Monday, September 5, 2016

"impulses"---301--"झूठ"(Lies)

"झूठ"

"आजकल एक चीज हर जगह हमारे मुल्क में बहुतायत में दिखाई देती है, और वो है झूठ। जहाँ देखो वहां झूठ, बात बात में झूठ, हर बात में झूठ, चाहे इसकी जरुरत हो या हो पर झूठ जरूर शमिल होगा।

कोई भी रिश्ता हो, पर झूठ के बिना निभाया ही नहीं जा रहा है। किसी भी विभाग में चले जाएँ, किसी भी संस्था में चले जाएँ, पर मिलेगा हर स्थान पर झूठ ही। और कुछ विभाग तो ऐसे हैं जहाँ सच तो बस 'शब्द' के रूप में ही उपस्थित है, वास्तव में सच नाम की कोई चीज व्यवहारिकता में उपलब्ध ही नहीं है।

और यदि क़ानून व्यवस्था व् न्यायपालिका की बात करें, तो हैरानी होती है कि जहाँ सत्य असत्य को परख कर फैसला दिया जाता है, वहां तो बस केवल एक ही कार्य होता है कि किसी के वास्तविक सत्य को कैसे दांव-पेच के द्वारा असत्य साबित किया जाए। और असत्य को सत्य के रूप में झूठे साक्ष्यो व् विवेचना के आधार पर कैसे स्थापित किया जाए। 

वास्तविक स्थिति को कितनी चालाकी से पलट कर कुछ लालच के बदले अपराधी को बचा लिया जाए या उसको उल्टा लाभ दे दिया जाय। और सत्य पर चलने वाले को अनेको रूपों में उत्पीड़ित किया जाए, सताया जाए व् हानि पहुंचाई जाए।उसका सब कुछ लूटने के लिए विभिन्न षड्यंत्र करने वाले को और प्रोत्साहित किया जाए।

हैरानी तब और भी बढ़ जाती है जब ध्यान के माध्यम से "प्रभु" से संपर्क स्थापित करने वाले यानि 'सत्य' के मॉर्ग में चलने वाले कुछ लोग भी अक्सर बात बात में झूठ बोलते हैं और अपनी बातों को सही साबित करने व् अपने प्रभाव को प्रमाणित करने के लिए धड़ल्ले से झूठ बोल देते है। 

उनको कोई एहसास नहीं होता कि ये झूठ उनकी चेतना को गर्त की ओर ले जाने वाला है।क्योंकि झूठ बोलने के पुराने संस्कार उनकी जागृति पर हावी रहते हैं। ऐसे लोगों को या तो वायब्रेशन नहीं आते या बहुत कम आते है, अक्सर ध्यान में आनंद नहीं आता परंतु फिर भी झूठ का त्याग करने को तैयार नहीं। तो भला मुक्त अवस्था कैसे प्राप्त होगी, कितने युग लगेंगे मोक्ष प्राप्त करने में।


ऐसा प्रतीत होता है, मानो ये झूठ नहीं वरन एक वस्त्र है जिसको सदा एक आवरण की तरह आज का मानव अपने व्यक्तित्व रूपी शरीर पर पहने रहता भले ही वो सांसारिक जीवन जी रहा हो या आध्यात्मिक, दूसरे पर प्रभाव डालने के लिए ज्यादातर झूठ का ही सहारा है।

पता नहीं झूठ बोलने की आदत के चलते"श्री माँ" के सामने बैठने की हिम्मत कहाँ से जाती है, शायद "श्री माँ" से संपर्क नहीं हो पाता होगा, वर्ना "माँ" के संपर्क में बने रहते हुए कैसे एक साधक/साधिका झूठ बोल सकते हैं ये मेरी चेतना की समझ से परे है।

ऐसे लोग नहीं समझ पाते की झूठ से कितने प्रकार की हानि होती हैं।तो जरा चलते हैं झूठ के कारण होने वाली हानियों के चिंतन व् विश्लेषण की ओर:---

1) सबसे पहली हानि हमारे स्नायू तंत्र(Nervous System) को होती है जिसके कारण अनेको बीमारियां जन्म लेती हैं। क्योंकि "माँ आदि शक्ति" ने मानव के दिमाग की रचना इस प्रकार से की है कि वो केवल सत्य को ग्रहण करके ही सुचारू रूप से संचालित हो सकता है।

