Wednesday, September 21, 2016

"Impulses"---305

"Impulses"

1)"हम सभी मानव "परमात्मा" की संतान होने के कारण कहीं कहीं एक दूसरे के प्रति नैसर्गिक व् नैतिक रूप से एक जिम्मेदारी सी महसूस करते है।

चाहे हम किसी को जानते हैं या नहीं भी जानते पर कहीं कंही एक अंदरूनी रूप से एक रूहानी रिश्ते का एहसास बना ही रहता है जब तक के कोई भी एक पक्ष दूसरे पक्ष के साथ धोखा, बेईमानी, ईर्ष्या, झूठ या अपमान प्रगट करदे।

यदि किसी के साथ भी ऐसा हो जाता है तो दुखी हों बल्कि ये सोचें "ईश्वर" ने स्वम् हमारी नैतिक जिम्मेदारी कम करदी

अतः "भगवान्" को धन्यवाद दें और उस शख्स को अपने मन व् हृदय से दूर कर स्वतंत्रता का आनंद उठायें "



2)"एक " साधक" का जीवन अनेको प्रकार की विषमताओं से भरा होता है, समय समय पर वह अपने को झूठे, लालची, फरेबी, धूर्त, कपटी, धोखेबाज, गद्दार, विश्वासघाती, अहंकारी, चालबाज व् षड्यंत्रकारी किस्म के लोगों से घिरा पाता है और जिस कारण उसे निरंतर संघर्षरत रहना पड़ता है

ऐसे नकारात्मक लोग ज्यादार नजदीकी रिश्तों के रूप में उसको किसी किसी रूप में छलते ही रहते है,पर इन सबके कारण उसको निराश नहीं होना चाहिए।

बल्कि उन्हें ये सोचना चाहिए की "परमपिता पमेश्वर" को ऐसी निम्न अवस्था में जीने वाली 'जीवात्माओं' के उत्थान के बारे में भी व्यवस्था करनी पड़ती है।

इसीलिए वो "उच्च अवस्था' की चेतना से युक्त साधक के जीवन में इस प्रकार के निम्न श्रेणी के लोगों को नजदीकी बनाकर जन्म दे देते हैं।

ताकि उसकी गहन साधना से उत्पन्न "ऊर्जा क्षेत्र" से कभी कभी ऐसे लोगों की चेतना विकसित हो पाये।

इस प्रकार की पीड़ाएँ एक साधक की साधना को और भी ज्यादा परिष्कृत कर उसकी चेतना को और भी ज्यादा विकसित करती हैं।


और साथ ही ऐसे साधक को "परमपिता" की अनेको शक्तियों का सनिग्ध्य भी प्राप्त होता है और अन्ततः वह मुक्त अवस्था का आनंद उठाने का अधिकारी बनता है।"
------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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