Monday, July 18, 2016

"Impulses"--292-"प्रातः काल में वाइब्रेशन कम क्यों आते हैं"

"प्रातः काल में वाइब्रेशन कम क्यों आते हैं"

"हममें से कुछ सहज-अभ्यासी इस बात से बेहद परेशान होते हैं कि उषाकाल(4-6 am) के ध्यान के समय वायब्रेशन कम क्यों महसूस होते हैं। जबकि सुबह 7 बजे से लेकर रात्रि के 12 बजे के बीच यदि ध्यान में बैठते हैं तो वायब्रेशन अच्छे से महसूस होते हैं और हमारे यंत्र के भीतर ऊर्जा का भ्रमण भी मालूम पड़ता है। 

आखिर क्या वजह है ?, प्रातः काल में तो और भी अच्छे आने चाहियें क्योंकि सुबह सुबह तो कोई व्यवधान डालने वाला भी नहीं होता।और "श्री माँ" ने भी सुबह का ध्यान सर्वोत्तम बताया है। क्या हमारे भीतर कोई बाधा है ?, जो हमें प्रात: काल के ध्यान का पूर्ण आनंद नहीं लेने देती और या फिर हमारे कुछ चक्रों में कोई कोई पकड़ अवश्य है।एक बात तो पक्की है कि हमारी विशुद्धि जरूर पकड़ी हुई है जिसके कारण वायब्रेशन कम आते हैं।

तो इस प्रकार से हममे से कुछ सहज साथी कुछ कुछ भीतर ही भीतर अपना आंकलन करते रहते हैं और कोई कोई कार्य क्लियरिंग का अवश्य करते रहते हैं और अपनी संभावित बाधाओं के बारे में सोचते रहते हैं पर अपनी ये परेशानी आसानी से किसी अन्य सहजी से शेयर नहीं करते हैं। सोचते हैं यदि ये बात किसी को बता दी तो वो क्या सोचेगा, कि इतने वर्षों से सहज में होने के बाद भी वायब्रेशन नहीं आते।तब बड़ी शर्म महसूस होगी और चार बाते भी सुनने को मिलेंगी।

अतः वो अंदर ही अंदर शंकित होते रहते हैं और बाहर से स्वयं को प्रसन्न व् संतुलित दिखाते हुए सभी के साथ व्यवहार करते है और इसका कारण खोजने के लिए दूसरे सहजियों से उनके ध्यान के अनुभव सुन सुन कर हाँ में हाँ मिलाते रहते हैं।और मन ही मन में "माँ" से ध्यान की गहराई मांगते रहते हैं।

वास्तव में ब्रह्ममहूर्त के ध्यान के समय वायब्रेशन आना या कम आने के कुछ मुख्य कारण हैं जो निम्न प्रकार हैं:---

i) सबसे पहला कारण है कि हममे से कुछ लोग रात्रि में देर से यानि 11-12 बजे तक सोते हैं और नियमानुसार हम 4 बजे के लगाये हुए अलार्म के साथ उठ तो जाते हैं पर नींद का प्रभाव बना रहता है जिसके कारण हमारा चित्त बार बार अवचेतन मन में जाता रहता है और हमें झटके लगते रहते हैं जिसके कारण वायब्रेशन कम आते हैं या बिलकुल नहीं आते।

ii)अक्सर हम प्रतिदिन स्वप्न देखते है जिनके कारण जागने के बाद भी हमारा मन अनजाने में उन स्वपनों में देखे दृश्यों में जुड़ा रहता है और हम अपने चित्त को ध्यान में लगाने का प्रयास कर रहे होते हैं तो हमारी "माता कुण्डलिनी" प्रयासों के कारण ऊपर नहीं उठ पाती हैं क्योंकि वो तो -प्रयास अवस्था में ही उठती हैं।

iii) पर कई बार हमारी नींद पूरी भी हो चुकी होती है और हमारा मन व् चित्त पूरी तरह संतुलित होता है और हमें 'माँ कुण्डलिनी' का एहसास भी हो रहा होता है पर दिन के मुकाबले वायब्रेशन फिर भी कम रहे होते हैं। क्योंकि जब हम सुबह 4 बजे उठकर ध्यानस्थ होते हैं तो हमसे जुड़े बहुत से सहजी सो रहे होते हैं और उनका चित्त अपनी अवचेतन की दुनिया डूबा होता है जिसके कारण उनकी कुण्डलिनी का प्रेम हमको मिल नहीं पाता जिसके कारण हमें दिन व् रात की तूलना में कम चैतन्य प्राप्त होता है।

