Wednesday, August 30, 2017

"Impulses"--397--"ज्ञान-भ्रम"

"ज्ञान-भ्रम"

"हममे से बहुत से सहज अनुयायी अज्ञानतावश कुछ अपने सहज योग के बौद्धिक ज्ञान व् कुछ सीमित ध्यान-अनुभवों को ही 'सम्पूण ज्ञान' मान बैठते है। 

और उस उथले ज्ञान के आधार पर ही अन्य सहाजियों के अनुभवों से तूलना करके उनके वास्तविक ध्यान अनुभवों को काटते रहते हैं व् "श्री माँ" के लेक्चर्स को पूर्ण रूप से अपने भीतर अनुभव किये बगैर 'उन' लेक्चर्स के आधार पर उनको नीचा दिखाने का प्रयत्न करते रहते हैं।

अपनी बातों को सही सिद्ध करने के लिए तर्क, वितर्क व् कुतर्क करने से भी नहीं चूकते। यहाँ तक कि अपने आधे-अधूरे ज्ञान के अहंकार से ग्रसित होकर अत्यधिक वाद-विवाद में उलझ कर एक-दूसरे के हृदए को आहत करने में भी गुरेज नहीं करते। 

ये भी विचारने का कष्ट नहीं करते कि हम सभी "श्री माँ" की ही संतानें हैं, आखिर एक दूसरे के अन्तः करण को अपने तथाकथित मानसिक ज्ञान के आधार पर तकलीफ देकर कौनसी आध्यात्मिक तरक्की हो जाने वाली है।

क्या हम सभी के हृदए के भीतर रहने वाली "माँ", 'आत्मा', देवी-देवता व् शक्तियां क्या अलग अलग हैं ? जैसा भी ज्ञान हमें प्राप्त हो रहा है उसका स्रोत क्या है, उस स्रोत का मालिक"कौन" है ?

वास्तव में हम सभी के आध्यात्मिक ज्ञान में जो भिन्नता प्रतीत होती है वो कुछ और नहीं केवल और केवल हमारे पूर्व जीवनो के पूर्व-संस्कारों व् वर्तमान जीवन में सत्य की खोज की ओर किये गए प्रयत्नों व् श्रम के कारण ही परिलक्षित होती है।

 इसका ये बिलकुल भी आशय नहीं है कि किसी एक साधक/साधिका ने "परम सत्य" को पूर्ण रूप से प्राप्त कर लिया है। और वो अन्य सभी साधकों/साधिकाओं की प्रत्येक बात को काट कर उसकी चेतना पर शासन करने का अधिकारी बन गया है।

यदि किसी 'पूर्व-प्रतिष्ठित' सहजी के समक्ष कोई दूसरा भोला-भाला या नया सहजी अपना वास्तविक ध्यान-अनुभव ब्यान करदे तो उस 'नामी' सहजी को इतना बुरा लगता है कि मानो किसी ने उसकी सारी-सम्पत्ति ही हड़प ली हो। 

और प्रतिक्रिया स्वरूप वो उन नए व् सीधे साधे सहाजियों के चक्रो व् नाडियों की बाधाओं का ढिंढोरा पीट पीट कर सभी के सामने स्वम् को उच्च व् उनको निम्न साबित करना प्रारंभ कर देता है।

वो ये सोचता है कि केवल वही एकमात्र सहजी है जो अपना ज्ञान सभी को देने का अधिकारी है। केवल वही है जो सभी के ज्ञान के बारे में विवेचना कर अपनी टिप्पड़ी करके किसी के भी ज्ञान को सही या गलत ठहरा सकता है। 
यदि वास्तव में हम अपने अनुभव अन्यों के साथ शेयर करना चाहते है तो हमें भी बड़े प्रेम व् धैर्य के साथ सभी की भावनाओं व् अनुभूतियों का सम्मान करना चाहिए।

जब स्वम् "श्री माँ" ने घोर अज्ञानता के तिमिर में भटकने वाले हम सभी बच्चों को हमारी कमियों को अनदेखा कर बड़े प्रेम व् करुणा से हमारा हाथ पकड़ कर उन अंधेरो से बाहर निकाला है। 

तो हम बच्चों को भी तो यही करना चाहिए कि हम अपने तथाकथित ज्ञान के अनुसार किसी की भी कमियां निकालें और ही उनके अनुभवों व् ज्ञान को ही चैलेंज करें।इसी में हम सभी का हित है।

अन्यथा हम सभी को अच्छे से समझ लेना चाहिए कि यदि हम किसी के भी हृदए को अपने झूठे अभिमान से ग्रसित होकर आहत करेंगे तो निश्चित रूप से समस्त रूद्र व् गण-देवता हमसे अवश्य नाराज हो जाएंगे और हमारी अक्ल अच्छे से ठिकाने लगा देंगे। हमें रास्ते पर लाने या अति होने पर हमें नष्ट करने के लिए 'उनके' पास हजारों मार्ग हैं।

ये तो ऐसे ही हो गया कि हम सभी एक ही दारिया से जल ले रहे हैं और अपनी अपनी सुविधा व् सामर्थ्य के अनुसार जल को भिन्न भिन्न पात्रों में रखकर उस जल का अपनी आवश्यक्तानुसार विभिन्न रूपों इतेमाल कर रहे हैं। और विभिन्न धातुओं के बर्तनों में रखे गए जल के गुणों पर ही शास्त्रार्थ कर एक दूसरे को सही गलत ठहरा रहे हैं।

ये भी समझने का कष्ट नहीं कर रहे कि धातुओं की भिन्नता केवल और केवल जल के कुछ ही गुणों की तासीर को ही बदल पाती है किंतु जल की तरलता व् मृदुता रूपी स्वभाव को कभी भी परिवर्तित नहीं कर पाती।"

-------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata JI"

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