Wednesday, March 25, 2020

"Impulses"--521--"विभिन्न प्रकार की चेतना स्तर के सहज अनुयायी" (भाग-2)


 "विभिन्न प्रकार की चेतना स्तर के सहज अनुयायी"
(भाग-2)

अब हम चलते हैं ऋणात्मक स्वभाव वाले सहजियों को समझने के लिए,

b) ऋणात्मक मनोवृति वाले सहजी:-

जो कहने को तो सहज में उपस्थित हैं किंतु इनके कार्य, विचार, मनोदशा, समझ, सोचे जाने/अनजाने 'प्रकृति', "परमात्मा" जागृति के विरोध में ही होती हैं।इनको भी हम कई वर्गों में बांट सकते हैं।

1.धन-सम्पन्नता प्राप्त करने/ बनाये रखने की आकांक्षा रखने वाले सहजी:-

इस मनोवृति के लोग सहज में आये ही इसीलिए है कि "श्री माता जी" की कृपा से उनके आर्थिक आभाव समाप्त हो जाएं अथवा उनकी सम्पन्नता सदा बनी रहे।

ऐसे सहजी इन्ही मनो भावों के साथ ध्यान में बैठते हैं और ध्यान के दौरान भी अपने लाभ-हानि की बाते ही विचारते रहते हैं। वैसे सहज से जुड़ने वाले लगभग 90% सहजी इसी प्रकार की धारणाओं के साथ सहज में उतरते हैं।

2.बीमारियों से परेशान सहजी:-

इस वर्ग के लोग तो अपने सहज माध्यम के द्वारा सहज में यही सुनकर जुड़े थे कि सहज को अपनाने के बाद उनके वर्षों पुराने रोग दूर हो जाएंगे।

ऐसे सहजी जब भी ध्यान में बैठते हैं तो उनका केवल और केवल यही उद्देश्य होता है कि "श्री माता जी" उनकी उनके समस्त घर परिवार के लोगों की सारी व्याधियों को दूर कर दे।

ऐसे सहजी सदा इसी फिराक में रहते हैं कि कोई सहजी उनको उनकी बीमाइयों से निवृत होने का मार्ग सुझा दे।

यह लोग हर प्रकार की क्लियरिंग की सहज तकनीकों में प्रवीण हो जाते हैं अन्यों को भी हर प्रकार की छोटी-मोटी शारीरिक तकलीफों के लिए इन्ही तकनीकों को अपनाने की बात बताते हैं।

चाहे इन्हें स्वयं इन तकनीकों के प्रयोग से कभी भी कोई स्थायी आराम भी मिला हो।

3.निगेटिविटी से हर पल डरने वाले सहजी:-

इस वर्ग के सहजियों का चित्त हर समय"श्री माता जी" से भी ज्यादा निगेटिविटी पर ही बना रहता है। यह लोग हर पल हर घड़ी आशंकित रहते हैं कि कहीं से, किसी से, कभी भी कोई निगेटिविटी इनको लग ना जाय।

यदि ऐसे सहजियों को कोई बड़े ही प्रेम से अपने घर बुलाता है तो भी इस वृति के लोग उस सहजी के घर घुसते ही अपने हाथ 'डिश ऐंटिना' की तरह खोल लेते हैं। और उस प्रेम मई सहजी के घर के कोने कोने में निगेटिविटी की तलाश शुरू कर देते हैं।

और जब शंका के मारे सहजी अपने घर वापस आते हैं तो खूब देर तक फूट सोकिंग करते हुए अपनी अनेको क्लीयरिंग कर डालते हैं।

कई बार तो ऐसा होता है कि इन सहजियों के नजदीक का कोई सहजी बीमार हो गया तो ये सहजी निगेटिविटी लगने के डर से उस बीमार सहजी से मिलने तक नहीं जाते।

और अक्सर अन्य सहजियों के चक्रों की पकड़ को पकड़ पकड़ कर उन्हें जताते बताते भी रहते हैं।

अक्सर ऐसा प्रतीत होता है कि ये सहजी अपना चित्त "श्री माता जी" पर रखकर केवल और केवल पकड़ पर ही रखते हैं इसीलिए इन लोगों को हर पल पकड़ ही पकड़े रखती है।

काश ऐसे सहजी यह समझ पाते कि "ह्रदय में यदि "श्री माँ" से जुड़े रहेंगे तो कोई भी पकड़ इनको पकड़ नहीं पायेगी।

4.त्योहार/उत्सव भाव में सदा रहने वाले सहजी:-

इस वर्ग के सहजी हर पूजा, हवन सहज सेमिनार में ऐसे भाग लेते हैं मानो किसी त्योहार अथवा उत्सव मनाने के लिए जा रहें हों।

ऐसे सहजियों का चित्त नाम मात्र के लिए ही ध्यान की ओर जाता है, ऐसे सहजी तो बस हर समय मजे लेने मस्ती करने के लिए ही आते हैं।

