Saturday, September 17, 2016

"Impulses"---304

"Impulses"

1)"मानव की चेतना में स्थित किसी भी प्रकार का आकर्षण अन्तर्निहित कमी को ही उजागर करता है चाहे वो कमी हमारे मन में भौतिक जगत के प्रति हो या हमारी जीवात्मा में आध्यात्मिक जगत के प्रति मौजूद हो।

जब "प्रभु-साधना" के प्रताप से मानव के भीतर की समस्त प्रकार की कमियों की पूर्ती होने लगती है तब मानव आंतरिक रूप से मस्त हो जाता जाता है। और समस्त प्रकार के आकर्षणों की दीवारे ढ्हनि प्रारम्भ हो जाती हैं चाहे उसके बाहरी जीवन में कितने भी प्रकार के तूफ़ान चल रहे हों। 

तृप्ति व् संतुष्टि का भाव उसकी अंतरात्मा को आच्छादित रखता है जो उसके बाहरी व्यक्तित्व से भी झलकने लगता है और असीम शांति उसके चेहरे से परिलक्षित होने लगती है।"



2)"संघर्ष शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है यानि संग+घर्षण, संग=साथ, घर्षण=रगड़ना।

अकसर हमारे मन की सोची गई बात या परिस्थिति का वर्तमान में घटित होने वाले घटनाक्रमो से मिलान नहीं हो पाता, क्योंकि हमारा मन हमारे भूतकाल का प्रतिनिधित्व करता है।

यानि मन की सोची गई स्थिति के विपरीत जब घटना क्रम घटित होता है तो मन की वर्तमान के संग लड़ाई होती है जिसके परीणाम स्वरूप हमारी चेतना में संघर्ष उत्पन्न होता होता है।

इस संघर्ष को समाप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है अपने मन को हृदय में ही रखा जाए क्योंकि हमारा हृदय केवल सत्य से ही संचालित होता है और वर्तमान सत्य का प्रतिनिधित्व करता है।


इस प्रकार से हृदय में भूत काल व् वर्तमान काल एक दूसरे में विलय हो जाते हैं जैसे की दूध में पानी विलीन हो जाता है।यानि मन को हृदय में रखने से व्यर्थ के संघर्ष से निजात पाई जा सकती है।"

------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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