Tuesday, September 13, 2016

"Impulses'---303

"Impulse"

1) "ज्यादातर मानवों की पृकृति भी बड़ी अजीब होती है, जब मानव के पास सांसारिक सुख-सुविधाएँ व् साधन नहीं होते वो रात-दिन "परमात्मा" के आगे सर झुकाता है और अपने व् अपने परिवार को साधन-संपन्न बनाने के लिए गुहार लगाता रहता है और अपने सांसारिक कर्तव्यों का निष्ठां-पूर्वक पालन करता है

और जब प्रभु उसकी श्रद्धा व् परिश्रम से प्रसन्न होकर उसको उसकी आवश्यकता पूर्ण करने योग्य साधन प्रदान कर देते हैं तो इसका सारा श्रेय वह स्वम् को देने लगता है व् "परमात्मा" को भूल जाता है व् अहंकार से युक्त होकर हर स्थिति-परिस्थिति का निर्णायक खुद को ही बना लेता है

यह सब देखकर समस्त देव-गण बड़े ही कुपित होते हैं व् उस मानव से नाराज हो जाते हैं फिर उसकी मति को भ्रमित कर उससे प्रकृति के विपरीत उलटे-सीधे कार्य करा कर उसे फिर अपने तरीकों से कुछ सजा दिलवाते है।

ताकि वह मानव अपने अहम् को त्याग कर "प्रभु" की शरण में समर्पित हो जाए, यदि फिर भी कुछ सुधार नहीं होता तो फिर उस पर प्रकृति के कोप का भाजन बनना पड़ता है और फिर वह मानव किसी योग्य नहीं रह जाता "



2)"किसी को भी खुले हृदय से क्षमा करना एक मजबूरी व् कमजोरी नहीं है जो अपनी आंतरिक पीड़ा को कम करने के लिए दी जाए और ही ये उदारता को प्रगट करने का ही साधन है।

बल्कि ये तो एक 'मातृत्व' व् 'प्रेम' की एक वास्तविक आनंदमई अनुभूति है जैसे कि माता-पिता अपनी बिगड़ी हुई संतानों के द्वारा की गई बड़ी से बड़ी गलती करने पर भी उन्हें माफ़ कर देते हैं


परंतु क्षमा करने के बाद दूरी बनाना आवश्यक है वर्ना ये क्षमा आपकी भावनात्मक कमजोरी का पर्याय बन जायेगी और क्षमा किये गए व्यक्ति को और भी ज्यादा जानबूझ कर गलतियां करने को प्रेरित करेगी "
------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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