Monday, December 9, 2019

"Impulses"--513--"साधक परिचय"


"साधक परिचय"

"कभी कभी यह देख कर बड़ा ही आश्चर्य होता है कि जब कई कई साल पुराने कुछ सहजी आपसे आपका सरनेम, आपकी जाति, आपका गोत्र, आपके जीविकोपार्जन के साधन, आपके रहने का स्थान आदि के बारे में जानने के लिए अत्यंत उत्सुक हो जाते हैं।

यह बताने पर भी कि हम सभी "श्री माँ" की संतान हैं और अब हमारी केवल और केवल यही एक पहचान हैं। किन्तु फिर भी वे शांत नहीं होते, बार बार आपसे समय समय पर यही प्रश्न दोहराते रहते हैं।

हांलांकि अभी भी यह पूछने का सिलसिला समय समय पर चलता ही रहता है। काफी अरसा पहले भी एक सहजी आंटी फोन पर हमारी जाति पूछने के पीछे ही पड़ गईं थीं।

क्योंकि हम कभी भी अपने नाम के आगे कोई सरनेम नहीं लगाते क्योंकि हमारी आंतरिक जागृति यह कहती है कि:-

जब हम सभी उत्क्रांति की प्रक्रिया के द्वारा 'अमीबा से मानव' बनाये गए तो हमारी पूंछ गायब हो गई किन्तु हमारे सामूहिक अवचेतन में अभी भी वह पूंछ विद्यमान है, क्षमा कीजियेगा, जो सरनेम के रूप में मौजूद है।

हालांकि हमने फेस बुक एकाउंट पर अपना इन्फो० दे नहीं रखा है क्योंकि यहाँ से अक्सर व्यक्तिगत सूचनाएं लीक होती रहती हैं और मोबाइल no पर अक्सर टेलीमार्केटिंग वालों के फोन आने प्रारम्भ हो जाते हैं।

किन्तु आप सभी की जानकारी संतुष्टि के लिए हमारे स्थान, सम्पर्क, व्यक्तित्व, कर्तव्य,कर्म,स्वभाव आदि से सम्बंधित  हमारी  समस्त  व्यक्तिगत जानकारियां हमारी चेतना समझ के अनुसार नीचे दी जा रही हैं कृपया नोट कीजियेगा:-

1.नाम:-"श्री"-'बालक'

2.जन्म तिथि:-19-03-2000

3.जन्म स्थान:-"श्री चरण"

4.माता-पिता का नाम:-"श्री माँ"

5.रहने का स्थान:-'सहस्त्रार'

6.ध्यान केंद्र:- 'मध्य हृदय'

7.सम्पर्क no:-'7 4 6' यानि 7>4>6, यानि,

7=सहस्त्रार, यानि चित्त को सहस्त्रार में रखकर,

4=मध्य ह्रदय, से जुड़कर दोनों स्थानों पर ऊर्जा को महसूस करते हुए,

6=आगन्या, में दिल से स्मरण करने पर तुरंत आपका मेसेज चला जायेगा।

और ऐसा करने के तुरंत/कुछ देर बाद यदि आपको अपने सहस्त्रार मध्य हृदय में सुखद खिंचाव के साथ यकायक ह्रदय में इस चेतना नाम प्रगट हो तो समझ लें कि प्रति-उत्तर मिल गया।

8.सम्पर्क सूत्र:-"माँ आदि शक्ति" की 'शक्ति'

9.परिजन:-'सहस्त्रार मध्य ह्रदय में "श्री ऊर्जा" को अनुभव करने वाले समस्त साधक/साधिकाएं'

10.नाड़ी:-'मध्य'

11.वर्ग:-'जागृत'

12.पद:-'स्वं गुरु'

13.गोत्र:-

i) 'ईमानदारी से परिपूर्ण सांसारिक लेनदेन, रिश्तों, जीवीकोपार्जन आध्यात्मिक यात्रा पर चलने वाले समस्त साधक/साधिकाओं के लिए किये गए समस्त कार्यों के लिये यह चेतना *वैश्य* है।

वैश्य शब्द 'वैष्णव' से लिया गया है जो 'वासुधैव कुटुम्बकम' के भाव पर आधारित है। यानि सम्पूर्ण विश्व के मानव एक ही माता-पिता की संतान हैं के सिदान्त पर चलने वाला।'

ii) 'मलिनता से आच्छादित साधारण जागृति की प्रक्रिया से गुजरते समस्त मानवों के ह्रदय, मन मस्तिष्क की हर प्रकार की गंदगी को दूर करने के लिए यह चेतना *शूद्र* है।'

iii) 'मानवता, प्रकृति "परमात्मा" विरोधी समस्त तत्वों के लिए यह चेतना *क्षत्रिय* है।'

iv)"पारब्रह्म परमेश्वर" से जुड़ने उनका सानिग्धय बनाये रखने इन स्थितियों को पाने की इच्छा रखने वालों के लिए यह चेतना *ब्राह्मण* है।'

v) 'जात-पात, धर्म, बिरादरी, वर्ण, रंग, ऊंच-नीच, छुआ-छूत, शुभ-अशुभ आदि में उलझे हुए समस्त वर्गों के भ्रमित मानवों के लिए यह चेतना *चमार* है।'

