अपनी ऊर्जा उत्पन्न करने लगता है जिससे एक वैक्यूम बनने लगता है। और यह वैक्यूम इस दिव्य ऊर्जा' को हमारे ब्रह्मरंध्रों के माध्यम से हमारे मस्तिष्क में खींचने लगता है।

और फिर मस्तिष्क से जुड़ी हमारी तीनो नाड़ियों में "श्री शक्ति" बहने लगती और फिर ये तीनो नाड़ियां भी अपनी अपनी ऊर्जा प्रस्फुटित करने लगती है।

और यह प्रस्फुटित होती हुई ऊर्जा हमारी तीनो नाड़ियों की मिलन-स्थली, जिसे हम त्रिकुटी भी कह सकते हैं, जो हमारी दोनों भवों के स्थान पर विद्यमान है, यहां पर संग्रहित होने लगती है।

जिसके कारण हमारी नासिका के ऊपरी भाग में भीतर की ओर ऊध्र्वगामी खिंचाव की अनुभूति होने लगती हैं।

क्योंकि हमारी नाड़ियों की तीनो 'महादेवियाँ' अपना प्रेम इस उद्गर्वगामी ऊर्जा के रूप में सहस्त्रार पर स्थित "माँ आदि शक्ति" तक पहुंचाना चाहती हैं।

इसी लिए तीनों नाड़ियों की मिश्रित ऊर्जा का रुख सहस्त्रार की ओर ही रहता है जिसकी प्रतिक्रिया हमें ऊपर की ओर जाने वाले खिंचाव के रूप में अनुभव होती है।

इसी खिंचाव के कारण हमारे सहस्त्रार के कुछ और ब्रह्मरंध्र भी खुलने प्रारम्भ हो जाते हैं।

अब हम अच्छे से समझ सकते हैं कि नासिका के ऊपरी भाग में भीतर की ओर होने वाला खिंचाव कोई बाधा होकर हमारे यंत्र में घटित होने वाली सकारात्मक ऊर्जा की एक सूक्ष्म प्रक्रिया है।

जो हमारी महीन 'एनर्जी-ट्यूब्स' को खोलने का ही घटनाक्रम है जिसे समझ पाने के कारण अनुभव विहीन सहजी इसे नकारात्मक रूप में ही ले लेते हैं।

और फिर अन्य सहजियों के बीच में बैठकर इस खिंचाव के बारे में बताने वाले उस सहजी को बाधित ठहरा कर उसकी खूब चर्चा करते हैं।

उन दिनों मेरठ का सहज सेंटर 'दत्ता साहेब' की देखरेख में पी पी पी कांफ्रेंस हाल में चला करता था जहां पर उस समय यहां पर लगभग 150-200 लोग सप्ताह में आया करते थे।

मेरठ सेंटर का पता चलने के बाद इस चेतना के माध्यम से "श्री माँ" के द्वार जिन्हें भी आत्मसाक्षात्कार दिलवाया जाता था, उन सभी को मेरठ सेंटर का पता बता दिया जाता था।

इस सिलसिले के कुछ ही दिनों बाद हमारे माध्यम से जागृत हुए लोग हमें झिझकते हुए बताने लगे कि जहां आप हमें बड़े प्रेम से सेंटर के बारे में बता कर भेजते हैं।

1st Compliment:-प्रथम उपाधि:

किन्तु वहां पर जो महानुभाव नए लोगों के आत्मसाक्षात्कार ध्यान का कार्य देखते हैं वो हमसे पूछते हैं कि आपको किसके द्वारा आत्मसाक्षात्कार मिला।

और जब हम उनको आपके बारे में खुशी खुशी उत्साह से बताते हैं तो वो तो उल्टा आपके बारे में उल्टी सीधी बाते करने लगते हैं। वे हमसे कहते हैं कि आप उनसे मत मिला करो वे 'लेफ्ट साइडिड' हैं क्योंकि उनके भीतर 'भूत' निवास करते हैं।

किन्तु हमें तो आपके भीतर कभी कुछ ऐसा नहीं लगा, बल्कि हमें उन लोगों के भीतर वो प्रेम नहीं मिलता जो आपसे मिलता रहा है, आगे से हम वहां नहीं जाएंगे।

*उनसे यह सब सुनकर हम भीतर ही भीतर सोच रहे थे कि ऐसे सहजियों से तो हम जैसे 'भूत बाधित' ही ठीक हैं जिनके माध्यम से "श्री माँ"अपना आत्मसाक्षात्कार ध्यान का कार्य तो ले रही हैं।*

तो यह था हमारे लिए सबसे पहला कॉम्प्लिमेंट जो हमें "श्री माँ" की कृपा से हमारी अपनी ही सहज संस्था के करणाधिकारियों से उनकी ईर्ष्या के कारण प्राप्त हुआ, जिसे सुनकर हॄदय आनंदित हो गया था।

यदि सभी सहजी "श्री माता जी" का एक लेक्चर पढ़/सुन लें जिसमें "श्री माता जी" ने तीनों नाड़ियों, के गुण-दोष इनसे प्रभावित होने पर उत्पन्न होने वाले लक्षणों के बारे में विस्तार से बताया है।

तो कोई भी सहजी किसी को किसी भी नाड़ी अथवा चक्र से बाधित बताने पर पहले स्वयम के लक्षणों को देखेगा और फिर अपना मुख खोलने से पूर्व हजार बार सोचेगा।

किन्तु यह देखने में आता है कि सहजी एक दूसरे की सुनी सुनाई तथ्य हीन बातें, बिना अपने यंत्र पर अनुभव किये आगे बढ़ाते जाते हैं।

जिससे उनका स्वयम का स्वाधिष्ठान पकड़ने लगता है और इस पकड़ को भी वह अज्ञानता के चलते उसी सहजी की ही बताते हैं और ये बाते आपस में फैलाते जाते हैं।

खैर हमने उन लोगों से कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है "श्री माता जी" ध्यान के बहुत से तकनीकी पहलू बता रखें हैं।

जिसके कारण कई बार पुराने से पुराने सहजी भी "श्री माँ" की बातों का बिना अनुभव के ठीक प्रकार आंकलन करने के कारण कुछ भी मतलब निकाल लेते हैं।

आप चिंता करें आप केवल "श्री माता जी" की ऊर्जा प्रेम की ओर ही ध्यान दें और समय समय पर वहां जाते रहें।

खैर हमारे समझाने बुझाने के बाद हमारे माध्यम से जुड़े सभी सहजी भी अब सेंटर जाना प्रारम्भ हो गए थे और वे सभी शिव मंदिर पर भी ध्यान के लिए आते रहते थे।"

●"We must always avoid to Judge others on the basis of Hear-Says as well as on the basis of Mental Informations.

Out of Utter Ignorance if we keep on Judging people then it will be called Foolishness in all manners.

Because our Mind is not capable to Assess the Truth. But our Heart has this trait to Realize other's Internal State effortlessly."●

---------------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"



.......To be Continued



29 August 2019
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