Thursday, August 3, 2017

"Impulses"--391--"परमात्म-प्राप्ति"

"परमात्म-प्राप्ति"

"आध्यात्मिक जगत में प्राचीन काल से एक बात सदा चर्चा का विषय रही है और वो है "परमात्मा" को कैसे प्राप्त किया जाय। या "परमपिता" के "श्री चरणों" में सदा सदा के लिए कैसे लीन हुआ जाये।ज्यादातर अभ्यासी इस विषय पर भीतर ही भीतर धारणा रखते है कि, यदि एक बार "ईश्वर" के यदि दर्शन हो जाए तो हम सभी के समस्त कष्ट स्वतः ही दूर हो जाएंगे।

और हमारे बाह्य जीवन की अत्यन्त संघर्ष पूर्ण व् थकाऊ यात्रा अंततः समाप्त हो जायेगी और हमारी 'जीवात्मा' को राहत व् शांति प्राप्त हो जायेगी, जाने कितने जन्मों से हमारी जीवात्मा निरंतर गतिमान है। पता नहीं कितने प्रकार की नकारात्मक स्थितियों, परिस्थितियों, घटनाओं, आपदाओं व् विषमताओं से गुजरती रही है।

इस नश्वर मानवीय आवरण को धारण करने व् छोड़ने से आजिज आकार ये सदा के लिए इस आवागमन से मुक्त होने की चाहत में 'यही' मानवीय चेतना के भीतर में "परमेश्वर" की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। और मानव को सद मार्ग पर चलाने लिए बारम्बार अन्तर्मन के द्वारा कभी तो उत्साहित करती है तो कभी बाध्य करती है।

कभी मन के आकाश में अनेको आशंकाओं के भयावह गरजते बादलों में संभावित हानि की बिजली कड़का कड़का कर डराती है। तो कभी हृदए के गहरे सागर में आनंद के गोते लगवा कर 'सदानंद' की समाधि में सदा बने रहने के लिए उकसाती है। कभी इस संसार में "भगवान्" की संतान कहलाने के गौरव को प्राप्त करने का लक्ष्य दिखाती है। 

तो कभी इस संसार को समस्त प्रकार की आसुरी व् शैतानी शक्तियों से बचाने के लिए एक 'दिव्य योद्धा' बनने का भाव प्रदान करती है।
परंतु हर हाल में हम सभी को किसी किसी जरिये से "परमेश्वरी" से जुड़ने की जुगत लगाती है।

मेरी चेतना के अनुसार "परमात्मा" कोई मंजिल नहीं हैं, बल्कि एक यात्रा हैं। जैसे यदि हम किसी भी ट्रेन पर सवार हो जाते है तो वह ट्रेन हमें अपने आप जगह-जगह ले जाती रहती है। 

यानि हम कुछ करते हुए भी गतिशील रहते हैं, ऐसे ही "उनसे" जुड़कर हम उनकी "इच्छा-शक्ति" से ही संचालित होते हैं।यानि हम हर हाल में सशरीरी या अशरीरी अवस्था में भी सक्रिय बने रहते हैं।"
--------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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