Saturday, September 2, 2017

"Impulses"--398--"दर्शन"

"दर्शन"


"अक्सर कुछ सहजी ध्यान में विभिन्न देवताओं "श्री माता जी" के दर्शन होने की चर्चा अन्य सहजियों से इस भाव में करतें हैं मानो वे बहुत ऊंचे सहजी हैं और बाकी सब बेकार हैं। मेरी चेतना के अनुसार इस प्रकार 'ध्यान में दर्शन' की चर्चा सभी के बीच करना उचित नहीं हैं।

क्योंकि देवताओं ने या स्वम् "श्री माता जी" ने यदि उनके ध्यान के दौरान चुपचाप केवल उन्हें ही दर्शन दिए हैं किन्तु बाकियों को नहीं दिये तो निश्चित तौर से "श्री माता जी" या देवी-देवता उनके डगमगाते विश्वास को बढ़ा कर उन्हें आश्वस्त करना चाहते होंगे। 

जब स्वम् देवी-देवताओं या "श्री माता जी" ने ये सीक्रेट बनाये रखा है तो दर्शन करने वालों को भी उनके ध्यान में आने की गोपनीयता को बनाये रखना चाहिए।

बल्कि ये सोचना चाहिए जैसे कि एक डॉक्टर किसी रोगी को उसके रोग व् उसकी शारीरिक क्षमता के आधार पर ही दवाई देता है। किन्तु बिना शारीरिक परिक्षण व् जानकारी के दी गई वही दवाई अन्य के लिए विष का कार्य भी कर सकती है। 

इसीलिए इस प्रकार के दर्शनों की बाते ही बताई जाएँतो अच्छा है, क्योंकि सभी के बीच में बताने से अनजाने में अवांछित भ्रान्ति के कारण दूसरे सहजियों में हीन भावना पनप सकती है और वो अवसाद ग्रस्त भी हो सकते हैं।

वास्तव में ध्यान के दौरान होने वेले दर्शन केवल "मानसिक सम्प्रेषण"(Mental projection) है, जो केवल और केवल अगन्या की प्रतिक्रिया का ही परिणाम है। 

हमारे मस्तिष्क की विशेषता है कि जो चीज इसकी मेमोरी में पड़ी होगी उसका विचार करते ही यह उसको दिखा देता है। उसी को अनजाने में हम लोग दर्शन कहतेहैं। जैसे कम्प्युटर किसी भी फाइल का नाम लिखते ही उसको प्रगट करता है।

जो "भगवान शिव" सदा 'अजन्में' हैं, उन्हें भी लोग पता नहीं कैसे देख लेते हैं ? यदि "ईश्वर" वास्तव में दर्शन देंगे तो उन्हें हम निश्चित रूप से अपनी खुली आँखों से ही देखेंगे। बंद आँखों से तो "उन्हें" आभासित ही किया जा सकता है"
---------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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