Tuesday, July 3, 2018

"Impulses"--452--"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप' (भाग-7)


"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप(भाग-7)
(12-01-18)


तृतीय स्थान के नकारात्मक ऊर्जा संकेत:

जब हमारी किसी भी नाड़ी में गर्माहट का होना अनुभव हो तो समझना चाहिए कि हमारे चित्त में स्थित किसी व्यक्ति/स्वम्/स्थान/वस्तु/स्थिति उक्त नाड़ी की देवी उपलब्ध नहीं हैं।

और यदि बहुत तेज जलन या अग्नि जैसा महसूस हो तो इसका मतलब वो अत्यंत रुष्ट हैं।

i) किसी भी चक्र में गर्म गर्म महसूस होना:-

ऐसी स्थिति में हमें अपने चित्त पर चित्त रखकर देखना होगा कि हमारा चित्त किसी व्यक्ति/स्वम्/स्थान/वस्तु/स्थिति पर है और उसके पश्चात हमारे किसी चक्र में गर्माहट हो रही है।

जो इस बाद को प्रगट कर रही है कि हमारे चित्त की प्रतिक्रिया स्वरूप उस चक्र के देवी देवता हमें उस चीज को करने या सोचने के लिए मना कर रहे हैं।

उदाहरण के लिए यदि हम किसी व्यक्ति के बारे में सोच रहे हैं कि वो बहुत अच्छा इंसान है और हमारे बायें हृदय में गर्माहट आने लगे तो हमें समझ जाना चाहिए कि उसके स्वम् के "श्री शिव पार्वती" उससे प्रसन्न नहीं है।

यानि वह व्यक्ति हृदय से अच्छा नहीं है यानि ऊँचनीच, भेदभाव, दिखावा, छल इत्यादि करने वाला मानव है।

ii) किसी भी चक्र में जलन या अग्नि का महसूस होना:-

जब ऐसी स्थिति चित्त की प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप हमारे किसी भी चक्र में प्रगट होने लगे तो हमें समझना होगा कि उक्त चक्र के देवी-देवता हमसे/किसी व्यक्ति/स्थान/वस्तु/स्थिति से नाराज हो रहे हैं।

iii) किसी भी चक्र में दर्द का अनुभव होना:-

जब चित्त की प्रतिक्रिया स्वरूप हमें अपने किसी चक्र में फोड़े जैसे दर्द का अनुभव होने लगे तो ये इस बात का संकेत है कि उक्त चक्र के देवता हमसे/किसी व्यक्ति/स्थान से/वस्तु से/स्थिति से अत्यंत दुखी है।

क्योंकि वो सदा सर्वहित ही चाहते हैं किंतु स्थिति परिस्थितियां प्रतिकूल होने के कारण "वो" उक्त स्थिति से पीड़ित महसूस कर हमारे चक्र के जरिये अपनी वेदना प्रगट कर रहे हैं।

iv) किसी भी चक्र में बारम्बार सुइयां चुभने जैसा अनुभव होना:-

जब कभी हमारे चित्त की प्रतिक्रिया स्वरूप अनेको सुईंया चुभने जैसे महसूस हो तो हमें सचेत हो जाना चाहिए। क्योंकि उक्त चक्र के देवी-देवता हमसे/किसी व्यक्ति से/स्थान से/वस्तु से/स्थिति से अत्यंत कुपित हैं और अब वे सजा देने जा रहे हैं।

जब ऐसी विकट स्थिति महसूस हो तो तुरंत सभी सोचें/विचार/भाव आदि त्यागकर "श्री माँ" के शरणागत हो जाना चाहिए सच्चे हृदय से स्वम्/व्यक्ति/स्थान/वस्तु/स्थिति के लिए क्षमा-याचना करनी चाहिए।

अन्यथा देवी-देवताओं के कोप ग्रह नक्षत्रों के प्रकोप का भाजन बनना पड़ेगा।

v) मध्य हृदय में घुटन प्रतीत होना:

कभी कभी हमारा चित्त किसी व्यक्ति/स्थान/स्थिति/विचार या हम पर स्वयं पर हो और हमारे हृदय में घुटन सी महसूस होने लगे तो हमें समझना चाहिए।

