Monday, December 4, 2017

"Impulses"--417--"सहज-समरूपता"

"सहज-समरूपता"


"एक बात हम सभी के बीच स्वाभिक रूप से बनी रहती है कि कुछ अच्छे स्तर के गहन सहाजियों के प्रति हमारा रुझान बना रहता है। एवम हममे से अनेको सहजी उनसे अपनी समस्याएं शेयर करते और उनसे अपेक्षा भी करते हैं कि वो अपने अनुभवों के आधार पर हमारी समस्या को दूर करने में कोई रास्ता सुझाएँ।

वास्तव में ऐसे अच्छे साधक/साधिका भी हम सभी जैसे ही हैं कोई विशेष नहीं है। हम सभी की तरह वे भी "श्री माँ" के "श्री चरणों" में वंदना करते हुए "उनकी" प्रेरणा से स्वम् को उत्थान की ओर ले जाने में प्रयास रत है। वे स्वयं की आंतरिक स्थितियों को अनुभव करते हुए इस ध्यान यात्रा पर हम सभी के साथ गतिमान है।

अतः हम सभी को चाहिए कि उन्हें अपने जैसा ही माने और उनके द्वारा शेयर किए गए अनुभवों को भी साधारण रूप में ही लें। हम सभी एक समान हैं, हम सभी शिक्षार्थी है, हम सभी एक कारवाँ के रूप में "श्री माँ" के द्वारा दिखाये गए मार्ग पर एक ही दिशा में एक ही मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं।

यदि कुछ अंतर है तो वो है केवल और केवल अवलोकन के दृष्टिकोण व् चेतना के स्तर का। जो पूर्व जन्म की तपस्या व् साधना के कारण हमारे नजरिये को कुछ कुछ भिन्न बनाता है। जिसके कारण हम सभी के प्रार्थमिक उद्देध्य थोड़े बहुत बदल जाते है। इसीलिए किसी भी प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए हम सभी ऐसे साधक/साधिकाओं को अपनी चेतना में अंतिम रूप से अधिकृत करे।

मेरी जागृति के मुताबिक ये उचित नहीं है, हम सभी सहजी भी अपने सभी प्रश्नों जिज्ञासाओं पर उदार रूप से ध्यान अवस्था में अपने भीतर झांक कर उन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास कर सकते हैं और अपनी जिज्ञासा को शांत कर सकते हैं। 

क्योंकि हम सभी के आंतरिक व् बाहरी प्रश्नों के उत्तर देने के लिए हम सभी की "गुरु", "देवी", "मार्गदर्शक", "हितैषी" व् "जज" के रूप में "श्री माँ" पहले से ही मौजूद हैं।

हम सभी को प्रयास करना चाहिए कि हम सभी "उन्ही" से अपने समस्त प्रश्नों के उत्तर अपनी 'आत्मा' के जरिये गहन ध्यान अवस्था में प्राप्त करें। और जो उत्तर "उनसे" हमारे हृदए के द्वारा प्राप्त होते हैं मेरी समझ व् चेतना के अनुसार उनकी कुछ विशेषताएं होती हैं:-

वो उत्तर किसी के हृदए को आहत नहीं करते,

किसी के आत्म-सम्मान व् स्वाभिमान को क्षति नहीं पहुंचाते,

किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा की भावना से प्रेरित नहीं होते,

किसी को उच्च व् किसी को निम्न नहीं ठहराते,

किसी भी मानव को अपमानित नहीं करते,

स्वम् को सभी की नजरों में सर्वश्रेष्ठ साबित नहीं कराते,

आपसी प्रेम व् सौहार्द को नष्ट नहीं करते,

सह-यात्रियों के बीच भेद-भाव नहीं बढ़ाते,

किसी भी सहज-यात्री को 'शिक्षक' के रूप में स्थापित नहीं कराते,

व्यर्थ का वाद-विवाद उत्पन्न करने में सहायक नहीं होते,

व्यक्तिगत मान्यताओं व् पूर्व संस्कारों को सत्य के रूप में प्राण-प्रतिष्ठित नहीं कराते,