वास्तव में या तो हम किसी पर चित्त डालें या किसी का चित्त हम पर आये, दोनों ही दशा में हमारे वायब्रेशन बढ़ जाते हैं पर हम ये सूक्ष्म घटना क्रम को जागरूकता के साथ महसूस नहीं करते जिसके कारण हम चैतन्य की सहायता से समस्त तथ्यों को जान नहीं पाते।

प्रातकाल के ध्यान में यदि आप गौर करें तो पाएंगे कि हमारा चित्त आसानी से किसी और पे जाता नहीं है क्योंकि दूसरों के चित्त हमारे ऊपर होने की प्रतिक्रिया स्वरूप ही हमारा चित्त दूसरों पर जाता है।अब चूंकि ज्यादातर लोग सुबह सोये होते हैं तो हमारा चित्त केवल हमारे स्वम् के ऊपर ही होता है। या यूं कहें तो सुबह 4-6 बजे का समय हमारी स्वम् की ध्यान में होने वाली प्रगति को मापने का भी अवसर है।यानि प्रातकाल के ध्यान के दौरान जिस स्तर के वायब्रेशन हमें प्राप्त होते हैं वहीँ स्तर हमारे स्वम् के ध्यान का होता हैं।क्योंकि इस वक्त किसी अन्य सहजी की ऊर्जा हमारी सहायता नहीं कर रही होती।

यदि हम चाहते है कि सुबह के ध्यान में हमें वायब्रेशन अच्छे आएं तो:---

a) सर्वप्रथम हमें "श्री माँ" के स्वरूप को अपने मध्य हृदय में व् "उनके" "श्री चरणों" के स्पर्श को कम से कम 5-7 मिनट तक अपने सहस्त्रार पर महसूस करना चाहिए।

b) इसके बाद अपने चित्त को धीरे धीरे सहस्त्रार से बाहर निकाल कर ऊपर की ओर यानि आकाश~~~~अंतरिक्ष~~~अंतरिक्ष से परे अखंड शून्यता में टिका देना चाहिए और इन स्थानों की ऊर्जा को अपने सहस्त्रार व् मध्य हृदय में कम से कम 10 मिनट तक महसूस करना चाहिए। अब आप पाएंगे कि आपके वायब्रेशन काफी बढ़ गए हैं और इसके उपरान्त आप अपने चित्त को

c) अपनी पसंद से प्रकृति की अनेको रचनाओं के साथ जोड़ कर उनकी ऊर्जा को अपने चित्त की सहायता से अपने सहस्त्रार के द्वारा कम से कम अगले 10 मिनट तक अपने मध्य हृदय में महसूस करें।इससे भी काफी वायब्रेशन बढ़ जाएंगे।

d) कोई भी "श्री माँ" की साक्षात पूजा या बड़ी सामूहिकता को व् इसके दृश्यों को कम से कम 10-15 मिनट तक स्मरण करें व् महसूस करें कि आप वहीँ पर मौजूद हैं तो आप पाएंगे कि आपके वायब्रेशन बढ़ रहे हैं।क्योंकि "सत्य" कभी भूतकाल नहीं बनता वो तो सदा वर्तमान काल के रूप में ही कायम रहता है।

e) किसी भविष्य में होने वाले सहज के कार्यक्रम या सामूहिकता पर कम से कम 5-10 मिनट तक चित्त टिका कर रखें तब भी आप पाएंगे कि वायब्रेशन बढ़ रहे हैं।क्योंकि भविष्य केवल मन की गड़ना का ही परीणाम है जो सत्य है वो तो सदा सनातन है।उससे सदा ऊर्जा ही प्राप्त होगी।

f) किसी भी अच्छी अवस्था के सहजी का स्मरण करे और उसके सहस्त्रार व् मध्य हृदय पर कम से कम 5-10 मिनट तक चित्त रखें जिसको आप हृदय से प्रेम करते हैं या वो आपको हृदय से प्रेम करता है।ऐसी स्थिति में भी आपके वायब्रेशन में इजाफा होता है। जो दिल कहे वो रास्ता अपना ले और भरपूर वायब्रेशन का आनंद उठायें।ये सभी सुझाव कई सहजियों के द्वारा आजमाए जा चुके हैं जिनके परिणाम बहुत अच्छे आये हैं।"श्री माँ" आप सभी को भरपूर चैतन्य से लाभान्वित कर आप सभी को उच्च अवस्था प्रदान करें।"

-----------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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