Thursday, March 15, 2018

"Impulses"--435--"कुछ सहजियों की मनोवैज्ञानिक समस्याएं"

"कुछ सहजियों की मनोवैज्ञानिक समस्याएं"



"पिछले कुछ वर्षों की सहज यात्रा के दौरान इस चेतना के अवलोकन में कुछ सहजियों की एक बहुत ही गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या परिलक्षित हुई है जिनका प्रभाव कुछ सहजियों के व्यक्तित्व में समय समय पर प्रगट होता रहता है।

जिसके चलते कुछ सहजी मनोरोगियों की श्रेणी में शामिल हो चुके हैं किंतु वो स्वयं को बहुत उच्च दर्जे का सहजी अथवा शक्ति मानकर अन्य सामान्य अच्छे सहजियों को अत्यंत तुच्छ निम्न समझते हैं और उनके साथ असामान्य व्यवहार करते हुए उन्हें विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित करते हुए नीचा दिखाते रहते हैं।

ऐसे मनोरोगियों को विभिन्न लक्षणों के आधार पर पहचान वर्गीकृत किया जा सकता है:

1.श्रवण प्रभावित सहजी:-

वास्तव में कुछ सहजी तो बिना ध्यानस्थ अवस्था में उतरे मानसिक स्तर पर "श्री माता जी" के लेक्चर सुनसुन कर स्वयं ही अपने को कोई कोई 'शक्ति' मान बैठते हैं और अन्य सहजियों के साथ बिल्कुल देवी देवता की तरह ही व्यवहार करने लगते है।

इस उपक्रम में वो उनकी बात मानने वाले व्यक्ति को श्राप देने की धमकी देते हैं तो किसी को भस्म कर देने की चेतावनी देते हैं, तो किसी को सजा देने की बात करते हैं।

कभी कभी तो ऐसे सहजी स्वयं "श्री माता जी" ही बन जाते हैं और अन्य लोगो को आशीर्वाद तक देना प्रारंभ कर देते हैं, वो कहते हैं कि उनके भीतर "श्री माता जी" जाती हैं और "वही" बोलती हैं।

कोई कोई सहजी तो ये है कहना प्रारम्भ कर देता है कि वो तो "श्री माता जी" की छाया है। ऐसे लोग किसी के घर में बाधा बता देते हैं, तो किसी के चक्र खराब बता देते है, तो किसी के घर में भूतप्रेत बता देते है।

तो किसी को कह देते हैं कि तुम्हारे किसी रिश्तेदार ने तुम्हारे ऊपर या तुम्हारे परिवार के ऊपर तंत्र-मंत्र कर रखा है। ये सब बातें बता बता कर साधारण सहजियों को डरा देते हैं और साथ ही कहते हैं कि हमें अपने घर बुलाओ ताकि हवन पूजा के जरिये वो इन बाधाओं को समाप्त करा देंगे।
बेचारे वो सहजी डर के मारे उन्हें अपने घर आने का बाधा दूर करने के लिए आमंत्रित कर देते हैं।

घर पहुंच कर ये महानुभाव उनके घर के विभिन्न स्थानों में निगेटिविटी को बता कर उसे क्लीयर करने का ड्रामा करने का उपक्रम करते हैं।
कभी कभी तो अपनी कुछ आवश्यकता दिखा कर कुछ सुविधाएं पैसे उधार तक मांग लेते हैं जिसे कभी लौटाते नहीं।

और वो बेचारा सहजी उनके इस महान उपकार के बदले उनसे अपने पैसे वापस मांगता तक नही है।इस प्रकार से इनका कमाई का धंधा तक चलता रहता है।

यहां तक कि कभी कभी तो परिवार के सदस्यों के बारे मे उल्टा-सीधा, झूठ-सच बताकर उनके पारिवारिक सदस्यों के बीच मनमुटाव झगड़ा तक करा देते है।

2."श्री माँ" के स्वरूप से प्रभावित सहजी:-

ऐसे सहजी तो अपने को बिल्कुल "श्री माता जी की कापी बनाना चाहते हैं, बिल्कुल उनके जैसा ही दिखने का प्रयास करते हैं, "उनके" ही जैसी साड़ी धारण करते है, "उनके" जैसी बड़ी सी बिंदी लगाते हैं, "उनके" ही शब्द अपना लेते है।"उनकी" ही शैली में बात करते हैं।

ऐसे सहजी "श्री माता जी" की बाह्य गतिविधियों को बहुत बारीकी से अध्यन करते है, कैसे "वो" बैठती है, किस प्रकार "वो" अपने पाँव रखती हैं, किस प्रकार "वो" देखती है, किस प्रकार "वो" बोलती हैं, किस प्रकार से "वो" भोजन ग्रहण करती हैं, किस प्रकार से "वो" सहज बताती हैं।