14.कर्तव्य साधना:-'निशुल्क परामर्श दाता' ('Psycho Spiritual Counselor')

i) 'तूलना, प्रतिस्पर्धा,भ्रम, कल्पना, अतिमहत्वाकांशा,अनियंत्रित इच्छा,विभिन्न प्रकार की मानसिक ग्रंथियों की ग्रस्तता अनेको प्रकार की लिप्तता के कारण स्वयं को दीन हीन समझने वालों',

ii) 'घोर अज्ञानता के चलते अपनी जीवात्मा,आत्मा चेतना "परमात्मा" की उपेक्षा करने वालों',

iii) 'आत्महत्या के असफल प्रयास करने/रात दिन आत्महत्या की इच्छा रखने वालों',

vi) 'निर्भयता युक्त आनंदमई जीवन जीने की कामना करने वालों',

v) 'विभिन्न प्रकार की मानसिक विकृति, भ्रमों, जड़ताओं, बाधाओं, पजेशन से ग्रसित,'

vi) 'ध्यान में उन्नति की तीव्र इच्छा रखने वालों अन्य सभी प्रकार की सकारात्मक आंतरिक उपलब्धियों को हांसिल करने की आवश्यकता अनुभव करने वालों,के लिए यह चेतना अपने अनुभवों, चिंतन आभासों के माध्यम से आप सभी साधक/साधिकाओं के लिए उपलब्ध है।'

15.कर्म साधना:-

i) 'सनातन', 'सत्य' 'अनश्वर', 'अविनाशी', 'अनंत परम सत्ता' का निरंतर आंतरिक साधना के माध्यम से खोज, आभास, भ्रमण प्रचीती।'

ii) "परमपिता" की सर्वोत्तम रचना यानि 'मानव' के समस्त आयामों का संज्ञान,अनुभव, चिंतन, मनन धारणा यात्रा।

iii) व्यक्तिगत, सामूहिक, देशीय, वैश्विक बुराइयों के लिए गहन ध्यान अवस्था में व्यक्तिगत सामूहिक स्तर पर निरंतर कार्य करना।

iv) जो भी ध्यान यात्रा में प्राप्त हो उसे पात्रता से युक्त सभी साधक/साधिकाओं के साथ सहर्ष बिना किसी भेद भाव के बांटना।

v) "श्री प्रेम" "श्री सन्देश" को आत्मसाक्षात्कार प्रक्रिया के माध्यम से अपने स्वयं के वास्तविक अनुभवों चिंतन को प्रसारित करना।

16.स्वभाव:-

i)सच्चे,ईमानदार,शांत,आत्मसंतुष्ट, विकास-प्रिय भोले भाले "श्री माँ" के बच्चों के लिए *प्रेम मई*

ii) परोपकारी, परमार्थी, मानव-हित-प्रहरी विश्व हित की कामना करने वाले सद जनों के लिए *मित्रवत*

ii) पाखंडी, धोखेबाज, लुटेरे, आताताई, कट्टरपंथी, मक्कार,षड्यंत्रकारी, नकलची, बहसखोर, उत्पीड़न करने वाले, सबकी चेतनाओं पर जबरन शासन करने वाले जालिम किस्म के सहज-पोंगे-पण्डितों के लिए *निष्ठुर*

iii) ईष्यालु, शंकालु, मूर्ख, झूठे, अहंकारी, असभ्य, लोभी, व्यसनी, कामचोर, अतिमहत्वाकांशी, आत्ममुग्ध, प्रशंसा प्रिय, दिखावटी, राजनीतिक विचारधाराओं के गुलाम सांसारिकता में आकंठ डूबे तथाकथित सहज अनुयाइयों के लिए *निर्लिप्त*

iv) मेहनती, पीड़ित, सताए हुए, उत्पीड़ित आदि सहजीजनों के लिए "स्नेहमयी"

v) पद, पैसा, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि, प्रशंसा पहचान के लिए सहज कार्य करने वालों के लिए *अजनबी*

vi) 'समस्त प्रकार के 'चेतन कार्यों' में बाधा बनने, अड़चने डालने रोकने का प्रयास करने वालों के लिए *अत्यंत कठोर*'

आशा है इस चेतना के पूर्ण परिचय इस प्रस्फुटन के द्वारा आप सभी को प्राप्त हो गया होगा। फिर भी यदि कुछ छूट गया होगा तो स्मरण होने पर इसमें जोड़ दिया जाएगा।

आप सभी से विनम्र निवेदन है कि कृपया इस उपरोक्त विवरण को अन्यथा नहीं लीजिएगा। और ही हमारी इस अभिव्यक्ति का आंकलन हमारे आत्म-प्रदर्शन के रूप में कीजियेगा।

यह जो भी है, केवल और केवल हमारे आंतरिक बाह्य अस्तित्व का वास्तविक चित्रण ही है।

***जब हम "श्री माँ" के द्वारा "उनके" "श्री चरणों" में ले लिए जाते हैं तब हमारी व्यक्तिगत सांसारिक पहचान स्वतः ही समाप्त हो जाती है।
क्योंकि "श्री माँ" के अनुसार आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से जब हमारा पुनर्जन्म हो जाता है।

तो हमारे पूर्व जन्म का परिचय पहचान गौण हो जाते हैं। अतः हम सभी को अपनी पूर्व पहचान बनाये रखने का तो कभी यत्न करना चाहिए।
और ही कभी अपनी उस मृतप्राय पहचान को बनाये रखने के लिए लालायित ही रहना चाहिए।"***


--------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"



August 22 20019

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