Saturday, November 11, 2017

"Impulses"--413--"ध्यान-संदेह"

"ध्यान-संदेह"

"अक्सर हममे से बहुत से साधक/साधिका अपने जीवन में घटित होने वाली किन्ही नकारात्मक घटनाओं से व्याकुल हो जाते हैं। जिसके कारण ध्यान में ठीक प्रकार से उतर नहीं पाते और अपने भीतर में अत्यधिक खिन्नता की अनुभूति करते हैं। सोचने लगते हैं कि जरूर हमारे यंत्र में कोई कोई खराबी गई है।

ध्यान लगने का मुख्य कारण 'मन' के द्वारा चित्त को अपनी ओर खींच ही लेना है। जिस चीज की भी हमारे इस भौतिक जीवन में प्राथमिकता होती है वह हमारे मन में आवश्यकता या इच्छा बनकर लगातार निवास करती है। जिसके कारण उससे संबंधित विचार लगातार आते चले जाते हैं, और हम आंतरिक संघर्ष के कारण ध्यान से हट जाते हैं।

वास्तव में हमारे इस बाह्य जीवन की आवश्यकताए सामयिक होने के कारण अत्यन्त तीव्रता लिए होती हैं और वो हमारे चित्त को अपनी ओर आकर्षित करती रहती है। जिसकी बजह से ठीक प्रकार से ध्यान लगाने में सहाजियों को कठिनाई होती है।यहाँ तक कि कई बार तो ध्यान बिलकुल भी नहीं लग पाता है।

ऐसी स्थिति में हमें गौर करना चाहिए कि हमारे सहस्त्रार व् मध्य हृदए में विचारों के आवागमन के साथ कुछ ऊर्जा (वायब्रेशन) भी महसूस हो रही है क्या। यदि तीव्र वायब्रेशन रहे हैं तो हमें समझना चाहिए कि हमारा ध्यान ठीक प्रकार से घटित हो रहा है। 

अंतर केवल इतना है कि हम अपने विचारों की ओर इस प्रस्फुटित होने वाली ऊर्जा से ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और व्यर्थ के संघर्ष में उलझ रहे हैं। अतः हमें आने वाले विचारो की ज्यादा परवाह नहीं करनी चाहिए बल्कि अपने ऊर्जा केंद्रों व् यंत्र में प्रवाहित होने वाली ऊर्जा पर अपना चित्त व् चेतना केंद्रित करनी चाहिए।

परंतु प्रश्न ये उठता है कि वायब्रेशन और विचार साथ- साथ कैसे चल रहे होते है ? हमें समझना चाहिए कि ध्यान के प्रारंभिक दौर में हमारा मन व् चेतना अक्सर एक दूसरे की विपरीत दिशा में ही चलते हैं।

हमारी चेतना "श्री माँ" के सानिग्ध्य का आनंद उठाना चाहती है और हमारा मन सांसारिकता की ओर हमें धकेलने का प्रयास कर रहा होता है।
क्योंकि ध्यान की अच्छी अवस्था का मतलब तीव्र वायब्रेशन का आना ही है।

वास्तव में ऐसी अवस्था में हमारे मन के कोष खाली किये जा रहे होते हैं और उन समस्त चीजों को विचारों के रूप में 'माँ' के द्वारा बाहर निकाला जा रहा होता है जिसके कारण विचार पंक्ति प्रगट होती है।


ये क्रिया ऐसी ही है जैसे कि वैक्यूम क्लीनर कारपेट के नीचे छुपी हुई धूल को अपनी ओर खींच लेता है ऐसे ही ऊर्जा का प्रेशर हमारे मन की 'डस्ट' रूपी विचारों को खींच कर पहले मन की सतह पर लाता है और फिर धीरे धीरे हमारे मन को स्वच्छ करता जाता है और हम शनै शनै विचार रहित होते जाते हैं।"
---------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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