Friday, November 3, 2017

"Impulses"--411--"सहज के विभिन्न योग"

"सहज के विभिन्न योग" 


"श्री माँ" की अनुकंम्पा व् प्रेम के माध्यम से सहज में आने के उपरांत कई प्रकार के योग इस चेतना को नजर आये। सहज में स्थापित होने के लिए:- 

पहला योग है, सहज तकनीक योग:-

जिसमे साधक विभिन्न प्रकार की क्रियाओं को लगातार करते रहतें, जैसे जूता-पट्टी, कैंडलिंग, मटका, धूनी, स्ट्रिंग-नाटिंग, पेपर-बर्निंग, अल्लाह-हो-अकबर और फूट-सोकिंग इत्यादि। 

ज्यादातर सहजी हर समय केवल इन्ही क्रियाओं के बारे में ही सोचते रहतें हैं और दूसरे साधकों को भी हर दिन ऐसा करने के लिए प्रेरित करते रहतें हैं। और यदि सहज संस्था में किसी पद पर हैं तो फिर तो माइक पर हर सप्ताह यही सब कहते रहतें हैं।

दूसरा योग है, सहज संस्था योग:-

इस योग से ग्रसित सहजी हर अवसर पर सहज-संस्था में नजर आते है, चाहे साप्ताहिक ध्यान हो, कोई पूजा हो, हवन हो, प्रचार यात्रा हो या सेमिनार हो। 

और तो और वो अपने क्षेत्र के लगभग हर सहजी के सामाजिक कॉर्यक्रम में भी हर हाल में उपस्थित रहते हैं। किन्तु वो कभी भी किसी को भी आत्मसाक्षात्कार देने व् ध्यान में मदद करने को कभी तैयार नहीं होते।

तीसरा योग है, सहज-पदाधिकारी योग:-

इससे प्रभावित साधक हर हफ्ते सहज सेंटर जायेंगे और कोरडीनेटर या सहज के पदाधिकारियों के इर्द-गिर्द ही घूमते रहते है।

उनको अन्य सभी सहजियों की ख़बरें नमक-मिर्च लगा- लगा कर उसके कानो में फुसफुसाते हुए कहते रहेंगे मानो कोई पुलिस का मुखबिर अपराधियों की ख़बरें गुप-चुप देता है।

कभी इसकी बुराई कभी उसकी बुराई करते रहेंगे, और सबसे हास्यपद बात तब होती है यदि वो सहजी उनके सामने जाता है तो बड़े प्रेम से 'प्लास्टिक इस्माइल' के साथ 'जय श्री माता जी' भी जरूर कह देते हैं और जाने के बाद फिर बुराई शुरू। 

ऐसे लोग सदा पदाधिकारियों के चारों ओर ही घूमते रहतें हैं, जैसे सूर्य के चारों ओर कुछ ग्रह लगातार चक्कर लगाते रहते हैं। और सदा खबर-नबीस का रोल ही अदा करतें हैं और संस्था की राजनितिक गतिविधियों में सदा लिप्त रहतें हैं। वास्तव में ऐसे लोगों का सहज योग से कोई लेना-देना नहीं होता है।

चौथा योग है, आत्म-मुग्धता व् आत्म-प्रशंसा योग:-

इस योग से बाधित साधक गण सहज के अनेको कार्य करते हैं, यानि नए लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना, सामूहिकता को ध्यान कराना,
सामूहिकता का नेतृत्व करना, ध्यान की अच्छी अच्छी बातें बताना, नए व् पुराने लोगों की ध्यान में मदद करना। 

किन्तु उपरोक्त समस्त बातों का श्रेय भीतर ही भीतर स्वम् को देते गौरान्वित होते रहते हैं।और अन्य लोगों से अपने द्वारा किये गए समस्त कार्यो के लिए अपनी प्रसंशा के बोल सुनने के लिए लालायित रहते हैं।मानो उनकी प्रशंसा उनके जीवन चलाने का भोजन हो।

यदि किसी कारणवश उनके कार्यों की प्रशंसा मिले तो वो लोगों से नाराज व् खिन्न तक हो जाते हैं। प्रशंसा का खाना मिल पाने के कारण वो भीतर से मृत-प्राय हो जाते हैं और उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता। 

प्रशंसा-पीड़ित सहजी प्रशंसा पाने के लिए नित नई नई योजनाएं बनाते रहते हैं, नए नए रास्ते खोज खोज कर लोगों की प्रशंसा का पात्र बने रहते हैं। 

ऐसे सहजी अक्सर प्रसिद्ध सहाजियों व् लोगों से प्रभावित हो हो कर अपने हाव-भाव भी उनके जैसा ही बनाने का प्रयास करते है, यहाँ ताकि कि उनके तौर तरीके, पहनावे व् बातों की नकल करने से भी गुरेज नहीं करते।

पांचवा योग है,"श्री माँ"योग:-

इससे जुड़े साधक सच्चे हृदय से 'श्री माँ' में ही डूबे होते हैं, सबसे सच्चे हृदय से प्रेम करतें हैं, जो भी कुछ 'माँ' से पाते हैं वो सभी कुछ सभी को बाँट देना चाहतें है। चाहे कोई उनकी कितनी भी बुराई करे, चाहे कितनी भी ईर्ष्या करे, फिर भी वे सदा प्रेम भाव ही बनाये रखतें हैं। 

सदा 'माँ ' के प्रेम को जन-जन में बहाते रहतें हैं, कभी भी किसी बात से नहीं डरते, उन्हें मान सताता है और उन्हें अपमान, वास्तव में ऐसे ही सहजी का स्वरुप 'श्री माँ' चाहतीं हैं।"
---------------------------------------------Narayan
".Jai Shree Mata Ji"

1 comment:

  1. जै श्री माता जी ...सच्ची बात

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