Tuesday, December 19, 2017

"Impulses"--420--"जन्म-कुंडली"

"जन्म-कुंडली"

हममे से बहुत से सहजी ज्योतिष में बहुत विश्वास करते है किसी भी शुभ कार्य के लिए महूरत निकालने के लिए ग्रह नक्षत्रों की सर्वोत्तम स्थिति की जानकारी के लिए ज्योतिषविदों की सहायता भी लेते हैं। 

इसके अतिरिक्त ज्योतिष विज्ञान में तीन स्थितियों को ठीक करने के लिए अधिकतर उपाय कराए जाते हैं इनकी सबसे ज्यादा चर्चा भी होती है। 

प्रथम है किसी भी लड़के/लड़की का मंगली/मांगलिक दोष का होना:

वास्तव में मंगली होना एक विशेष घटनाक्रम है जो की जन्म के समय कुछ ग्रह नक्षत्रों की खास युति का परिणाम है। ऐसे जातक विलक्षण विशेषताओं वाले माने जाते हैं जिनका विवाह मंगली लड़के/लड़की से होना श्रेष्ठ होता है। 

क्योंकि इनका ऊर्जा स्तर आम जन्म लग्न वाले सहन नहीं कर पाते, या तो बीमार रहते हैं या फिर किसी एक की मृत्यु हो जाती है। 

यदि विवाह योग्य लड़की/लड़के में से कोई एक मंगली है तो इस दोष को दूर करने के लिए लड़की/लड़के की शादी पहले वृक्ष से करा दी जाती है जिससे उस दोष की तीव्रता समाप्त हो जाये।

दूसरा है, किसी भी मानव के जीवन में काल-सर्प-दोष का प्रारम्भ होना:-

जहां तक मुझे इसके बारे में थोड़ा बहुत पता है तो लगभग 150 प्रकार के काल सर्प योग विभिन्न मानवो के जीवन में घटित होते हैं।
मेरी चेतना के मुताबिक काल सर्प योग का मतलब है:

काल=समय
सर्प=कुंडलिनी
योग=जागरण

यानि कि काल सर्प योग वास्तव में कुंडलिनी जागरण के काल को ही इंगित करता है। यानि जिसकी जन्म कुंडली में काल सर्प योग है उसकी कुंडलिनी जागरण की सम्भावना बनती है। यानि उसे मोक्ष पाने का मार्ग मिलने का अवसर प्राप्त हो सकता है।

वास्तव में मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर चलने से भौतिकता के प्रति विरक्ति व् वैराग्य उत्पन्न होता है  जिसके कारण सांसारिक दृष्टिकोण से इसे काल सर्प दोष का दर्जा दिया गया है। और आध्यात्मिक उन्नति के लिए इसे काल सर्प योग माना जाता है।

तीसरा है किसी के जीवन में 'शनि की साढ़े साती' का प्रभावी होना:-

ज्योतिष के अनुसार मानव के जीवन को 120 वर्ष का माना गया है। क्योंकि इस 120 वर्ष के काल में समस्त ग्रह अपनी अपनी सुनिश्चित गति से सूर्य की परिक्रमा पूर्ण कर लेते हैं। 

अन्य ग्रहों की अपेक्षा शनि ग्रह की गति सबसे धीमी होती है जिसके कारण सूर्य की परिक्रमा में शनि को सबसे ज्यादा समय यानि 30 वर्ष लगते हैं।

चूंकि हमारी पृथ्वी सूर्य का चक्कर 1 वर्ष में पूरा कर लेती है तो तीस वर्ष में तीस बार वो शनि ग्रह के निकट से गुजरती है और इस नजदीकी के दौरान जन्म लेने वाले बालकों पर शनि का प्रभाव ज्यादा रहता है। 

जिसके कारण शनि की विशेषताएं भी उनमें परिलक्षित होती हैं जो सांसारिक दृष्टि से आंकलन करने के कारण गुण-दोष के रूप में विभक्त हो जाती हैं।

किन्तु आध्यात्मिक प्रगति के दृष्टिकोण से शनि ग्रह का प्रभाव केवल और केवल लाभप्रद ही होता है। 

इसी प्रकार से सूर्य की परिक्रमा के दौरान सूर्य के चक्कर लगाते हुए समस्त ग्रहों के नजदीक से पृथ्वी गुजरती है जिसके परिणाम स्वरूप मानव के जन्म लग्न में उन नजदीक आने वाले समस्त ग्रहों की विशेषताओं का प्रभाव भी बना रहता है।

और यदि हम सहज योग से जुड़कर इस सम्बन्ध में सोचे तो ये ज्योतिष लगभग निष्क्रिय हो जाती है।क्योंकि ज्योतिष की गड़ना सांसारिक नजरिये से हमारे पूर्व जन्म के अनुसार ही होती है।

किन्तु कुंडलिनी का जागरण एक नया जन्म माना जाता है जिसके कारण नई कुंडली तैयार होती है जिसका मिलान प्रारब्ध की कुंडली से हो नहीं पाता इसीलिए पूर्व की कुंडली कार्य नहीं कर पाती।

एक बात और है कि जब हम "माँ आदि शक्ति" के शरणागत हो जाते हैं तो हमारे ग्रह नाक्षत्रो की दशा ही बदलने लगती है। 

अतः एक सहजी को जन्म कुंडली का विचार करने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती।क्योंकि उसके जीवन का निर्धारण अब "माँ आदि शक्ति" के हाथ में होता है।"

-----------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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