Saturday, September 9, 2017

"Impulses"--400--"चित्त एक नटखट बालक"

"चित्त एक नटखट बालक"

"ध्यान के दौरान हममे से बहुत से सहजी ठीक प्रकार से ध्यान लगने के कारण सदा परेशान होते हैं।  अक्सर कहते सुने जाते हैं कि चित्त बहुत भटकता है जब भी सहस्त्रार पर इसको टिकाने की कोशिश करो तो ये जल्दी ही जाने कहाँ-कहाँ भाग जाता है और ध्यान में मजा नहीं आता।

वास्तव में यदि हम गौर करें तो हम पाएंगे कि हमारा सहस्त्रार हमारे सूक्ष्म यंत्र रूपी 'घर' का मुख्य प्रवेश द्वार है और हमारा मध्य हृदए हमारे इस 'विलक्षण घर' की लॉबी है जहाँ हमारी 'परम प्रिय' "श्री माँ" उपस्थित हैं। 

वास्तव में हमारा चित्त एक बहुत ही नटखट" बच्चे जैसा है जो सदा कुछ कुछ करता रहता है।यदि हम इसे प्रवेश द्वार पर छोड़ दें तो ये कहीं कही जरूर भाग जाएगा। इसीलिए इसको मध्य हृदय में रखा जाए तो यह कहीं नहीं भागेगा, क्योंकि "माँ" मध्य हृदय में रहतीं हैं ये बच्चा सदा अपनी माता के इर्द-गिर्द बना ही रहता है, अन्यंत्र कहीं जाता नहीं है।

अतः गहन ध्यान में उतरने के लिए अपने चित्त को अपने मध्य हृदए में "श्री माँ" के साथ रखा जाए और "माँ आदि" की उपस्थिति का आनंद लेने के साथ साथ असंख्य उच्च दर्जे की चेतनाओं व् अनेकों देव-शक्तियों का स्वागत करने के लिए अपनी 'चेतना' को सहस्त्रार में रखा जाए तो बहुत आनंददायी ध्यान घटित होगा।

क्योंकि जब हमारे हृदए में "श्री माँ" जागृत हो जाती हैं तो जाने कितने गण, देवी-देवता, शक्तियां व् उच्च चेतनाएं सूक्ष्म रूप में "उनसे" मिलने के लिए निरंतर आते ही रहते हैं। 

जिनके आगमन के परिणाम स्वरूप हमारा सहस्त्रार व् मध्य हृदए अपनी प्रसन्नता को प्रगट करने के लिए विभिन्न प्रकार की ऊर्जा-युक्त्त प्रतिक्रिया करते ही रहते हैं और हम अपने सहस्त्रार व् मध्य हृदए में अनेको प्रकार की अनुभूतियाँ महसूस करते रहते हैं।


जिनको एहसास करते रहने मे हमारी चेतना व् चित्त निरंतर अपने सहस्त्रार व् मध्य हृदए में बने रहते हैं और लगातार सशक्त विकसित हो रहे होते है।"

----------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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