यानि जो भी घटना या सूचना इसको प्राप्त होती है तो ये उसको अपने स्मृति कोष में डाल देता है।और यदि उसको मानव झुठलाता है तो इसके भीतर से एक हानिकारक द्रव्य स्त्रावित होने लगता है जो हमारे हृदय को कमजोर करता है।

जिसके कारण हृदय चक्र चल नहीं पाता और शरीर को चलाने वाली आवश्यक ऊर्जा का उत्पादन रुक जाता है जिसकी वजह से वो ऊर्जा हमारे भीतर प्रवाहित नहीं हो पाती और हमारी सूक्ष्म नसे व् नाड़ियाँ अवरोधित होने लगती हैं।

और उन स्थानों पर विभिन्न किस्म की बीमारियां जन्म लेने लगती हैं। क्योंकि जिस चक्र से सम्बंधित झूठ बोला जाता है उसी स्थान के अंग आवश्यक ऊर्जा के आभाव में खराब होने लगते हैं।


2) दूसरी हानि होती है भावनात्मक, यानि जो हमारे हितचिंतक होते हैं वो हमारे झूठे आचरण के कारण हमसे धीरे धीरे दूर होने लगते हैं, और एक दिन हम बिलकुल अकेले रह जाते है।जिससे हमारा आत्म-विश्वास भी छिन्न भिन्न हो जाता है और हम अपेक्षित तरक्की नहीं कर पाते।

जब हम वास्तव में किसी परे शानी में पड़ते हैं तो कोई भी यकीन नहीं करता और यकीन होने के कारण समय पर मदद भी नहीं मिल पाती।यहाँ तक कि हमारे नजदीक रिश्ते भी हमपर विश्वास नहीं कर पाते क्योंकि हम ही अक्सर उनको भी झूठ ही बोलने की प्रेरणा देते रहे होते हैं।


3) तीसरी हानि होती है आर्थिक, यानि हमसे कोई भी व्यक्ति लेंन देन नहीं करना चाहता क्योंकि हमारी झूठ की प्रवृति के कारण लोगों को डर रहता है कि कहीं हम अपने झूठे वादों के कारण उनके पैसे समय पर वापस करें।


4) चौथी हानि होती है आध्यात्मिक, क्योंकि झूठ बोलने के कारण हमारा मस्तिष्क ही भीतर में प्रवेश करने वाली "दिव्य ऊर्जा" के लिए द्वार बंद कर देता है जिसके कारण हमारे सूक्ष्म यंत्र पर स्थित देवी-देवता, शक्तियां व् सद-गुरु जागृत नहीं हो पाते और हम "आत्म ज्ञान" से वंचित रहते है।

जिसके परिणाम स्वरूप हमारी आध्यात्मिक चेतना पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाती और अविकसित चेतना के कारण हमारी 'जीवात्मा' मन के बंधनो में जकड़ी रहती है और छटपटाती रहती है।

जिसकी छटपटाहट को देख कर हमारी 'आत्मा' को बहुत पीड़ा होती है और पीड़ित आत्मा को देखकर "परमपिता" बहुत ही दुखी होते हैं और उनका दुःख उनकी "शक्ति" से देखा नहीं जाता जिसके कारण 'शक्ति' अत्यंत क्रोधित हो जाती है।

'उनके' क्रोध को देख कर गण-देवता भी कुपित हो जाते है, गण-देवताओं को कुपित देखकर ग्रह-नक्षत्रो पर भी रोष चढ़ जाता है इनके आक्रोशित होने पर पञ्च-महाभूत भी बिगड़ जाते है, और उनके बिगड़ने पर 'माता प्रकृति' नाराज हो जाती हैं और झूठ बोलने वाले को 'माता प्रकृति' अच्छे से सजा देती हैं।


तो जरा चिंतन कीजिये कि भला झूठ बोलने से क्या लाभ होने वाला है ? क्षणिक अहम् की तुष्टि के लिए क्यों इतनी मुसीबत मोल ली लाये ? क्यों सत्य बोला जाए व् सत्य आचरण किया जाए और अपने चिर-प्रतीक्षित निर्वाण का अधिकारी बना जाए।"


--------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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