Monday, September 18, 2017

"Impulses"--402--"चक्र-पकड़-भ्रम"

"चक्र-पकड़-भ्रम" 


"एक बहुत ही हास्यपद मजेदार बात सारे सहजियों में प्रचलित है। वो है, दूसरे के चक्रों की पकड़ के बारे में अन्य सहाजियों के बीच जोर-शोर से चर्चा करना। वास्तव में अक्सर होता ये है कि ज्यादातर सहजी किसी अन्य सहजी के बारे में इधर उधर से कुछ नकारात्मक सुन लेते है। और बिना जांचे परखे उसे सच मान लेते हैं जबकि वो सूचना अक्सर झूठ ही होती है।

फिर इसी झूठ को बिना सत्य की कसौटी पर परखे वो अन्य सहाजियों से शेयर कर कर के आगे बढ़ाते जाते हैं। धीरे धीरे उस झूठ की यात्रा आगे बढ़ती ही जाती है और वो झूठ सत्य के रूप में कुछ सहाजियों के बीच स्थापित हो जाता है। हकीकत में वो झूठ किसी ईर्ष्यालु के मन की ही उत्पत्ति होता है, और ज्यादातर ईर्ष्या करने वाला सहज संस्था में किसी किसी पद पर बना होता है या कोई काफी पुराना सहजी होता है।

वो ईर्ष्या भाव रखने वाला सहजी किसी अच्छे व् सच्चे सहजी से उसके द्वारा किये गए अनेको जागृति के कार्यों के कारण चहुँ ओर अनेको सहाजियों के द्वारा की गई प्रशंसा के कारण हींन भावना से ग्रसित हो जाता है। और हींन भावना से घिरकर वो उस "माँ" के अच्छे बच्चे को सभी की नजरों में गिराने के लिए उसके बारे में झूठी अफगाहें फैलाने में लग जाता है।

ये झूठ, सुनने वाले अनेको सहज साधक/साधिकाओं के मन-मस्तिष्क में माने गए सत्य के रूप में सुरक्षित हो जाता है। जब भी अनेको सहजी उस अच्छे सहजी के बारे में नकारात्मक चर्चा करते है तो सर्वप्रथम सभी का चित्त अनजाने में अपने ही में मन में संचित हुई झूठी सूचना पर ही जाता है।

जिसके कारण उनको अपने स्वम् के चक्रों में पकड़ महसूस होती है और अज्ञानता में उस पकड़ को वो उस सहजी के चक्र की पकड़ के रूप में ले लेते हैं।चक्र की पकड़ को महसूस करते हुए वो ये भूल जाते हैं कि उनके खुद के चक्र ही झूठी सूचना के कारण पकड़ का शिकार हो गए हैं। क्योंकि हम सभी का सूक्ष्म यंत्र केवल और केवल सत्य को ग्रहण करने से ही ठीक प्रकार से संचालित होता है और असत्य को धारण करने के कारण चक्रो व् नाड़ियों में पकड़ को प्रगट करता है।

इसीलिए असत्य को सत्य मान लेने के कारण उन्ही के ही तो चक्र पकड़ें जा रहे है। किन्तु इस सूक्ष्म तथ्य को उनके द्वारा समझ पाने के कारण वो सभी सहजी उसी अच्छे सहजी को ही पकड़ का दोषी ठहराने लगते हैं।और वे अपने चक्र को ठीक करने के बजाय दूसरे को आरोपित करके व् उसके बारे में नकारात्मक चर्चा करके अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर लेते हैं।

तथा असत्य तथ्य को अपने भीतर सदा के लिए धारण कर लेते हैं।जिससे उनका सूक्ष्म यंत्र बाधित हो जाता है और उन्हें बार बार क्लीयरिग करते रहना पड़ता है।

इसके विपरीत यदि वास्तव में किसी सहजी के चक्र पकडे हो और हमें अपने यंत्र में उन पकडे हुए चक्रों की प्रतिक्रिया महसूस हो रही हो।तो ये हमारी जिम्मेदारी बन जाती कि अपने मध्य हृदए व् सहस्त्रार से जुड़कर "माँ" की ऊर्जा को महसूस करके उस सहजी के चक्रों पर चित्त रखकर अपने मध्य हृदए से प्रेममई ऊर्जा को प्रवाहित करें ताकि "श्री माँ" की 'शक्ति' उनके चक्रो को पकड़ से मुक्त कर सके।

या फिर उक्त सहजी पर चित्त रखते हुए अपने सूक्ष्म यंत्र पर प्रगट होने वाले पकडे गए उनके चक्र विशेष की उंगलियों के पोरवों पर अपने अंगूठे को गोल गोल घुमा कर चक्र को बाधा मुक्त करें। ऐसा करने पर ही हमें अपने चक्रो की पकड़ से मुक्ति मिल सकती है। क्योंकि हम सभी आत्मसाक्षात्कार के बाद "श्री माँ" के विराट शरीर के अभिन्न अंग बन चुके हैं।

अतः हमें किसी भी सहजी की नकारात्मक चर्चा करने के बजाय प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में कम से कम एक बार पूर्ण हृदए से उसकी सहायता अवश्य करनी चाहिए। तभी हम "श्री माँ" के वास्तविक बच्चे कहलाने के अधिकारी बन सकते हैं।"

-------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


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