Saturday, October 28, 2017

"Impulses"--409--"नारी"

"नारी"

"जहाँ नारियों का सम्मान व् पूजा होती है वही देवी देवता रमण करते है, किन्तु स्त्रियों को पूजनीय होना चाहिए।"---"परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी"

अभी चंद रोज पहले 'महिला दिवस' के अवसर पर पूरे विश्व में नारी शक्ति के सशक्ति करण एवम सम्मान में अनेको बाते बोली गईं, लिखी गईं, पढ़ी गईं, कविताओं में गाई गईं। सम्पूर्ण विश्व की वर्तमान महान नारियों के बारे में मीडिया व् समाचार पत्रों में बहुत कुछ बताया गया।जिनके बारे में जानकार हृदए अत्यन्त श्रद्धा व् सम्मान से गद गद हो गया।

बहुत सी उच्च कोटि की महिलाओं की आत्मकथाएं लिखी गईं कि कैसे कैसे उन नारियों ने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने आत्म-सम्मान को बनाये रखते हुए बहुत बड़े बड़े कार्य किये।

इस चेतना के समक्ष भी ऐसी ही उच्च कोटि की महिलाओं के अनेको व्यक्तिगत व् सामूहिक अनुभव उपलब्ध हैं। जिनके सुन्दर व् संजीदा कार्यो के चलते इस चेतना का हृदए भी उन प्रेम, वात्सल्य, आत्मसम्मान से परिपूण नारियों की प्रशंसा, अनुशंसा व् आदर में नतमस्तक है, जिन्होंने अनेको रूपों में अपने त्याग, बलिदान, वात्सल्य, प्रेम धैर्य, श्रम से मानवता के कद को ऊंचा किया है।

किन्तु आज के दौर की स्त्रियों के कुछ अत्यन्त कटु अनुभव व् अनुभूति भी उपलब्ध है जिन्होंने विभिन्न प्रकार की नकारात्मक भावनाओं से घिर कर अपने नारी होने की 'गरिमा व् सम्मान' को स्वम् अपने हाथों से छिन्न भिन्न कर दिया है। जिन्होंने मानवता को कहराने पर मजबूर कर दिया है। यूँ तो स्त्री का सुन्दर रूप बिगाड़ने में पुरषो की भी कम भागीदारी नहीं है।किन्तु गहन चिंतन मनन के बाद आप पाएंगे कि वास्तव में स्त्री व् पुरुष के पतन के पीछे मूल रूप से एक विकृत मानसिकता की स्त्री का ही हाथ है।

यहाँ बात स्त्री या पुरुष के दोषारोपण की नहीं है वरन इस निम्नता के वास्तविक कारणों को ध्यानस्थ अवस्था में खोज कर उन्हें समाप्त करने की है।"माँ आदि" ने "परमात्मा" की इच्छा से माता प्रकृति के द्वारा हर मानव को 'अर्द्ध नारीश्वर' बनाया है, यानि हर मानव में आनुपातिक रूप से स्त्री व् पुरुष दोनों के ही गुण समान रूप में मौजूद हैं।

वास्तव में सृष्टि की हर रचना में इन दोनों तत्वों का अस्तित्व विद्यमान है और सृष्टि का सृजन भी दोनों शक्तियों के सहयोग से ही हुआ है। अनेको आध्यात्मिक पवित्र ग्रंथों व् पुस्तकों में वर्णित पौराणिक सत्य के अनुसार स्वम् "ईश्वर" ("श्री सदा शिव") भी अपनी "आदि शक्ति" रूपी 'नारी' अस्तित्व की सहायता से ही सृजन करते है।

यानि 'पुरुष व् नारी' तत्वों का अनुपात, सामंजस्य व् संतुलन किसी भी रचना के लिए अति आवश्यक है। जब दोनों तत्वों का ये संतुलन गड़बड़ा जाता है तो अनेको प्रकार के विनाश घटित होना प्रारम्भ हो जाते हैं और समस्त प्राणियों को 'प्रकृति-पुरुष' के कोप का भाजन बनना पड़ता है।

यदि पूर्ण ध्यानस्थ अवस्था में चिंतन के दौर से गुजरेंगे तो महसूस करेंगे कि आज के समय में सृष्टि की श्रेष्ठतम रचना 'मानव' में इन दोनों महत्व पूर्ण तत्वों का संतुलन व् अनुपात पूरी तरह खराब हो गया है। जिसके कारण 'सृजन कारक शक्ति' रूपी स्त्री स्वम् विनाशक व् संघारक हो गई है और इस शक्ति के विकृत रूप को धारण करने वाले पुरुष अत्यन्त हिंसक व् विध्वंसक हो गए हैं।जो इस रचना के लिए अत्यन्त हानि कारक है।

