Friday, August 5, 2016

"Impulses"--297--"रिश्ते "

"रिश्ते "

"कई बार बहुत से अच्छे सहजी बेहद दुखी हो जाते हैं और सोचने लग जाते हैं कि आखिर:-

'हमने पूर्व जीवनों में ऐसा क्या किया था कि हमारे बेहद नजदीकी व् खून के रिश्ते हमें क्यों इतना परेशान कर रहे हैंउनके लिए रात-दिन सभी कुछ पूरी निष्ठां व् जिम्मेदारी से करने के वाबजूद भी वो हमें चैन से रहने क्यों नहीं देतेहर समय हमें ही तकलीफ देने की फिराक में लगे रहते हैं, उनसे हमारी आंतरिक शांति व् प्रसन्नता देखी नहीं जाती।

हम किसी से कुछ भी नहीं कहते फिर भी जाने क्यों हमें ही बार बार ताने देते रहते हैं। और कोई कोई तो हमसे सभी कुछ अनेको प्रकार के षड्यंत्रों के द्वारा छीन लेना चाहते हैं। बिन बात के हम पर उलटे सीधे आरोप लगाते रहते हैं और हमें हर समय तंग करते रहते हैं।

ऐसा प्रतीत होता है कि ये खून के रिश्ते नहीं वरन पिछले कई जन्मों के दुश्मन हैं जो एक साथ हमारे नजदीक हमारे ही विभिन्न रिश्तों के रूप में जन्म लेकर सताने गए हैं। अब हम कहाँ जा कर रहें ? इन सभी से कैसे पीछा छुडाएंदिल ही दिल में उम्मीद करते रहते हैं कि "श्री माँ" हमपर भी थोड़ी और कृपा करदें और हमारी इन गंभीर किस्म की समस्यायों से हमें निजात दिला दे और हमें सुकून शांति की जिंदगी बख्शे। 

घर से बाहर जाते हैं तो घर वापस लौटने का दिल ही नहीं करता, उनको वापस घर जाते हुए ऐसा लगता है मानो एक बकरा कसाई घर में वापस जा रहा हो। ऐसे घुटन भरे व् विपरीत माहौल में रहना कितना कष्टकर लगता है जहाँ हर शख्स हमें काटने को दौड़े और सदा हमारा अपमान करे और ईर्ष्या से ग्रसित रहे। 

किसी किसी चमत्कार की आशा में इस प्रकार की विभिन्न पीड़ाओं से गुजरते हुए हमारे कुछ सहज साथी अपना जीवन व्यतीत किये जाते हैं। बारम्बार "श्री माँ" को शीश झुकाते हैं और "श्री माँ" से अपने "श्री चरणों" में सदा बनाये रखने की प्रार्थना करते रहते हैं।सोचते हैं कभी तो सवेरा होगा और हम अपने घर में रौशनी का आनंद उठा पाएंगे।

वास्तव में होता ये है कि "परमात्मा" ने जानबूझ कर लगभग सभी "प्रकाशित" चेतनाओं के जीवन में ऐसे नकारात्मक लोगों को रख्खा है ताकि उनका भी कुछ कल्याण हो सके। जब ऐसे लोग बार बार किसी किसी कारण से उन अच्छे सहजियो को सतायेंगे तो उनका चित्त ऐसे निम्न स्तर के व्यक्तियों पर स्वतः ही जाएगा। और उनकी जीवात्मा, आत्मा व् उनके भीतर स्थित अनेको देवी-देवताओं को "श्री माँ" का प्रेम मिलेगा जिससे अनंत काल से पीड़ित इन दिव्य विभूतियों को कुछ कुछ राहत अवश्य मिल जायेगी।

वे सहजी उनके उद्दार के लिए व् उनकी समस्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए "श्री माँ" से निवेदन भी अवश्य करेंगे।जिससे "श्री माँ" की कृपा दृष्टि उनपर भी पड़ेगी और अन्ततः उनका भी एक एक दिन कल्याण जरूर हो जायेगा।

अतः बड़े धैर्य व् "श्री माँ" के प्रेम से परिपूर्ण हो प्रत्येक ध्यान की बैठक में कम से कम 5 मिनट के लिए चित्त की सहायता से ऐसे समस्त नकारात्मकता से बाधित लोगो के सहस्त्रार व् हृदय में उनकी चेतना,'जीवात्मा, आत्मा, कुण्डलिनी व् उनके यंत्र पर स्थित समस्त देवी-देवताओं के लिए "माँ का प्रेम" नित्य पहुंचाते रहें जब तक भी वो साधकों/साधिकाओं को पीड़ा पहुंचाते रहें। इस 'प्रेम-प्रवाह' से या तो वे लोग परिवर्तित हो जाएंगे या वो इतने दूर हो जाएंगे कि साधक/साधिकाओं को वो और तकलीफ नहीं दे पाएंगे।

अतः समस्त "जागृत चेतनाओं" को किसी भी मानव देह के भीतर स्थित "परमपिता" के 'समस्त अंशों' के लिए अत्यंत प्रेममयी व् करुणामयी होना चाहिए तभी हम सभी "श्री माँ" के यंत्र पूर्ण रूप से बन पाएंगे।पर हमें अपनी व् उनकी बुराइयों के प्रति पूर्ण रूप से कठोर होना चाहिए।"
----------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


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