Thursday, July 19, 2018

"Impulses"--455--"ऊर्जा संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग-10)


"ऊर्जा संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग-10)
(06-02-18)



हमारे सूक्ष्म यंत्र पर स्थित तीनो नाड़ियों पर स्थित चक्रों की दो विपरीत अभिव्यक्ति :-

ये अक्सर देखने में आता है कि बहुत से सहजियों के सूक्ष्म यंत्र में उनके चक्र पीछे कमर पर हलचल देते महसूस होते हैं तो कुछ सहजियों के आगे की तरफ चक्र महसूस होते है।

जबकि समस्त चक्र तो सभी नाड़ियों पर अपने एक सुनिश्चित स्थान पर ही स्थित होते हैं।तो फिर प्रश्न उठता है कि उक्त चक्रो की अनुभूति दो अलग अलग स्थानों पर क्यों होती है।

वास्तव में ये दो प्रकार की अलग अलग आगे की तरफ पीछे कमर पर होने वाली अभिव्यक्ति हमें उन चक्रों के देवी-देवताओं से घनिष्टता दूरी को ही दर्शाती है।

जब किसी व्यक्ति विशेष/स्वम् हमारे ऊपर चित्त रखने के बाद हमारी नाड़ियों पर स्थित समस्त चक्रों अथवा किसी एक चक्र में कुछ ऊर्जा संकेत हमारी कमर पर पर अनुभव होने लगें। 

तो हमें समझ जाना चाहिए कि उन चक्रों के/उक्त चक्र विशेष के देवी/देवताओं की शक्ति उस व्यक्ति/हमारे चक्रों को पोषित करने लग गई हैं किंतु उन चक्रों के 'इष्टों' से हमारी चेतना का तादात्म्य अभी नहीं बन पाया है।

ये अवस्था केवल तब ही घटित होती है जब किसी व्यक्ति/हमारी कुण्डलिनी सहस्त्रार पर आने लगती है।

इसके विपरीत जब कभी हमारा चित्त किसी व्यक्ति विशेष/हमारे स्वम् के ऊपर होता है और हमें अपनी नाड़ियों पर स्थित चक्रों में अथवा किसी एक चक्र में विभिन्न प्रकार के ऊर्जा संकेतों की अनुभूति हमारे शरीर के आगे की तरफ होने लगे।

तो हमें समझना चाहिए कि कि उस व्यक्ति के/हमारे सभी चक्रों के देवी देवता अथवा उस विशेष चक्र के देवी/देवता जागृत हैं उस व्यक्ति की/ हमारी चेतना से काफी नजदीकी रखते है।

ये स्थिति केवल तभी ही बनती है जब हमारा/किसी व्यक्ति के सहस्त्रार का जुड़ाव उसके/हमारे मध्य हृदय से हो गया है जिसके कारण मध्य हृदय खुलने लग रहा है और हमारे/अन्य के भीतर "श्री माँ" का प्रेम भी बहने लग गया है।

वास्तव में हमारा सम्पूर्ण सूक्ष्म यंत्र केवल तभी ही ठीक प्रकार से पोषित हो पाता है जब हमारा मध्य हृदय चक्र पूर्ण रूप से जागृत हो जाता है,
क्योंकि सूक्ष्म यंत्र पर स्थित सभी देवी-देवता हृदय खुलने की दशा में ही "हृदेश्वरी" के सम्पर्क में पाते हैं और "उनसे" पोषण पाते हैं।

अतः निरंतर उत्थान प्राप्त करने के लिए सहज-अभ्यासियों का मध्य हृदय खुलना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा सभी के हृदय में एक दूसरे के लिए शुष्कता बनी रहेगी और आत्मिक प्रगति बाधित ही रहेगी।

और मध्य हृदय खोलने के लिए अपने सहस्त्रार की ऊर्जा को अपने मध्य हृदय में निरंतर शोषित करते रहने का अभ्यास बनाये रखना होगा।

तो ये था, लगभग समस्त प्रकार के 'ऊर्जा संकेतों' की अभिव्यक्ति का "श्री माँ" के द्वारा प्रेरित मेरी तुच्छ समझ अनुभव के आधार पर विश्लेषण।

आशा है आपमें से कुछ साधक/साधिकाओं के 'ऊर्जा संकेतों' से सम्बंधित कुछ जिज्ञासाओं की सन्तुष्टि अवश्य हो गई होगी। यूं तो इन 'ऊर्जा संकेतों' के माध्यम से हमारे कुछ प्रश्न हल हो जाते हैं और कुछ कुछ सत्य का आभास भी होने लग जाता है।

किन्तु यदि हम केवल इन पर ही आश्रित रहने लगें तो हम अपनी वास्तविक 'आध्यात्मिक यात्रा' में कहीं कहीं अवरोध ही उत्पन्न कर रहे होंगे।

क्योंकि इन सभी संकेतों को ठीक प्रकार से समझने के लिए हमें अपने मन के सूचना कोष का प्रयोग करना पड़ता है जो कहीं कहीं हमें केवल 'आगन्या' के स्तर तक ही सीमित कर देता है।

उच्च अवस्थाओं का आनंद लेने के लिए हमें गहन ध्यान में अपनी स्वम् की 'आत्मा' के साथ तादात्म्य स्थापित करना होगा जो हर प्रकार की स्थिति में हमारी हर पल सहायता करने को तत्पर रहती है।

हमारी 'आत्मा' के प्रकाश में हम हर प्रकार के सत्य से अवगत होने लगते हैं हमें इन 'ऊर्जा संकेतों' के उपयोग की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
जिस पर भी हमारा चित्त जाता है उसका सत्य हमारे हृदय में स्वतः ही प्रस्फुटित होने लगता है।

किन्तु ये केवल तभी सम्भव है जब हमारा मन निष्क्रिय होने लगे, यानि हम अपने मन की गुलामी से ऊपर उठ जाएं।  हमारा हृदय पूर्णतया किसी भी प्रकार की दुर्भावनाओं से मुक्त हो शीशे के समान पारदर्शी हो जाये।"

---------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

"इति श्री"

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