Wednesday, March 11, 2020

"Impulses"--520--·."विभिन्न प्रकार की चेतना स्तर के सहज अनुयायी" (भाग-1)


·"विभिन्न प्रकार की चेतना स्तर के सहज अनुयायी"
(भाग-1)

"श्री माँ" के द्वारा इस चेतना को "उनके" "श्री चरणों" में लाये जाने बाद से अब तक की सहज यात्रा के दौरान हमें विभिन्न चेतना के स्तर के सहज अनुयाइयों से मिलने उनको समझने का अवसर मिला।

एक बहुत ही आश्चर्य जनक तथ्य हमारे समक्ष निकल के आया कि अधिकतर सभी स्तर के सहजियों में 98 % से अधिक सहजी मानसिक स्तर पर ही सहज योग से जुड़े हुए हैं।

जिन्हें हम उनकी ग्राह क्षमता समझ के अनुसार विभिन्न वर्गों में बांट सकते हैं।जो निम्न प्रकार हैं:-

A.मानस प्रभावित सहजी (Mind Orinted Sahaji)

तो अब हम चलते हैं इस विषय पर अपनी अवलोकन चिंतन यात्रा पर, देखते हैं किस किस प्रकार के तथ्य हम सभी के सामने उजागर होने जा रहे हैं।तो सबसे पहले हम समझने जा रहे हैं:-

1.मानस प्रभावित सहजी:- यह वर्ग ऐसे सहजियों का है जो सहज ध्यान से जुड़े हर प्रकार के कार्य अपने मन में संचित सूचनाओं के आधार पर करते हैं

यहां तक कि ध्यान में उतरने के लिए भी पूर्व सुनिश्चित एक ही प्रकार का क्रम के आधार पर ही उतरने के प्रति लालायित रहते हैं। साथ ही एक ही प्रकार की क्लीयरिंग प्रक्रियाओं को सदा एक ही तरीके क्रमानुसार ही करते हैं।

यदि इस प्रकार के सहजियों के ध्यान क्लीयरिंग प्रक्रियाओं में थोड़ी भी फेर बदल कर दी जाय तो इस वर्ग के सहजी पूरी तरह गड़बड़ा जाते हैं।
मानसिक आधार पर चलने वाले सहज अनुयाइयों को दो भागों में बांटा जा सकता है:-

a) घनात्मक भाव वाले सहज अनुयायी

b) ऋणात्मक मनोवृति वाले सहज अनुयायी

तो सर्वप्रथम घनात्मक भाव वाले सहजियों को अपने विश्लेषण में शामिल करते हैं जिनका ध्यान के प्रति उद्देश्य सकारात्मकता से आच्छादित रहता है।

a) घनात्मक भावों से युक्त सहजी:-

इन सहजियों मे भी निम्न वर्ग बन जाते हैं:-

1.भक्ति भाव वाले सहजी:-

ऐसे सहजी काफी मिलनसार होते हैं और रात दिन किसी किसी रूप में "श्री माता जी" के स्वरूप की ही वंदना करते रहते हैं,

"उनके" अल्टार को सुरुचिपूर्ण ढंग से श्रृंगार करते हैं और उनके समक्ष भजन आदि गाते रहते हैं।यह सब करके उनके मन को अत्यंत प्रसन्नता संतोष का अनुभव होता है।

"श्री माँ" के अल्टार के सामने बैठ कर अपनी भीतर में चलने वाली बातों को अक्सर "उनसे" बोलते हैं।

साथ ही "श्री माता जी" की वाणी को निष्ठापूर्वक सुनते हैं और जितनी भी बातें उनको मानसिक आधार पर समझ आती हैं, "उनकी" वाणी के अनुरूप व्यवहार करने का पूरा प्रयास करते हैं।