कि जो भी हमारे चित्त में चल रहा है वो हमारी "हृदेश्वरी" को पसंद नहीं रहा है। वो अपनी नापसंदगी हमारे हृदय में घुटन देकर प्रगट कर रही हैं।

vi) उबकाई/उल्टी आना:

कभी किसी व्यक्ति/स्थान/विचार/स्थिति/अथवा स्वम् पर चित्त रहने को प्रतिक्रिया स्वरूप हमें उल्टी आने जैसी अनुभूति होती और कभी कभी तो उल्टी भी जाति है।

तो इसका मतलब ये होता है कि जहां पर भी हमारा चित्त है वहां पर मध्य हृदय की विरोधी शक्तियां सक्रिय है। जिसको समाप्त करने के लिए "हृदेश्वरी" हमारे यंत्र का इस्तेमाल कर उबकाई की अनुभूति देकर हमें बताना चाहती हैं।

और यदि वह नकारात्मक प्रभाव जाने अनजाने में हमारी विशुधी अथवा आगन्या के माध्यम से हमारे हृदय तक गया है तो उसे उल्टी कर द्वारा बाहर निकाल रही हैं।

vii) पेट में अचानक गैस बनना/ दर्द होना/लूज मोशन होना:-

कभी कभी तो किसी व्यक्ति/स्थान/विचार/स्थिति/अथवा स्वम् पर चित्त रहने की प्रतिक्रिया स्वरूप हमारे पेट में अचानक से गैस बनने लगती है और दर्द हो जाता है।

और कभी कभी तो लूज मोशन तक होने लगते हैं जो इस बात को साबित करते हैं कि जहां पर भी हमारा चित्त है वहां 'कुगुरुता' का प्रभाव है जिस पर हमारा 'गुरुतत्व' पर जागृत 'गुरु' गैस की प्रतिक्रिया के द्वारा हमें सचेत कर रहे हैं।

और दर्द देकर नाभि-विरोधी ऊर्जा को हमारे यंत्र के माध्यम नगण्य करने में लग गए हैं।यानि जब तक गैस दर्द रहेगा तब तक उस नकारात्मक ऊर्जा की उपस्थिति बनी रहेगी।

और जब हमें लूज मोशन लग जाएं तो समझ लेना चाहिए कि जहां भी हमारा चित्त है वहां से अनजाने में हमारे भव सागर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर गई है और " श्री लक्ष्मी विष्णु" जी भवसागर में लहरे उत्पन्न कर इसको स्वच्छ करने में लग गए हैं।"

अतः उबकाई, उल्टी, गैस लूज मोशन की दशा में बिल्कुल भी घबराना नहीं चाहिए और अपने शरीर में पानी की कमी को पूरा करने के लिए घूंट घूंट करके जल ग्रहण करते रहना चाहिए।"

viii) कंठ का सूखना/अवरुद्ध होना अथवा खांसी आना:-

जब भी कभी किसी व्यक्ति/स्थान/विचार/स्थिति/अथवा स्वम् पर चित्त रहने की प्रतिक्रिया स्वरूप अचानक हमारा गला अवरुद्ध होने लगे।

तो हमें समझ जाना चाहिए कि जहां भी हमारा चित्त हैं वहां पाए "श्री राधा कृष्ण" विरोधी शक्तियां सक्रिय हैं अतः हमारे 'विशुधी चक्र स्वामी' हमारे गले को अवरुद्ध करके हमें ये तथ्य बताना चाहते है।

और जब हमें खांसी प्रारम्भ हो जाये तो समझ लेना चाहिए कि "श्री राधा कृष्ण" की शक्तियां उक्त व्यक्ति/स्थान/विचार/स्थिति या हमारे स्वम् के भीतर स्थित 'विराट-विरोधी' शक्तियों को निष्क्रिय करने में लग गईं हैं।

ऐसी दशा में भी हमें निरंतर घूंट घूंट जल ग्रहण करते रहना चाहिए क्योंकि ये विपरीत शक्तियों का आपसी संघर्ष हमारे भीतर के जल को शोषित करता जाता है जिससे हमारा गला सूखने लगता है इसमें खरांश भी महसूस होती है।"

-----------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


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