ऐसा सहजी "श्री माता जी" के तौर तरीके उपक्रम बाहरी रूप से अपना लेता है और "उन" जैसा ही आचरण करने लगता है, और "उनके" जैसी ही चाल-ढाल में जीना प्रारम्भ कर देता है।

3.व्यक्तित्व प्रभावित सहजी:-

ये एक ऐसे सहजियों को वर्ग है जो अन्य अच्छे सहजियों के वस्त्र-धारणा, फैशन, स्टाइल, रहन सहन, हावभाव, बातचीत, ध्यान के तरीकों, ध्यान में बोली जाने वाली बातों, भाषा शैली, शब्दों, दृष्टिकोण, आचरण, लेखन आदि से अत्यंत प्रभावित होकर हूबहू अपने जीवन में कापी करने लगते हैं।

ऐसे सहजी अन्य सहजियों के साथ बिल्कुल उनके जैसा ही व्यवहार करने लगते हैं।यानि वो अपने भीतर उस व्यक्तित्व को ही महसूस करना चाहते हैं।

ऐसे सहजी जब किसी अच्छे भजन गायक से मिलते हैं तो भजन गायक बनना चाहते है, किसी फैशन आइकॉन से मिलते हैं तो वैसा ही दिखना चाहते है

किसी वक्ता से मिलते हैं तो वैसा ही बोलना चाहते है, किसी डांसर से मिलते हैं तो बिल्कुल उसी के स्टेप मूव की नकल करते हैं, किसी प्रसिद्ध व्यक्ति से मिलते हैं तो उसकी की तरह प्रसिद्ध होने के लिए प्रपंच रचते है। यानि जिस किसी से भी वो प्रभावित हो जाएं तो बस वो उनके जैसा ही बनने के लिए लालायित रहते है।

4.पठन प्रभावित सहजी:-

ये वर्ग ऐसे सहजियों का है जो विद्वान किस्म के होते हैं जिन्होंने, अनेको प्रकार की पुस्तकें, पुराण, ग्रंथ, उपनिषद, शास्त्र, बाइबिल, महाभारत, गीता, रामचरित मानस, गुरुबानी, कुरान, कथाओं, महापुरुषों की जीवनी "श्री माता जी" के लेक्चर्स को खूब पढ़ा सुना होता है किंतु उन सब बातों को पूर्णतया अनुभव नहीं किया होता।

ऐसे सहजी जब भी किसी सहजी को अपना ज्ञान दे रहे होते हैं तो वो ऐसे कठिन शब्दों के जरिये अत्यंत जटिल प्रणाली का के बारे में बताते हैं कि उनकी कोई भी बात किसी सामान्य सहजी को आसानी से समझ नहीं पाती और वो सहजी उनको बहुत ऊंचा गहन सहजी समझता है।

वो बेचारा ये सोचता है कि इतनी कठिन चीजे बताने वाला जरूर बहुत ऊंचे दर्जे का सहजी होगा तभी उसकी बात समझ के ऊपर से निकल रही है। ये तथाकथित ज्ञानी सहजी जानबूझ कर ऐसी बाते बोलता है जिससे सुनने वाले सहजी के भीतर हींन भावना पनप जाए और वो उस महाज्ञानी का गुणगान करते हुए हर बात उससे पूछे जानना चाहे।

ऐसी तथ्यविहीन बाते बोलकर अन्यों को हीन भावना से ग्रसित करके वो बड़ी ही मानसिक संतुष्टि महसूस करता है। ऐसा महाज्ञानी अन्य सहजियों की सत्य बातों को भी अपनी अव्यवहारिक बेसिर पैर की बातों से काटता रहता है।

जब भी उनसे कोई व्यवहारिक, सत्य अनुभव की बात पूछी जाए तो वह तुरंत विषय से हटकर इधर उधर की बात करना प्रारम्भ कर देते हैं क्योंकि वास्तव में उन्हें कोई अनुभव होता ही नहीं है।

उन्होंने तो बस किताबों का घोटा लगाया होता है और उन बातों के आधार पर एक खिचड़ी तैयार करके वो अन्य लोगों को समय समय पर अपने ज्ञान के रूप में परोस देते हैं।और अपने को बहुत ही ऊंचे सिद्ध सहजी के रूप में प्रगट करते हैं।

वो कभी अपने को 'भगवान' का संदेशवाहक कहते हैं तो कभी 'भगवान' की शक्तियों का धारक बताते है।वो अन्य सहजियों से कहते हैं, 'चिंता करें वो अपनी शक्तियों को उनके भीतर भेजकर उनकी परेशानी समाप्त कर देंगे।