2.प्रेम से परिपूर्ण सहजी:-

ऐसे सह्रदय सहज अनुयायी प्रेम से परिपुर्ण होते हैं जो सभी सहजियों का सम्मान करते हैं सभी सहज अनुयायियों को समान रूप में गले लगाते हैं।
इस वर्ग के सहजियों के घनिष्ट सम्बंध इनसे मिलने वाले लगभग सभी सहजियों से होते हैं।

ऐसे सहजी समय समय पर अक्सर अपने मिलने वाले सहजियों को अपने घर भोजन आदि पर बुलाते रहते हैं और समय समय पर स्वयं भी जाते रहते हैं।

ऐसे सहजी सदा यही विचार करते हैं कि यदि सहजियों से सदा मिलते जुलते रहें तो अच्छे वायब्रेशन आते रहेंगे और घर में भी चैतन्य बना रहेगा।
किन्तु ध्यान की गहरियों अपनी गहनता में उतरने में इनकी रुचि काफी कम ही होती है।

3.सामाजिक स्वभाव वाले सहजी:-

इस वर्ग के सहजी समस्त प्रकार की सहज सामूहिकता में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। ऐसे सहजी साप्ताहिक सेंटर अटैंड करने के साथ साथ लगभग हर पूजा, सेमिनार, भजन संध्या आदि में अपनी उपस्थिति अवश्य दर्ज कराते हैं।

इनके अतिरिक्त किसी भी सहजी के घर में होने वाले हर प्रकार के सामाजिक समारोह जैसे विवाह, जन्मदिन, उद्घाटन आदि में प्रसन्नता के साथ शामिल होते हैं।

और समस्त सहजियों के साथ समय समय पर मिलते जुलते रहकर एक दूसरे के सम्पर्क में लगातार बने रहते हैं। ऐसे सहजियों की धारणा होती है कि इस प्रकार की सहज जीवन शैली से सहज धर्म का विकास होगा और सहज समाज उन्नत होगा।

4.सहज का कार्य करने वाले सहजी:-

यह एक ऐसा सहजियों का वर्ग है जो व्यक्तिगत सामूहिक स्तर पर निरंतर आत्मसाक्षात्कार के कार्य करने में संलग्न रहते हैं।

ये सहजी लगभग हर सप्ताह अथवा हर 15 दिनों के भीतर अपने शहर के अतिरिक्त अन्य शहरों में भी आत्मसाक्षात्कार देने के लिए लगातार जाते रहते हैं।

इस प्रकार के सहजी हर समय इस फिराक में रहते हैं कि कब, कहाँ पर आत्मसाक्षात्कार देने का अवसर प्राप्त हो जाये।

ऐसे सहजी हर पल यह सोच सोच कर प्रसंन्न संतुष्ट होते रहते हैं कि वे लोग "श्री माता जी" के स्वप्न को पूरा करने के लिए निरंतर आत्मसाक्षात्कार दे रहे हैं।

किन्तु ऐसे सहजियों का चित्त मुश्किल से 10-15 मिनट ही ध्यान में लग पाता है, क्योंकि ध्यान के दौरान ही उन्हें स्थान स्थान पर आत्मसाक्षात्कार करने के विचार आने प्रारम्भ हो जाते हैं। और उनका मन अनेको जागृति के कार्यक्रम करने की योजनाएं बनाने में संलग्न हो जाता है।

5.ध्यान करवाने वाले सहजी:-

इस वर्ग के सहजी अक्सर सेंटर्स में नए लोगों को आत्मसाक्षात्कार देते हैं कभी कभी सामूहिकता को सदा सहज संस्था में प्रचलित ध्यान भी करवाते हैं।

यह लोग अवसर सेमिनार पूजा में भी सामूहिकता को ध्यान करवाते हैं और ध्यान के लिए सदा एक ही प्रकार का तरीका, क्रम विधि ही अपनाते हैं। यहां तक कि इनके द्वारा कराए जाने वाले ध्यान के तरीके सहजियों को रट जाते हैं।

