Sunday, December 11, 2016

"Impulses"---322

"Impulses"

1)"हम सभी अक्सर मन ही मन में सोचते रहते हैं कि हमें गहनता पानी है, हमें ध्यान में ऊपर उठना है, हमें "माँ" का सच्चा बच्चा बनना है।और इस प्रकार के भाव मन में रखते हुए हम अक्सर प्रयास करते हैं कि हम नित्य ध्यानस्थ हों, साप्ताहिक सामूहिकता में शामिल हों और कम से कम 2 माह में एक बड़ी पूजा या सेमीनार में शामिल हों।

यह सब करके भी हम अक्सर अपने भीतर पाते हैं कि हमारी उन्नति नहीं हो रही जबकि ध्यान के दौरान चैतन्य भी अच्छे से महसूस करते हैं।क्या कारण है, हमें हमारा विकास नजर क्यों नहीं रहा, ये हम अक्सर सोचने में मजबूर हो जाते हैं।

मेरी चेतना के अनुसार वास्तव में हम धीरे धीरे विकसित हो रहे होते हैं, परंतु वर्तमान में चलने वाली किसी गंभीर समस्या के चलते हमारा चित्त व् चेतना बार बार उसमे उलझते रहते है। और हम उस समस्या को दूर करने का भरसक प्रयास कर रहे होते हैं, सफल हो पाने के कारण निराश होकर हतोत्साहित होते रहते हैं जिसके कारण हमें लगता है कि हम विकसित नहीं हो रहे।

वास्तव में ऐसी गंभीर समस्यायाएं हमें "श्री चरणों" में पूर्ण समर्पण सिखाने के लिए ही आती हैं क्योंकि अंततः हम थक हार कर वास्तविक रूप में समर्पित हो ही जाते हैं। यानि ऐसी स्थितियां हमारी उत्थान प्रक्रिया का अभिन्न अंग ही होती हैं।"



2)"प्राप्ति का एकमात्र मतलब "परम" को अपने भीतर में जब चाहे या हर पल महसूस करना ही है।चाहे हमारे बाहरी जीवन में कितनी भी तकलीफे व् परेशानियां क्यों मौजूद हों।हम सभी को ये तथ्य अच्छे से समझना चाहिए कि हमारे बाहरी जीवन पर हमारे स्वम् के प्रारब्ध का अधिपत्य है जिसके कारण हम अक्सर परेशानियों व् पीड़ाओं से घिरते रहते हैं।

परंतु हमारे प्रकाशित जीवन को स्वम् "श्री माँ" संचालित करती हैं और उनका एकमात्र लक्ष्य हमारी चेतना को बाह्य जीवन के चंगुल व् जकड़न से मुक्त करना ही है।अतः मन मुताबिक परिस्थितियों व् स्थितियों को पुनः बनाने के लिए संघर्ष कर अपनी कीमती ऊर्जा व् अपने सामर्थ्य को व्यय करना व्यर्थ है।

बल्कि इस बेकार के संघर्ष में उलझने के स्थान पर हमें अपने बीतने वाले हर पल का उपयोग अपनी चेतना के विकास में ही लगाना चाहिए।क्योंकि हर हालात में "श्री चरनन" में समर्पित होते जाना ही 'पूर्ण मुक्ति' की ओर अग्रसर होना है "
---------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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