मानव के भीतर इन दोनों अंशो यानि नारीत्व एवम पुरुषत्व के अनुपात व् असंतुलन को दूर करने के लिए 'स्वम्' "परमात्मा" को "पूर्ण परिवर्तन की देवी" "माँ निर्मला" के रूप में अवतार लेना पड़ा  इससे ये निष्कर्ष निकलता है कि इस वर्तमान काल में मानव में सबसे ज्यादा स्त्री तत्व की गरिमा व् सम्मान का ही ह्रास हुआ है और इसी तत्व की भरपाई करने के लिए ही "परमात्मा" ने 'नारी' रूप में अवतार लिया है।

यानि "परमेश्वर" जब जब, जिस जिस रूप में भी 'अवतार' लेते हैं शायद "उनका" मूल उद्देश्य मानव के भीतर स्थित 'अपने' दोनों तत्वों व् अंशो की भरपाई कर आदर्श सामंजस्य, उचित अनुपात व् पूर्ण संतुलन स्थापित करने के लिए ही आते हैं।

आज के मानव के रंग ढंग व् रहन सहन का यदि विश्लेषण व् आंकलन करेंगे तो पाएंगे कि बहुत से पुरुष स्त्रियों के तौर तरीके अपनाने लगे हैं और अनेको स्त्रियां पुरुषों जैसा व्यवहार करने लगी हैं। कलयुग के प्रभावी होने के कारण मानव के भीतर उत्पन्न होने वाले मुख्य दुर्गुणों में 'ईर्ष्या' स्त्रियोंचित् अवगुण है और 'अहंकार' पुरुषोचित अवगुण है।

किन्तु आज के दौर में आश्चर्य जनक रूप से पुरुष ईर्ष्यालु होते जा रहे हैं व् स्त्रियां अहंकारी होती जा रही हैं।यानि सबकुछ उलट पुलट हो गया है।
यदि अनेको प्रकार की नकारात्मकताओं से घिर, लगभग हर घर में अनेको प्रकार के नरको को जन्म देने वाली 'इस स्त्री' के कृत्यों का हम चिंतन व् अवलोकन करें तो हम पाएंगे कि:--

1) हमारे समाज में जब कुछ नरपिशाच अबोध बच्चियों का बलात्कार करते हैं तो अक्सर ऐसे नराधमो को बचाने वाली अन्ध मोह-ग्रस्त उनकी ही जन्म दात्री यही स्त्री ही होती हैं।

2) बेटे के लालच में अपनी ही बेटी को उसके जन्म से पहले ही अपने गर्भ में ही हत्या कर, क्रूरता की सभी सीमाओं को लांघने वाली यही स्त्री ही होती है।

3)और यदि गलती से जन्म दे दिया तो उस नवजात को कूड़े के ढेर पर फैंकने वाली भी यही निष्ठुरा स्त्री ही होती है।

4) बेटी के जन्म पर अफ़सोस करने वाली और बेटे की चाह में अनेको कन्याओं के जन्म के बाद पैदा होने वाले बेटे के कारण उन समस्त बेटियों के साथ भेदभाव पूर्ण अन्याय करते हुए उन्हें उत्पीड़ित करने वाली भी यही 'विकृत स्त्री' ही होती है।

5)बेटी की शादी कर उसके ससुराल वालों पर शासन चलाने के लिए उसको गलत बाते सीखा कर अपनी ही बेटी का घर उजाड़ने वाली भी यही 'दुष्टा' स्त्री ही होती है।

6) धन के लोभी ससुरालियों से प्रताड़ित व् पीड़ित अपनी शादी शुदा बेटी की मदद की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ उसी को दोषी बता अपनी बेटी के अधिकारों का हनन कर उसे उसके अपने घर से बेघर करने वाली भी यही स्वार्थी स्त्री ही होती है।

7) बेटे की शादी कर पराई लड़की को बहु बनाकर घर में लाने वाली और फिर दहेज़ के लालच से ग्रसित होकर अपनी ही बहु को जिन्दा जलाने वाली 'राक्षसी' भी यही स्त्री ही होती है।

8) बेटे को अपने भावनास्त्मक जाल में फंसा कर अपने बेटे पर प्रभुत्व जमाये रखने के लिए अपने बेटे को उसकी पत्नी के खिलाफ झूठी सच्ची बातों के जरिये उसे उकसाकर उसकी पत्नी से उसका झगड़ा करा कर उसकी पत्नी को निरंतर प्रताड़ित करने वाली यही स्त्री ही है।