ऐसे सहजी सभी को सामूहिक रूप से ध्यान करवा कर अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भीतर में सदा सोचते हैं कि वे इस रूप में ही चैतन्य का कार्य कर रहे हैं।

6.हवन पूजा सम्पन्न कराने वाले सहजी:-

इस वर्ग के सहजियों की रुचि अधिकतर किसी किसी सहजी के घर हवन, पूजा क्लीयरिंग कराने में ज्यादा होती है। ऐसे सहजी अपनी इन रुचियों के कारण अन्य सभी सहजियों के बीच काफी लोकप्रिय हो जाते हैं।

जिसके कारण इनको सहजी अपने घरों में किसी किसी अवसर पर बुलाते ही रहते हैं। इस प्रकार के कार्यों में ये लोग काफी व्यस्त रहते हैं और ऐसी व्यस्तता के चलते ये सहजी अत्यंत प्रसन्न रहते हैं।

क्योंकि यह सब करके इनको अपने भीतर अत्यंत संतोष का अनुभव होता है और यह लोग सोचते हैं "श्री माता जी" से मांगते भी हैं कि "श्री माता जी" इनसे इसी प्रकार के कार्य लेती रहें।

7.भजन गाने वाले सहजी:-

इस वर्ग के सहजियों की रुचि केवल और केवल भजन गाने में ही होती है, और यह लोग भजन अच्छा गाते हैं। ऐसे सहजी अक्सर साप्ताहिक सेंटर्स, सामूहिक पूजा हवन में अक्सर भजन गाते दिखाई देते हैं।

इनमें से कुछ भजन गायकों को तो काफी सहजी अपने सामाजिक कार्यक्रमों में भजन गाने के साथ साथ आत्मसाक्षात्कार दिलवाने के लिए भी बुलवाते रहते हैं।

कुछ भजन गायक तो अत्यंत प्रेममयी वात्सल्य मई होते हैं जिसके कारण ये सहजी अत्यंत लोकप्रिय हो जाते हैं।

ऐसे सहजियों की मान्यता होती है कि "श्री माता जी" भजनों के जरिय उनकी वाणी के माध्यम से सारे वातावरण में चैतन्य आनंद बिखेरती हैं।

ऐसे सहजी "श्री माता जी" से भीतर ही भीतर अत्यंत प्रेम करते हैं और सहजियों के बुलावे पर हर स्थान पर पहुंचने का प्रयास करते हैं।

8.भजनों पर डांस करने वाले सहजी:-

इस वर्ग के सहजी सदा भजनों पर डांस करने को आतुर रहते हैं या ये कहें कि जैसे ही तबले ढोलक वाले भजन प्रारम्भ होते हैं।

ये सहजी अपने आप को रोक ही नहीं पाते और तुरंत अपने अपने स्थानों पर खड़े होकर नृत्य करना प्रारंभ कर देते हैं।

ऐसे सहजी ज्यादातर अपने भीतर ही भीतर में संकुचित रहते हैं और तबले ढोलक की थाप इनके संकोच को एक झटके में दूर कर देती है और ये मस्त होकर डांस करने लगते हैं। डांस करके इन लोगों को अपने भीतर अत्यंत राहत अनुभव होती है।

9.अपने अपने घरों में ध्यान करने वाले सहजी:-

सहजियों के इस वर्ग में अधिकतर महिला सहजी ही आती हैं क्योंकि इस वर्ग के सहजियों के घर के लोग अत्यंत क्रूर गुस्सैल होते हैं जो इन सहजी महिलाओं को घर से बाहर ही नहीं जाने देते।

यहां तक कि इस वर्ग में आने वाले सहजी अपने घरवालों के डर से "श्री माता जी" का अल्टार भी नहीं लगा पाते।

किसी तरह से अलमारी में छुपा कर "श्री माता जी" का फोटो रखते हैं और जब उनके घर के लोग बाहर चले जाते हैं तो चुपचाप बिना किसी को एहसास कराए ध्यान में बैठ जाते हैं।

