Wednesday, October 3, 2018

अनुभूति-42-- "प्रेम"--(02-10-18)

                                                              "प्रेम"

"प्रेम वह है जिसके एहसास मात्र से अंतर्मन में एक मिठास सी घुल जाती है,

प्रेम वह है जिसमें घुल कर समस्त कड़वाहट अपना अस्तित्व ही खो देती है,

प्रेम वह है जिसकी अनुभूति रोम रोम को पुलकित कर देती है,

प्रेम वह है जिसकी तासीर रंक को राजा में बदल देती है,

प्रेम वह है जिसकी रहमत मुर्दों में भी जान डाल देती है,

प्रेम वह है जिसकी फितरत पतझड़ में भी बसंत खिला देती है,

प्रेम वह है जिसके जलाल से बुझती शम्मा भी रौशन हो जाती है,

प्रेम वह है जिसकी किरणे अंतर्मन के अंधेरों में प्रकाश भर देती हैं,

प्रेम वह है जो अपाहिज को सक्षम से भी ज्यादा सामर्थ्यवान बना दे,

प्रेम वह है जो हर बिगड़ी बात को बना दे,

प्रेम वह है जो रोतों को हंसा दे,

प्रेम वह है जो पत्थर को भी मोम बना दे,

प्रेम वह है जो मरुस्थल को उपवन बना दे,

प्रेम वह है जो तालाब को भी दरिया बना दे,

प्रेम व है जो अंधेरों को भी उजाले में तब्दील कर दे,

प्रेम वह है जो तूफानो का रुख बदल दे,

प्रेम वह है जो पाषाण के दिल में भी धड़कन भर दे,

प्रेम वह है जो जड़ को चेतन कर दे,

प्रेम वह है जो एक बूंद में सागर को पैबस्त कर दे,

प्रेम वह है जो "नापैद" को भी 'पैदा' होने के लिए मजबूर कर दे,

प्रेम वह है जो 'तड़पती' रूहों के दिलो में तसल्ली भर दे,

प्रेम वह है जो सारी कायनात को एक ही दिल में महफूज कर दे,

प्रेम वह है जो इस कायनात के जर्रे जर्रे को मोहब्बत से लबरेज कर दे,

प्रेम वह है जो फिजाओं में 'आशिकी' भर दे,

प्रेम वह है जो सारे इंसानों के दिलों को जोड़ दे,

प्रेम वह है जो सभी सहजियो को एक कर दे,

प्रेम वह है जो प्रेम को 'प्रेम' साबित कर दे,

प्रेम वह है जो सबके दिलों में "परमात्मा" को उजागर कर दे,

प्रेम वह है जो कायनात की रवायत बन जाय'

कहाँ तक परिभाषित करेगा प्रेम को ये 'नादां',

अरे प्रेम वह है जो स्वयम प्रेम की पराकाष्ठा बन जाये।"


------------------------Narayan🌹
"Jai Shree Mata Ji"


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