Thursday, August 11, 2016

"Impulses"---298

"Impulses"

1)"जब मन बोलता है तो विचार बनते हैं जो शब्द बन बन कर मुखर होते है और तब ख़ामोशी सुन रही होती है।और जब ख़ामोशी बोलती है तो मन सुन रहा होता और विचार बन रहे होते हैं

दोनों एक दूसरे के पूरक हैं यह सिलसिला तब ही बंद हो पायेगा जब तक ख़ामोशी बोलना बंद नहीं कर देगी।और ख़ामोशी का बोलना केवल तब ही बंद होगा जब मन, 'अमन' में परिवर्तित हो जाएगा। ख़ामोशी और शब्द दोनो मन के ही रूप हैं।

अमन अवस्था कुछ और नहीं हमारी स्वम की 'आत्मा' का मुखरित होना है।जब आत्मा मुखर होती है तब "परम" आत्मा के माध्यम से हृदय रूपी स्पीकर से बोलना प्रारम्भ कर देते हैं जो पुनः शब्द बन कर फूटने लगते हैं बहने लगते हैं।

जब बहते हैं तो 'पद्द' बनते हैं जब फूटते हैं तो 'गद्द' की रचना होती है। ऐसी अवस्था में मानव का अस्तित्व केवल और केवल 'परम' का प्रतिनिधि बन जाता है "वो" जो चाहते हैं वही उससे बुलवा देते हैं।"


2)"मानव जीवन के केवल दो ही वास्तविक पहलू हैं, एक है 'मन' और दूसरा है 'अमन'

अक्सर मानव की चेतना मन की भावनाओं से ही आच्छादित रहती है और अनेको प्रकार की पीड़ाओं की अनुभूति कर क्रिया-प्रतिक्रिया में ही उलझी रहती है और अशांत रहती है।

और जब मानव अमन की ओर चलना प्रारम्भ कर देता है तो मन की प्रतिक्रियाएं शांत होने लगती हैं और भीतर में स्थित "आत्मा" मानवीय चेतना में मुखर होने लगती है तब मानव को अनेकानेक परेशानियों से घिरे होने पर भी अथाह शांति व् चैन का अनुभव होने लगता है।


पर ये मानव को ही सुनिश्चित करना होगा कि वह मन का गुलाम बने रहना चाहता है या अमन के आनंद में डूबना चाहता है ये स्थिति "परम" के अधीन नहीं है "

----------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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