Monday, July 4, 2016

"Impulses"--290

Impulses

1)"सत्य साधकों/साधिकाओं के साथ कई बार ऐसा होता है कि "जागृति" के विरोध में कार्य करने वाली नकारात्मक शक्तियां हमारे सांसारिक जीवन के नजदीकी रिश्तों व् मित्रों के आज्ञा चक्रों में प्रवेश कर उनके द्वारा हमारे लिए अत्यंत कठिन परिस्थितियां व् स्थितियां उत्पन्न कर देती हैं और हमें उनसे उबरने का कोई रास्ता सुझाई नहीं देता।

तब "श्री माँ" हमारे सहस्त्रार व् मध्य हृदय में तीव्र खिंचाव देकर हमारा चित्त अपनी ओर ले जाती हैं और मारी चेतना को 'अपनी प्रेम-ऊर्जा' के प्रवाह के माध्यम से अपने साथ जोड़े रखने में हमारी मदद करती हैं ताकि हमारा चित्त व्याकुल होकर हमारे सहस्त्रार को छोड़कर मन के भीतर छुपे शत्रुओं के चंगुल में फंस जाये।

ऐसी स्थिति में ब्रहम्मांड में विचरण करने वाली अनेको उच्च कोटि के ज्ञानियों, संतों, सदगुरुओं, विद्वानों की चेतनाएं व् दिव्य शक्तियां हमारे सहस्त्रार पर "माँ आदि" की उपस्थिति को देख कर अवतरित होने लगते हैं। 

और हमारे मध्य हृदय में प्रवेश कर हमारी सांसारिक परेशानियों से बाहर निकलने के लिए हमारे हृदय में भाव प्रेरणा देकर हमारे लिए सार्थक मार्ग सुझाते हैं व् साथ ही हमें कष्ट पहुंचाने वाले लोगों के आज्ञा में प्रवेश कर उनके मन पर सवार 'शैतानों', भूतों व् राक्षसों को भगा देते हैं या नष्ट कर देते हैं।

इसीलिए हमें हर पल हर परिस्थिति में अपनी चेतना, चित्त व् मन के साथ अपने मध्य हृदय व् सहस्त्रार पर बने रहकर "माँ" की 'प्रेम-ऊर्जा' को ग्रहण करते जाना चाहिए।"



2) "समस्त जागृत चेतनाओं को "नव-देवियों" की शक्ति व् प्रेम के माध्यम से अपने भीतर में घटित होने वाले "नव-जागरण" के 'सुन्दर व् पावन अवसर' का पूर्ण जागरूकता के साथ लाभ उठाने के लिए इस चेतना की ओर से "नवरात्रों" की सार्थकता के लिए हृदय-प्रेम से परिपूर्ण अनेकानेक शुभकामनाएं। इन श्रेष्ठतम दिवसों लाभ उठाने के लिए ध्यानस्थ अवस्था में अपने मन, चित्त व् चेतना को निरंतर अपने सहस्त्रार व् हृदय में बनाये रखते हुए "माँ" की पवित्र ऊर्जा को महसूस करते हुए "माँ भगवती" से प्रार्थना करें कि:-

"हे श्री माँ" मेरे मन के भीतर अभी भी यदि कोई कोई भूत, राक्षस या शैतान निवास करता हो तो कृपया उन सभी को नष्ट कर मुझे सदा के लिए अपने "श्री चरणों" में बनाये रखने का सामर्थ्य प्रदान कीजिये और मेरे हृदय से समस्त प्रकार की "परमात्मा व् प्रकृति" विरोधी दूषित भावनाओं को नष्ट कर मुझे अपनी "आत्मा" के आनंद में स्थित कर दीजिये।"

वास्तव में हमारा मस्तिष्क या तो मन के आधीन कार्य करता है और हमें नित नए झमेलों में फंसाता रहता है और हमें पतन के गर्त में धकेलता जाता है और अंत में हमें पूर्ण रूप से नष्ट कर देता है। या फिर हृदय से संचालित होता है और हृदय के संरक्षण में गतिशील रहकर अनेको प्रकार के रचनासत्मक कार्य करने की हमें प्रेरणा देता है जिसके कारण हम अपने साथ साथ अन्य लोगों के भी हर क्षेत्र में कल्याण का माध्यम बनते हैं।

अतः हृदय का पूर्ण लाभ उठाने के लिए हमें अपने हृदय में "माँ जगदम्बा" को जागृत करना होगा जो मन की मलिनता रुपी काई के साफ होने पर ही जागृत हो सकती हैं और ये मलिनता केवल और केवल "ध्यानस्थ अवस्था" में सहस्त्रार से हृदय में आने वाली "दिव्य ऊर्जा" रूपी अमृत से ही नष्ट हो सकती है। वर्ना मानव अपने मन में स्थित नकारात्मक शक्तियों के चंगुल में फंस कर अपने अनमोल मानवीय जीवन को पूर्णतया नष्ट कर डालता है और अनेको प्रकार के नरकों का भागी बनता है।"

"या देवी सर्वभूतेषु............. "शक्ति"रूपेण संस्थिता........नमस्तस्य........नमस्तस्य......... मस्तस्य.......नमो नमः"

----------------------------------------------------Narayan


"Jai Shree Mata Ji"


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