Thursday, July 28, 2016

"Impulses"--295--"जड़ता "

"जड़ता "

""जिसने केवल पढ़ा वो है अपने मन में जड़ा,  जिसने अनुभव किया वही आगे बढ़ा ""

केवल पढ़ना, सुनना व् मानसिक स्तर से समझना हमारी चेतना को जड़ता की ओर ले जाता है और हमारी चेतना जड़ हो जाती है
और जड़ता होने के कारण 'परमपिता" से संपर्क बन नहीं पाता और संपर्क होने के कारण अनेको प्रकार के मानसिक जीवाणु उत्पन्न होने लगते हैं।

जो मानव में सर्वप्रथम तूलना को उत्पन्न करते हैं और फिर हींन भावना को और हींन भावना हमारे अंदर अहंकार को उत्पन्न करती है और अहंकार दूसरों की कमियों को ढूंढ-ढूंढ कर उनपर शासन करने की प्रवृति को जन्म देता है और शासन करने का भाव पर-निंदा की ओर ले जाता है और पर-निंदा सबसे भयानक रोग 'ईर्ष्या' को जन्म दे देती है।

और ईर्ष्या से ग्रसित मानव "परमात्मा" की नजरों से गिर जाता है और अन्ततः 'रुद्रों' के कोप का भाजन बन अंतत: नष्ट हो जाता है
और उसकी "जीवात्मा" व् "चेतना" को शरीर छोड़ने के बाद भी अनेको प्रकार के नर्क भोगने पड़ते हैं

अत: हम सभी को अपने भीतर ध्यानस्थ अवस्था में "ईश्वर" के सनिग्ध्य के अनुभव जरूर प्राप्त करने चाहियें उसी से हमारी अनेको जन्मों की जड़ताएं जो हमारे 'अवचेतन' मन में स्थित हैं, धीरे धीरे समाप्त होने लगतीं हैं। और सच्चे प्रेम, भक्ति व् समर्पण के सुन्दर सुन्दर पुष्प हमारे भीतर में खिलने लगते हैं और जागृति की बयार हमारे अंतर मन व् चेतना को प्रफुल्लित करने लगती है "

----------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"

No comments:

Post a Comment