9) झूठे दहेज़ के केस में फंसवा कर अपने निर्दोष पति व् उसके घरवालो को जेल भेज कर उनकी संपत्ति हड़पने वाली षड्यंत्रकारी भी यही स्त्री ही होती है।

10) अपनी स्वच्छंदता व् ऐश्परस्ती के मार्ग में अवरोध बनने वाले सीधे साधे पति व् अपनी संतानों तक के जीवनो तक को लील जाने वाली 'आसुरी' भी यही स्त्री ही होती है।

11) विलासिता पूर्ण जिंदगी को भोगने की आकांशा को तृप्त करने के लिए येन केन प्रकारेण बहुत सा धन एकत्रित करने के उपक्रम में अपनी स्त्रियोचित गरिमा व् सम्मान को स्वम् खंडित करने वाली 'अति स्वछंदा' भी यही स्त्री ही होती है।

और भी ना जाने हमारे समाज में ऐसी स्त्री के कुकृत्यों के कितने ही उदहारण भरे पड़े हैं। यहाँ तक कि "श्री माँ" के "श्री चरणों" में समर्पित होने के वाबजूद भी ऐसी स्त्री के अनेको दोषों से युक्त कुछ अज्ञानी सहज-साधिकाएं भी अपने सहज-यात्रियों को अपनी ईर्ष्या व् अहंकार से ग्रसित होकर अत्यन्त पीड़ा पहुंचा रही हैं।उनकी अकारण बुराइयां ही करती रहती हैं।

यदि ऐसी नकारात्मकता से आच्छादित स्त्रियां हमें अपने आसपास या मीडिया में कहीं नजर आएं तो 'उपरोक्त दुर्गुणों से युक्त स्त्री' के मस्तिष्क पे सवार अनेको शैतानो को भगाने के लिए हम सभी साधक/साधिकाओं को अपने चित्त के माध्यम से "श्री माँ" की शक्ति को अपने सहस्त्रार व् मध्य हृदए जुड़कर ऐसी स्त्रियों के मध्य हृदए में उनके सहस्त्रार के द्वारा प्रत्येक ध्यान की सामूहिक व् व्यक्तिगत बैठक में 5-7 मिनट तक जरूर प्रवाहित करना चाहिए।

ताकि ऐसी स्त्रियां अपने 'अभिश्रापों' से मुक्त हो अपने जीवनो को सार्थक कर इक सुन्दर समाज के सृजन में अपना योगदान दे सकें। और यदि ऐसे दुर्गुणों से आच्छादित स्त्री 'सहज-साधिका' भी है तो उसके बाएं अगन्या व् मध्य नाभि पर ध्यानस्थ अवस्था में अपने चित् के जरिये अपने मध्य हृदए से "पवित्र ऊर्जा" को ध्यान की हर व्यक्तिगत/सामूहिक बैठक में कम से कम 10 मिनट के लिए प्रवाहित करना चाहिए तभी हम "श्री माँ" के उद्देश्य को सफल बनाने में अपना योगदान दे पाएंगे।

यदि उपरोक्त अभिव्यक्ति से जाने अनजाने में किसी भी साधक/साधिका व् अन्य मानव का हृदए आहात होता है तो ये चेतना पूर्ण हृदए से क्षमा प्रार्थी है किंतु इस चेतना का प्रयोजन अपनी अभिव्यक्ति के जरिये दुःख पहुँचाना नहीं वरन समाज में व्याप्त अनेको पीड़ाओं के मूल कारणों को समाप्त करने की इच्छा व् ऊर्जा से युक्त सूक्ष्म चित्त के कार्यो के जरिये सम्पूर्ण मानवजाति का उत्थान ही है।

इस प्रकार की स्त्री के आंतरिक परिवर्तन का कार्य किसी भी बाहरी नियम, कानून, भाषण, संघ, संगठन व् समूह के द्वारा संभव नहीं है, ये कार्य तो "श्री माँ" के 'प्रकाशित यंत्रों' के माध्यम से प्रवाहित होने वाली 'दिव्य मातृ शक्ति' के द्वारा ही संभव है। 

वास्तव में एक 'पूर्ण प्रकाशित जीवात्मा' (Properly Enlightened Soul) किसी भी प्रकार के 'लिंग-भेद' (Gender-ism) से परे होती है, उसका तो एकमात्र उद्देश्य 'सर्वकल्याण' ही होता है।"

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"Jai Shree Mata Ji"
(11th March 2017)

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