इन सभी प्रकार के कार्यकर्मों में शामिल होने के लिए इस मनोदशा से प्रभावित सहजी विशेष साज-सज्जा, आभूषणों वस्त्रों के साथ पूरी तैयारी के साथ आते हैं।

और जब भी तेज आवाज वाला भजन संगीत प्रारम्भ होता है तो तुरंत विभिन्न स्टाइल में डांस करना प्रारम्भ कर देते हैं और विभिन्न मुद्राओं भाव भंगिमाओं में अपने फोटो खींच कर मीडिया पर डालते रहते हैं।

5.प्रोसेशन/जुलूस निकालने वाले सहजी:-

इस वर्ग के सहजी सहज योग के प्रचार के लिए आये दिन सड़कों पर "श्री माता जी" के रथ के साथ जुलूस निकालते रहते हैं और भजन के साथ साथ डांस भी करते चलते हैं।

जैसा कि अन्य धर्म के लोग अपनी धार्मिक मान्यताओं का प्रदर्शन करने के लिए मेन रोड्स पर बारात/जुलूस निकालते हैं और ट्रैफिक को पूरी तरह जाम कर देते हैं जिसको खुलने में घंटो लगते हैं।

जरा सभी लोग थोड़ा याद करने का प्रयास करें कि जब कुछ सहजी अन्य धर्मों के लोगो द्वारा निकाले जाने वाले जुलूसों में फंसते थे तो प्रशासन ऐसी मानसिकता वाले लोगों को जी भरके कोसते थे।

किन्तु जब वही लोग सहज के नाम पर जुलूस निकालते हैं तो वह सब नाराजगी, पीड़ा लाचारगी स्वयं भूल जाते हैं।

यह लोग जरा भी सोचने का कष्ट नहीं करते कि यह भला किस प्रकार का धार्मिक आचरण है जो अन्य मानवों के कष्ट का कारण बन रहा है।

कई बार तो ऐसा होता है इन जुलूसों के चक्कर में एम्बुलेंस तक फंस जाती है जिसमें कोई गंभीर अवस्था का मरीज होता है।

अक्सर इन धार्मिक जुलूसों के कारण लगने वाले ट्रैफिक जाम के कारण लोगों की ट्रेन छूट जाती है तो कई बार इन बारातों के चलते बच्चों की परीक्षा का समय निकल जाता है।

कम से कम सहजियों को तो ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे मानवता पीड़ित हो क्योंकि सहज मार्ग तो वास्तविक ज्ञान का मार्ग है और अन्य लोगों को राहत पहुंचाने का कार्य करता है।

क्या ऐसे सहजियों को पता है कि "श्री माता जी" स्वयं इस प्रकार के जुलूसों के सदा खिलाफ रहीं हैं। और "उन्होंने" इस प्रकार की गतिविधियों की अपने वचनों में भतर्सना भी की है।

अन्य धर्मों के अनुयायियों द्वारा निकाले जाने वाले इस प्रकार के जलूसों की प्रथा को देखते हुए "श्री माता जी" ने अपने एक वक्तव्य में कहा था।

कि, 'हमारा सहज योग अच्छा है, इसके लिए सभी लोग एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और समाप्त होने पर शांति के साथ धीरे धीरे निकल जाते हैं, किसी को कोई तकलीफ नहीं देते।'

ऐसे आयोजनों में शामिल होने वाले सभी सहजी ध्यानास्थ अवस्था में जरा चिंतन करके तो देखें कि, 'कहीं हम इतने ऊंचे मार्ग को सड़क पर लाकर इसका स्तर तो नीचे नहीं गिरा रहे हैं ?

कहीं ऐसा तो नहीं हम "श्री माँ" को सड़कों पर उतार कर "उनके" उच्चतम स्वरूप को अन्य लोभी व्यापारी गुरुओं की श्रेणी में लाकर खड़ा तो नहीं कर रहे हैं ?

क्या हम थोड़ा बहुत गंभीरता से विचारने का प्रयास करेंगे कि जब अपने साक्षात स्वरूप में रहते हुए "श्री माता जी" ने कभी टेलीविजन तक पे सिवाय एक इंटरवियू के कभी कोई कार्यक्रम नहीं किया। तो हम उनकी छवि को यूं क्यों कर धूमिल किये दे रहे हैं ?

एक बार जब "उनसे" इंटरवियू में पूछा गया कि "श्री माता जी" आप पूरे विश्व में इतना अच्छा कार्य कर रहीं हैं तो आप टेलीविजन पर कार्यक्रम क्यों नहीं करतीं ?