कभी वो अन्यों को समर्पण करने को बोलेंगे, तो कभी निर्वाजय प्रेम को अपने हृदय में उतारने को बोलेंगे, तो कभी समाधी में उतरकर "माँ" से जुड़ने को बोलेंगे, तो कभी कहेंगे कि अभी, 'तुम्हारा सहस्त्रार नहीं खुला है', तो कभी कहेंगे कि तुम लोग तो अभी "माँ" के "चरणों" में उन्हें दिखाई ही नहीं दे रहे हो।

जब उनसे पूछा जाए कि उनको ये सब बातें कैसे पता चलीं और क्या वो तकनीकी रूप से इन बातों को पता करने के बारे में बता सकते हैं। तो वो उत्तर देने तरीका बताने के स्थान पर बातों को गोल मोल कर देंगे और आपको "माँ" की भक्ति बढाने की सलाह देंगे।

ऐसे लोग पूर्णतया ढोंगी ही होते हैं।उनके पास वास्तव में कोई अनुभव होता ही नहीं है जिससे अन्य सहजियों को लाभ हो।बस वो केवल और केवल अपना प्रभाव बनाये रखने के लिए ही यत्नशील रहते हैं।

कभी कभी तो अपने को प्रदर्शित करने के लिए वो फेसबुक अथवा व्हाट्सएप्प पर अन्य सहजियों के सुंदर लेखों को अपने नाम तक से शेयर कर देते हैं।

तो कभी कभी तो सभी का ध्यान अपने तथाकथित ज्ञान की ओर आकर्षित करने के लिए अन्य सहजियों की पसंद की जाने वाली फेसबुक पोस्ट को अपने प्रोफाइल पर शेयर करके उस पोस्ट पर अपना उल्टा सीधा ज्ञान पोस्ट कर देते है।

यानि अन्य सहजियों की पोस्ट के सहारे खुद की बातों को प्रचलित करने का निर्थक प्रयास भी करते रहते है जिससे अन्य सहजी उन्हें ऊंचे दर्जे का सहजी मान कर उनकी ओर आकर्षित हो जाएं।

वास्तव में उपरोक्त प्रकार के प्रभाव एक प्रकार से 'Possession' के विभिन्न रूप ही हैं। जिनके आधीन आकर ऐसे सहजियों की स्वयं की चेतना बुरी तरह प्रभावित होती है और उनका अपना स्वयं का अस्तित्व उनकी मौलिकता समाप्त हो जाती है।

ऐसी विकट स्थिति में उनकी आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया पूरी तरह अवरुद्ध हो जाती है।क्योंकि हमारी मौलिकता ही हमारी आंतरिक उन्नति का आधार होती है।

ऐसा सहजी दुहरा व्यक्तित्व अपनी चेतना में जीता है और निरंतर अधोगति की ओर अग्रसर होता जाता है। क्योंकि ऐसा आचरण करने से उसकी जीवात्मा और भी ज्यादा बंधनों में फंसती जाती है और उसके 'मोक्ष' की आशा धूमिल होती जाती है।

वास्तव में ये अत्यंत गंभीर समस्या है, बाह्य बाधाएं तो एक बार को "श्री माँ" के समक्ष बैठने ध्यान में उतरने से समाप्त हो भी जाएं। किन्तु ये स्थिति हटनी बेहद बहुत मुश्किल होती है क्योंकि इस प्रकार के प्रभावों को सहजी स्वेच्छा से धारण करता है।

ऐसे बाधित सहजियों का आत्मविश्वास भीतर में अत्यंत क्षीण होता है जिसकी वजह से वो स्वयं को अत्यंत दींन हींन समझते है। इन्ही कमियों के कारण वो समय समय पर अन्य लोगों के व्यक्तित्व से प्रभावित होते रहते हैं।

आप सभी "श्री माँ" के बच्चों से विनम्र निवेदन है कि यदि अपने आस पास ऐसे किसी भी बाधित अथवा प्रभावित सहजी को आप सभी देखें तो सर्व प्रथम ध्यानस्थ अवस्था में ऐसे सहजी के सामान्य होने के लिए "श्री माँ" से पूर्ण हृदय से प्रार्थना करें।

उसके बाद ध्यान की हर बैठक में इस प्रकार के मनोरोग से प्रभावित सहजी के मध्य हृदय में अपने यंत्र से "श्री माँ" का प्रेम ऊर्जा के रूप में कम से कम 5-7 मिनट तक अत्यंत करुणा प्रेम के साथ प्रवाहित करें।

ऐसा निरंतर करते रहने से उसके भीतर की कुंठा असंतुष्टि की भावनाएं धीरे धीरे नष्ट होनी प्रारम्भ हो जाएंगी और एक एक दिन वह अपनी मौकिकता अपने व्यक्तित्व को स्वीकार कर अपने पांवों पर खड़ा होना प्रारम्भ कर देगा।"

-------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


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