Saturday, December 9, 2017

"Impulses"--418--"श्री माँ" की वाणी अतिसम्मानीय"

"श्री माँ" की वाणी अतिसम्मानीय"

"आजकल व्हाट्स एप्प(whats app) पर सहजियों के अनेको ग्रुप बने हुए हैं और उनमें लगभग हर सहजी "श्री माता जी" के पूरे-पूरे लेक्चर्स शेयर करने में लगा है। ये सहजी ये भी चिंतन करने का कष्ट नही कर रहे कि आखिर एक छोटी सी फोन की स्क्रीन पर घंटे दो घंटे में इतने सारे लेक्चर्स कोई एक सहजी भला किस प्रकार से पढ़ सकेगा।

यदि सारे लेक्चर्स पढ़ने का प्रयास करेंगे तो पूरा दिन भी कम पड़ेगा। यदि पढ़ने लग गए तो बाकी दैनिक जीवन के कार्य कब करेंगे। और यदि पढ़ेंगे नही तो फोन की मेमोरी भर जाएगी और यदि डिलीट करेंगे तो उन लेक्चर्स का एक तरीके से अपमान ही होगा।

हम सभी को समझना चाहिए कि "श्री माता जी" के लेक्चर हम सभी के लिए बेहद महत्वपूर्ण,अनमोल अत्यधिक सम्मानीय हैं। उनको अपने भीतर में उतार कर जीना है, इस प्रकार से उनके लेक्चर्स को बिना पूरी तरह समझे हुए, उनमे उतरे हुए पोस्ट करना उन 'अतुलनीय लेक्चर' का तिरस्कार करना ही है।

इतने दिनों सेwhats appपर यही देखने में आता है कि "माँ" के अनेको लेक्चर्स को एक ग्रुप से उठाकर दुसरे ग्रुप में पोस्ट कर दिया जाता है जिनको ठीक प्रकार से कोई पढ़ भी नहीं पाता तो ऐसा करने से आपकी चेतना में क्या लाभ हो रहा है। 

यदि किसी ने अच्छे से "श्री माता जी" की वाणी का थोडा अंश भी अपने जीवन में उतारा है, उन "बातों" को अपने जीवन में अमल किया है व् उस ज्ञान को अनुभव किया है। केवल तभी ही वह उन अपने सच्चे अनुभवों चिंतन को ग्रुप में शेयर करने का अधिकारी है।

ये "श्री माता जी" का 'अमृत' समान ज्ञान है जो "उनकी" अपनी मेहनत व् गहनता का परिणाम है जो हम सभी साधकों के लिए सहज यात्रा पर चलने के लिए मार्गदर्शक का कार्य करता है। क्या हम "उनके" ज्ञान में पूर्ण रूप से उतरे बगैर "उनके" ज्ञान को दूसरों को शिक्षा देने के लिए प्रयोग में लाने के लिए अधिकृत है ? जरा चिंतन करके देखिएगा।

हाँ वो बात और है कि हम अपने किसी वास्तविक अनुभव को सिद्ध करने के लिए "उनके" द्वारा कही गई बातों का रेफरेंस दे सकते है। क्या हम लोग "श्री माता जी" के द्वारा अर्जित की गई ज्ञान सम्पदा का ही जीवन भर उपभोग करते रहेंगे या कभी कुछ स्वम् कमाने के लिए भी तत्पर होंगे

हम अपने आगे की पीढ़ियों को क्या "दादी" की कमाई ही खिलाएंगे और उनसे भी कहेंगे कि तुम भी कुछ मत करो तुम भी अपने बच्चों को "पड़-दादी" की कमाई ही खिलाना

जो आगे चलकर धार्मिक कट्टरता में परिवर्तित हो जायेगी जिनके कारण भयानक युद्ध होंगे जैसे आज के समाज में धर्म के नाम पर हो रहे हैं, लोग एक दूसरे को मार रहे हैं और अपने को धर्म का रखवाला कह रहे हैं। 

इतने बड़े बड़े संत, सदगुरु, नबी, औलीया, पैगम्बर व् अवतार इस धरा पर आये और उन्होंने उस विशेष काल के मुताबिक ही ज्ञान दिया, कुछ ही गिने चुने लोगों ने वो ज्ञान अपने भीतर में उतारा। 

लेकिन ज्यादातर लोगों ने उस ज्ञान को भी कंडीशनिंग बना दिया जिसके कारण कट्टरता उत्पन्न होती गई जिसका दुष्परिणाम आज के समाज में परिलक्षित हो रहा है, चारों तरफ धार्मिक झगड़ा व् मार काट मची हुई है।

मुस्लिम आतंकवाद इसी का भयानकतम रूप है जिससे सारी दुनिया त्रस्त है। कुछ माह पूर्व एक सूचना देखि थी जिसमे एक 14-15 साल की मासूम इस्राइली बच्ची को केवल फ़िल्मी गाना सुनने पर आई एस आई आतंक वादी ने भरे चौराहे पर गर्दन काट कर मार दिया, बड़ी ही हृदय विदारक घटना थी, देखकर दिल दहल गया।

वैसे ही सहज अनुयायियों में ये सब होना प्रारम्भ हो चुका है, वो अज्ञानता से युक्त कट्टरता के कारण दो वर्गों में विभक्त हो ही चुके हैं। और आपस में भी "श्री माता जी" की वाणी पर शास्त्रार्थ करते हुए एक दूसरे पर अपना मानसिक ज्ञान थोपते हुए एक दूसरे को नीचा दिखा कर गिराने में लगे हैं।और ये लड़ाई दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। जिसका एक मात्र कारण "श्री माँ" की बातों की अनुभव विहीनता ही है।

दि अपने भीतर अनुभव ठीक प्रकार से किया होता तो झगड़ा कभी हो ही नहीं सकता था। जो भी "श्री माँ" के अनंत ज्ञान भण्डार में से कुछ प्रतिशत भी अनुसरण कर पायेगा वो "श्री माँ" के लेक्चर्स को यूँ ही नहीं शेयर कर सकेगा। क्योंकि वो ये सोचेगा कि "माँ" की समस्त बातों को अनुभव किये बिना भला मैं कैसे शेयर कर सकता हूँ। 

"श्री माँ" के लेक्चर्स शेयर करने से हम वास्तविक सहजी नहीं हो जाते वरन उनकी बातों को हृदय से अमल करने के उपरान्त उनसे प्राप्त अनुभव के द्वारा ही हम सहज का आनंद उठा सकते हैं। और तब ही हम अपने वास्तविक ज्ञान को भी शेयर करने के हम अधिकारी बन सकते हैं।

तनिक ध्यानस्थ अवस्था में चिंतन करके देखिये तो सही, कि आखिर हम सहज योग में किस ओर जा रहे हैं। और क्या पाने की आकांशा रखते हैं, मात्र इतना विचार करने से ही हम सभी के भीतर वास्तविक सत्य उजागर हो जाएगा। 

यदि मेरी चेतना के द्वारा व्यक्त उदगारों से आपमें से कुछ सहज साथियों की भावनाओं को ढेस पहुंची है तो इसके लिए मेरी चेतना क्षमा प्रार्थी है।

किन्तु मेरी चेतना इस सभी बातों को आप सभी के समक्ष रखने के लिए शर्मिंदा नहीं है क्योंकि ये मेरी चेतना के सत्य अनुभव हैं।"

--------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

1 comment:

  1. जै श्री माता जी....सीधी और सही बात है ..धन्यवाद

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