तब "श्री माता जी" ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया था कि जब मेरे बच्चे उन्नत होंगे तो वे स्वयं सहज योग को आगे फैला देंगे।

यानि जब हम अच्छे से उन्नत होंगें तो हमारे हाव भाव तेजस्विता से ओतप्रोत व्यक्तित्व को देख कर/ हमारे स्वयं के व्यक्तिगत अनुभवों की बाते सुनकर।

हमारे भीतर से प्रवाहित होने वाले चैतन्य प्रवाह के माध्यम से आकर्षित होने वाली उनकी कुंडलिनी के द्वारा उनको दी जाने वाली अन्तःप्रेरणा के द्वारा बरबस हमारी ओर स्वतः ही खिंचने लगेंगे।

तब हमारे यंत्र के माध्यम से "श्री माँ" उन लोगों को जागृति प्रदान करेगी और तब जाकर सही मायनों में वे लोग हमारे सहज परिवार का हिस्सा बन पाएंगे।

कभी कभी तो यह सब देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रकार की समझ के सहजी इस सुंदर सहज मार्ग को भी "श्री माता जी" के वचनों के विपरीत जाकर 'बाह्य धर्म' बना कर ही छोड़ेंगे।

हममें से अनेको सहजी इस प्रकार के जुलूसों में माइक पकड़ कर लोगों की बीमारियां, आर्थिक दशा, घरेलू स्थितियों को ठीक हो जाने का आश्वासन भी देते हैं।

तो उपरोक्त लालचों से प्रभावित होकर नए लोग सहज में तो जाते हैं किंतु उनकी रुचि ध्यान में उन्नत होने की कभी भी बन नहीं पाती।

या तो कुछ समय बाद वे सहज को छोड़ देते हैं या फिर वे पक्के कर्मकांडी बनकर सामूहिक स्तर पर सहज की उन्नति में बाधक ही बनते हैं।

"श्री माता जी" ने अपने एक वक्तव्य में कहा है कि बेकार के सौ लोगों से अच्छा है कि कायदे के 10 लोग ही ध्यान में उन्नत हों।

यदि हम सभी अपने निकट रहने वाले सहजियों से पूछना प्रारम्भ करें कि वे सहज में किस प्रकार जुड़े तो ज्यादातर सहजी बताएंगे कि हम फलां फलां सहजी से प्रभावित होकर इस मार्ग से जुड़े हैं।

तो यह बात स्वतः ही स्पष्ट हो जाती है कि हमको सहज योग को प्रसारित करने के लिए इस प्रकार से हल्के किन्तु अत्यधिक खर्चीले, उथले निम्न स्तर के जरिये के स्थान पर। 

अपना कीमती समय मेहनत ईमानदारी से कमाया हुआ धन सामूहिक स्तर पर गहन ध्यान में उन्नत होने के अवसरों को उत्पन्न करने के द्वारा स्वयं को उन्नत करने में लगाना चाहिए।

ताकि हमारे माध्यम से वास्तविक खोजी ही "श्री चरणों" में सकें "श्री माँ" के स्वप्नों को साकार करने के लिए उस स्तर तक विकसित हो सकें।

6.सहज के नाम पर अपना व्यवसाय/व्यापार चमकाने वाले सहजी:-

इस वर्ग में आने वाले अधिकतर वे सहजी होते हैं जो आर्थिक रूप से सम्पन्न होने के लिए तो स्वयं का धन लगाना चाहते है और ही स्वयं अच्छे से सच्ची मेहनत, अटूट लगन पूरी ईमानदारी के साथ कार्य करना चाहते।

बल्कि ऐसे सहजी अपना श्रम, समय धन बचाने के लिए सदा ऐसे सहजियों को खोजते रहते हैं जो उनके द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं को खरीद लें/प्लान्स में अपना धन लगा दें/अथवा उनके क्लाइंट बन जाएं।

क्योंकि एक सहजी जब अन्य सहजी से जुड़ता है तो अन्य सहजी "श्री माता जी" के कारण उन पर विश्वास करता है और उनके कार्य में उनको उत्साहित करने के लिए उनके कार्यों को चलाने के लिए यथोचित मदद भी करना चाहता है।

इसी सहज मानसिकता को भुनाने के लिए ये चतुर सहजी पहले मीठी मीठी बाते करते हैं और बाद में अपने कार्यों के बारे में बता कर अपने आइडियाज/सामान/सेवाएं अच्छे प्रॉफिट के साथ उनको बेचते हैं।

इस प्रकार की व्यापारिक मानसिकता वाले अत्यंत महत्वकांक्षी सहजी ज्यादातर ऐसे सहजियों को खोजते हैं जो अच्छे ह्रदय के होने के साथ साथ आर्थिक रूप से काफी सम्पन्न भी होते हैं और उनकी आम समाज में प्रतिष्ठा होने के साथ साथ प्रभाव भी काफी होता है।

ताकि धन प्रभाव की आवश्यकता पड़ने पर समय समय पर ऐसे लोगों से मदद भी ली जा सके और ऐसे उच्च स्तर के लोगों के साथ मित्रता रखने पर समाज में प्रतिष्ठा भी बनी रह सके।"


●"ध्यान और मन एक दूसरे के शत्रु हैं,
जब मन का प्रभाव होता है तो ध्यान कदापि लग नहीं सकता,
और जब वास्तविक ध्यान में होते हैं तो मन का कोई अस्तित्व नहीं होता।"●


-------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


...........To be continued



November 20 ·2019

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