और "श्री माता जी" से हर पल मांगते रहते हैं कि कुछ ऐसी व्यवस्था हो जाय कि ये सहजी समय समय पर सेंटर अथवा बाहर की सामूहिकता अटैंड कर पाएं।

10."श्री माता जी" के स्थानों पर नियम से लगातार जाने वाले सहजी:-

इस वर्ग में आने वाले वह सहजी होते हैं जो लगातार ऐसे स्थानों पर जाते रहते हैं जहां पर "श्री माता जी" साकार स्वरूप में कुछ दिन रही होती हैं।

वास्तव में ऐसे सहजी सदा ऐसा सोचते हैं कि यदि हम "श्री माँ" के रहने के स्थानों पर निरंतर जाते रहें तो हमारे चक्र,नाड़ियां सांसारिक जीवन सदा अच्छा चलता रहेगा।

इस प्रकार के भाव वाले सहजी कहीं कहीं भीतर से किन्ही कारणों से कुछ कुछ खो देने के डर से आशंकित, भयभीत कमजोर अनुभव करते हैं। और जब वे ऐसे स्थानों पर निरंतर जाते रहते हैं तो उनको अपने भीतर एक शांति निश्चिंतता अनुभव होती हैं।

जैसे आम सदारण जीवन को जीने वाले लोग लगातार तीर्थ स्थानों पर जाते ही रहते हैं और अपने जीवन में राहत महसूस करते हैं।

11.सेवा भाव वाले सहजी:-

चेतना के इस इस वर्ग में आने वाले सहजी अधिकतर युवाशक्ति के रूप में उपलब्ध होते हैं जो , स्वयं सेवक के रूप में निरंतर कुछ कुछ करने तो तत्पर रहते हैं।

जैसे कहीं भी ध्यान की सामूहिकता में सेवा की भावनाओं से ओतप्रोत सहजी, कभी पार्किंग स्थल, कभी जूता-चप्पल स्टैंड, कभी अनाउंसमेंट करने

कभी धन संग्रह करने, कभी स्टेज डेकोरेशन, कभी दरियां, चद्दर, गद्दे बिछाने, कभी पूजा हवन से सम्बंधित समान लाने-ले जाने अन्य कई प्रकार के कार्यों में अपना श्रम दान करते दिखाई देते हैं।

इन कार्यों के अतिरिक्त कुछ ऐसे समर्पित सहजी अन्य सहजियों के कहने पर सहज संस्था में किन्ही पदों पर विराजमान हो जाते हैं और पूरी ईमानदारी इच्छा के साथ संस्था के स्तर पर सहज को आगे बढ़ाने का कार्य भी करते रहते हैं।

12."विद्वान उच्च पद वाले सहजी:-

इस वर्ग के सहजी सहज में आने से पूर्व बौद्धिक स्तर पर विद्वान उच्च कोटि के प्रबंधक होते हैं अपने सांसारिक जीवन में किन्ही विशेष पदों पर आसीन होते हैं।

और "श्री चरणों" में लाये जाने के बाद भी सहज संस्था में उच्च पदों पर ही विराजते हैं क्योंकि यह अपनी विशेषताओं, शिक्षा, विद्वता उच्च पद का उपयोग सहज योग को संस्था के स्तर पर आगे बढ़ाने में पूरी निष्ठा भक्ति के साथ करते हैं।

जिसे सरकारी गैर सरकारी स्कूलों में सहज योग करवाने की स्वीकृति प्रशासन से लेना।

सहज योग आश्रम सेंटर्स बनाने के लिए राज्य सरकार/केंद्रीय सरकार के विभिन्न विभागों से जमीन उपलब्ध करवाने की अनुशंसा करना अधिकार दिलवाना।