आत्म-मुग्धता व् आत्म-प्रशंसा की चाह को प्रोहत्साहित नहीं करते,

मानव को मानवीयता के स्तर से नीचे नहीं गिराते,

किसी भी प्रकार के लोभ को उन्नत करने के कारक नहीं बनते,

मन के भीतर उमड़ती-घुमड़ती आकांक्षाओं को गतिमान नहीं बनाते,

यथार्थ की स्वीक्रोत्ति से पलायन करने को उत्साहित नहीं करते,

वास्तविक व् शास्वत सत्य से कभी भी दूर नहीं ले जाते,

किसी की भी चेतना व् अस्तित्व पर शासन करने की प्रवृति को बढ़ावा नहीं देते,

दिखावे व् ऊपरी आचरण की झूठी आवश्यकता को नष्ट करते है,

अनावश्यक लिप्तता व् मोह का ह्रास करते हैं,

स्वम् का स्वयं से सामना करने योग्य बनाते हैं,

झूठी शान व् भ्रम से परिपूर्ण प्रतिष्ठता को बढ़ावा देने वाले समस्त तत्वों को नष्ट करने वाले होते है,

हमारे स्वम् के 'बहुत ज्ञानी' होने वाले मिथक को तोड़ने वाले होते हैं,

वास्तव में सहस्त्रार व् मध्य हृदए के जुड़ाव का निरंतर एहसास होने के परिणाम स्वरूप हमारे पुष्प के समान खिले हुए हृदए से उठने वाली आत्मज्ञान रूपी सुगंधि से सराबोर उत्तर:-

हमारे मन के भीतर निरंतर चलने वाले निर्थक विचारो के उत्पात से हमें निजात दिलाते हैं,

समस्त मानवों को समान रूप से देखने की दृष्टि व् समझ प्रदान करते है,

समस्त 'जागृत हृदयों' रूपी 'मोतियों' को प्रेम रूपी डोर द्वारा आपस में जोड़ने व् जोड़े रखने में मदद करते है,

किसी भी प्रकार की अज्ञानता के परिणाम स्वरूप हमारी चेतना को आच्छादित करने वाले अहंकार रूपी अन्धकार को 'शुद्ध ज्ञान' रूपी उजाले की किरण से तिरोहित करते है,

सुन्दर सुन्दर संवादों को प्रस्फुटित कर नकारात्मक से नकारात्मक आन्तरिक वातावरण को सुरम्य बनाते है,

एक दूसरे की प्रसन्नता व् आनंद को बढाने के लिए नित नवीन संयोजन करते हैं,

निम्न से निम्न मनोदशा से घिरे मानव के भीतर स्वाभिमान व् सम्मान के साथ जीने के लिए ऊर्जा देकर उसके यंत्र में कार्य कर उसे अपने पावों पर खड़ा होने की प्रेरणा देते हैं,

अनेको प्रकार की धूर्ताओं व् चालाकियों में पारंगत मनुष्य को उसका रास्ता बता उन्हें सही मार्ग पर लाते है,

समस्त प्रकार के भ्रमों का निवारण कर हमारी चेतना को विकसित करने में हमारी मदद करते हैं,

सामूहिक विकासक्रम की प्रक्रिया को तीव्र कर आत्मिक उत्थान की ओर अग्रसर करते है,

'गागर में सागर और सागर में गागर' का आभास अपने स्वम् के ही भीतर कराते हैं,

'नतमस्तक' होते हमारे अस्तित्वों का आभास हमारे ही अस्तित्व में सरलता से कराते है,

श्रद्धा, भक्ति, सुमिरन, ध्यान, समर्पण व् शक्ति की ओर हमें ले जाते है,

और एक दूसरे की चेतना का सम्मान एक दूसरे की चेतना में बढ़ाते है।

यदि उपरोक्त आंतरिक घटनाक्रम हम सभी के भीतर घटित हो रहा है और हम सभी के हृदयों में इस प्रकार के उत्तर प्रगट हो रहे हैं। तो हम सभी को निश्चिन्त हो जाना चाहिए की हम "श्री माँ" से आशीर्वादित हो कर "उनके" द्वारा दर्शाये गए सद-मार्ग पर चल रहे हैं। 

अन्यथा हमें समझ जाना चाहिए कि हम जाने अनजाने में 'आगन्या' में बैठे हुए शैतानो के चंगुल में फंस कर अधोगति की ओर अग्रसर हो चुके है।"

---------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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