Thursday, January 20, 2011

अनुभूति-16, "सच्चा साथ"

अनुभूति-16, " सच्चा साथ" 31.12.06

इक दिन बड़े जोर से शम्मा ल्प्ल्पाई,
फिर बड़े गरूर में उसकी आवाज आई,
देखा कितने परवाने मुझ पर मरते हैं,
मंडराते रहतें हैं झुण्ड के झुण्ड चारो ओर मेरे,
कितना सुंदर रूप है मेरा, क्या शख्सियत मैंने पाई है,
मेरे चारो ओर चाहने वालों की लगी लम्बी लाइन है,
कितने शौक से मेरे क़दमों में जलकर मरते हैं,
मरते रहेंगे तेरे रंग और रूप पर,
हर रोज सब ऐसा ही दम भरतें हैं,
सुनकर उसकी दर्प भरी बातें, मोम से रहा गया,
बड़े दर्द में डूब कर उसने अपनी शम्मा से कहा,
नाज कर तू अपनी शोखी अदा पे,
जब तू जलती है तब मैं पिघलता हूँ,
मेरे पिघलने से ही तू रौशन और हो जाती है,
मेरे बिन तू अकेले कभी जल पायेगी,
चाहे जितने जतन करले रौशन कभी हो पायेगी,
इन परवानो को देख, काहे तू अकडती है,
बिन तेरे जले ये कहे को आएंगे,
इनके इन्तजार में कई जनम गुजर जायेंगे,
जरा कद्र कर मेरी भी, तुझे अपने आगोश में रखता हूं,
कठोर रूप धारण कर सदा तेरी रक्षा करता हूँ,
मेरे बिना तेरी जिन्दगी है अधूरी,
मेरे साथ का अहसास रखोगी तब ये होगी पूरी,
जब तक मैं हूँ तब तक ही तेरी जिन्दगी है,
तेरे जलने में भी तो तेरा साथ निभाता हूँ,
इन परवानो के चक्कर में क्यों मेरी बेकद्री करती है,
ये परवाने तो बहुत बे- बफा हैं,
जब तेरे से भी ज्यादा रौशन शम्मा को देखेंगे,
तुझे छोड़ कर उसकी ओर दौड़ पड़ेंगे,
फिर भी तू रह जायेगी अकेली की अकेली,
इन परवानो की कोई उम्र नहीं है,
जैसे ही तेरे नजदीक आतें हैं, जलकर मर जातें हैं,
दूर- दूर से ही तुझ पर मंडरातें हैं,
अपनी परछाइयों से तुझे ढक कर तेरी रौशनी घटातें हैं,
दिन में तो ये कहीं नजर नहीं आतें हैं,
जब जलते हैं हम दोनों "श्री माँ" के चरनन में,
दूर-दूर तक ढूंढे नहीं मिलते हैं ये,
ये कायर रात के अँधेरे में ही छुप-छुप कर आते हैं,
दिन की आहट से ही दुम दबाकर भाग जाते हैं,
ये तेरा साथ क्या खाकर निभाएंगे,
हमेशा तुझे सदा अकेली ही छोड़ जायेंगे,

मुझे देख, मैं हूँ तेरा सच्चा साथी,
हर जनम में तेरे साथ रहा हूँ,
जाने कितनी सदियों से तेरी फितरत बर्दाश्त कर रहा हूँ,
अब बदल दे अपनी फितरत को,
अबके जली है तू "श्री माँ" के चरनन में,
जगह दी है "उन्होंने"हम दोनों को,
अपने "श्री चरनन" में,पूर्ण परिवर्तन के जतन में,
अमर कर दिया है हमारा साथ, अपनी एक नजर में,
छोड़ अपनी इस फितरत को, झांक कर देख जरा अपने नीचे को,
मुस्कुरा कर देखता हूँ तुझे अपनी बाजुओं में भींचे,
तुझे नहीं पता तुझे हरदम निहारता हूँ,
पीता रहता हूँ जाम पर जाम तेरी शोख नजरों के,
दिल ही दिल में तुझ पर जान देता हूं,
मिटा-मिटा कर अपने वजूद को तुझे और रौशन मैं रखता हूँ

शम्मा=हमारी चेतना, मोम=हमारी आत्मा, परवाने=तारीफ़ करने वाले 
-------------------------नारायण
"जय श्री माता जी"






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