यानि जो कार्य आम नागरिक के बस में नहीं होते, ऐसे सहजी सहज को आगे बढ़ाने के लिए ह्रदय से प्रयास करते हैं अक्सर "श्री माँ" की कृपा से कामयाब भी होते रहते हैं।

सहज योग के प्रारंभिक काल में "श्री माता जी" ने सहज योग को सहज संस्था के रूप में एक प्लेटफार्म उपलब्ध करवाने के लिए इसी प्रकार की क्षमताओं से युक्त लोगो को अपने "श्री चरणों" में स्थान दिया था।जिनके द्वारा "उन्होंने" संस्था के स्तर के अनेको कार्य करवाये।

13.लोगों की बीमारियों को ठीक करने वाले सहजी:-

इस वर्ग के सहजियों का रुझान अन्य सहजियों की बीमारियों को ठीक करने में ही ज्यादा रहता है।

ये लोग विभिन्न प्रकार की सहज टेक्नीक के माध्यम से अन्य लोगों को उनकी बीमारियां ठीक करने के बारे में बताने बीमारियों को दूर करने के अनेको उपाय कराने में काफी माहिर होते हैं।

यह लोग अधिकतर सहजियों के बीच काफी प्रचलित हो जाते हैं, दूर दूर से अन्य सहजी उनके पास अपनी बीमारियों को लेकर आते रहते हैं अथवा फोन पर इनसे लगातार इलाज पूछते रहते हैं।

यह सब करके ऐसे लोगों के मन को अत्यंत संतोष का अनुभव होता है यह लोग अपने भीतर ही भीतर सोचते हैं कि "श्री माता जी" इनसे इसी प्रकार का कार्य ले रही हैं।

यहां तक कि ऐसे सहजी नए लोगो के बीच सहज में लाने के लिए उनकी समस्त बीमारी ठीक करने की ही बात करते हैं।

14.मोक्ष प्राप्ति की चाह रखने वाले सहजी:-

इस वर्ग के सहजी इस संसार से मुक्त होने के लिये "श्री माता जी" के लेक्चर्स निरंतर सुनते रहते हैं। और मुक्ति की ओर अग्रसर होने की प्रगाढ़ इच्छा के चलते उनकी बताई समस्त बातों का पालन करने का पूरा प्रयास करते हैं।

एवं प्रतिदिन अपना आत्मनिरीक्षण करने के चक्कर में अनजाने में ध्यान से हट कर दोष भाव से ग्रसित हो जाते हैं। फिर "श्री माता जी" से अक्सर गुहार लगाते हैं कि "वे" उनका बेड़ा पार लगा दें।

15.नए लोगों को सहज की ओर मोड़ने वाले सहजी:-

इस वर्ग के सहजी तो आत्मसाक्षात्कार का कार्य करते हैं और ही किसी को स्वयं ध्यान में उतारने में मदद करते हैं।

क्योंकि इनको सदा यह लगता रहता है कि वे लोग अच्छे से आत्मसाक्षात्कार नहीं दे सकते और ही किसी को ठीक प्रकार से ध्यान करवा ही सकते हैं।

किन्तु यह लोग नए नए लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने वाले ध्यान कराने वाले सहजियों से मिलवाते हैं ताकि वो लोग नए लोगों को सहज में स्थापित करने में मदद कर सकें।"

"सहज योग एक स्वतः ही घटित होने वाला घटना क्रम है। जिसकी प्रक्रिया को "श्री माता जी" के वक्तव्यों के आधार पर मस्तिष्क से थोड़ा बहुत समझा तो जा सकता है।

किन्तु इसको मस्तिष्क अथवा मन-प्रेरित क्रियाओं के द्वारा कार्यान्वित नहीं किया जा सकता। यह तो मात्र अनुभव के आधार पर ही आत्मसात ग्रहण किया जा सकता है।

जिस प्रकार से हम जल को ग्रहण करके उसकी तासीर स्वभाव के बारे में थोड़ा बहुत बता सकते हैं।"


------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"




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