Sunday, July 24, 2016

"Impulses"---294---"दुविधा"

"दुविधा"

"जिंदगी के कुछ मोड़ों पर हम सभी के भीतर कभी कभी ऐसा लगता रहता है कि इस दुनिया में हर जगह लूट-खसोट मची हुई है, ज्यादातर लोग एक दूसरे का गला काट अपने स्वार्थ को पूरा करने में लगे हुए हैं। नजदीक से नजदीक रिश्तों में भी ज्यादातर यही हाल है, किस रिश्ते तो निभाएं किसको छोड़ें, कुछ समझ नहीं आता। 

यहाँ तक कि सहज से जुड़े कुछ रिश्तों में भी अक्सर कड़वाहट घुल ही जाती है।  जाने बिन बात के अचानक एक सहजी को दूसरे सहजी से तकलीफ हो जाती है वो दूसरे सहजियों के बीच जाकर उसकी बुराइयां शुरू कर देता है जो पहले बड़े ही प्रेम से गले मिलता था और पहला सहजी बेचारा समझ ही नहीं पाता कि आखिर हुआ क्या। 

कुछ दिन बाद में पता लगता है कि किसी अन्य सहजी ने दुर्भावना व् ईर्ष्यावश पहले वाले सहजी के बारे में दूसरे सहजी से कुछ सुनी सुनाई तथ्य विहीन बाते कह दीं और दूसरे सहजी ने बिना किसी जांच पड़ताल के पहले वाले से डर के मारे दूरी बना ली कि कहीं उनके भीतर कोई नेगेटिविटी प्रवेश कर जाए।

पहले जब साधारण जिंदगी जी रहे थे तो ये समझ में आया था कि इस दुनिया में अगर जीना है तो अपने हक़ व् अधिकार के लिए दूसरों से लड़ कर ही अपने को बचाया जा सकता है। और जब सहज जीवन का प्रारम्भ हुआ तो ऐसा लगा कि मानों स्वर्ग में गए हों, जिससे भी मिले वो सभी बड़े प्रेम से मिले, हमारे द्वारा भी प्रेम ही प्रेम छलकता गया।

लेकिन अब कहाँ जाएँ, ये कौन सा दौर गया जो पहले से भी ज्यादा तकलीफदेह लगने लगा है। एक सहजी दुसरे सहजी के लिए दिल में कटुता रख रहा है। अब तो ये सोचना पड़ रहा है कि अब कौन सी दुनिया में जाकर रहें जहां शांति वास्तविक प्रेम हो। 

वास्तव में जब हम गहनता की ओर चल रहे होते हैं तो हमारी नाभि का मंथन हो रहा होता है और साथ ही साथ हमारे "लेफ्ट आगन्या" क़ी बेकार पूर्व-संस्कारों की फाइलें भी डिलीट हो रही होतीं हैं। और डिलीट होने से पहले वो हमारे मन के स्क्रीन पर खुलती हैं।

अतः हम सभी के विकार हमारे मन की सतह पर तैरने लगते हैं और हमारे चित्त को अपनी ओर आकर्षित करते हैं जिसके कारण हमारी चेतना कुछ समय के लिए उनमें उलझ जाती है जिसके कारण हमें सब कुछ खराब लगने लगता है। 

किन्तु यह स्थिति समय समय पर बदलती रहती है।अतः निश्चिन्त रहें व् अपने सहस्त्रार व् मध्य हृदय में निरंतर बने रहें। जैसे तूफ़ान आने पर चिड़िया पेड़ के कोटर में दुपक जाती है और तूफ़ान थमने पर पुनः खुले आकाश में उड़ना प्रारम्भ कर देती है।"
---------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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